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अमेरिका में वोटरों की भागीदारी के सवाल के बीच भारतीय मूल के कलाकार भर रहे जोश

जैसे-जैसे चुनाव की तारीख करीब आती जा रही है, ऐसे लोग हैं जो लोकतंत्र के लिए खतरों की चेतावनी दे रहे हैं। राष्ट्रपति बाइडेन ने शुक्रवार को कहा कि हालांकि उन्हें विश्वास है कि चुनाव 'फ्री और फेयर' होगा, लेकिन उन्हें यकीन नहीं था कि यह 'शांतिपूर्ण' होगा।

'जय हो, कमला!' का नारा WhatsApp पर धमाके के साथ गूंज रहा है। / Ritu Marwah

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए महज तीन हफ्ते बाकी हैं। ज्यादातर राज्यों में पहले से ही वोटिंग शुरू हो चुकी है या शुरू होने वाली है। चुनाव में लड़ाई की रेखाएं खींची जा चुकी हैं और पार भी हो चुकी हैं। कुछ विशेषज्ञ चुनाव साइट्स और अधिकारियों और वोटों की सुरक्षा पर खतरे की घंटी बजा रहे हैं। वहीं, कई ऐसे हैं जो रात-दिन काम कर रहे हैं ताकि समुदायों को वोटिंग तक पहुंच हो और वोटरों को प्रोत्साहित कर सकें, उन्हें मतदान केंद्रों तक ढोल बजाते ले जाएं।

'जय हो, कमला!' का नारा WhatsApp पर धमाके के साथ गूंज रहा है। इस धुन पर लिरिक्स जोड़े गए ताकि वोट और वोटरों में जोश भरा जा सके। तीन बे एरिया कलाकारों मंजुला गुप्ता, अंकुर गुप्ता और पलक जोशी ने भारतीय संगीतकार ए.आर. रहमान के ऑस्कर विजेता स्लमडॉग मिलियनेयर की धुन के जादू को दोबारा सबके सामने लाए हैं। ए.आर. रहमान, कमला हैरिस का समर्थन करने वाले पहले अंतरराष्ट्रीय कलाकार हैं। उन्होंने Foo Fighters स्टूडियो से एक 30 मिनट का वर्चुअल कॉन्सर्ट दिया। यह AAPI विक्ट्री फंड के YouTube चैनल के माध्यम से प्रसारित किया गया है।

वहीं, जैसे-जैसे चुनाव की तारीख करीब आती जा रही है, ऐसे लोग हैं जो लोकतंत्र के लिए खतरों की चेतावनी दे रहे हैं। राष्ट्रीय और स्थानीय चुनाव विशेषज्ञ एथनिक मीडिया सर्विसेज में मिल कर वोट को होने वाले खतरों और यह सुनिश्चित करने के लिए चर्चा की कि कोई आवाज दबाई न जाए और भागीदारी में बाधा न आए।

शिकागो विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रॉबर्ट पेज ने कहा, 'जैसे-जैसे राष्ट्रपति चुनाव करीब आ रहे हैं, हमारे चुनाव स्थल और अधिकारी काफी शारीरिक खतरे में हो सकते हैं। वोटों की सुरक्षा और वोट गिनती की निष्ठा भी खतरे में हो सकती है। 2021 से न्याय विभाग ने देश भर में एक दर्जन से अधिक लोगों पर चुनाव कर्मचारियों को धमकाने का आरोप लगाया है। राष्ट्रपति बाइडेन ने शुक्रवार को कहा कि हालांकि उन्हें विश्वास है कि चुनाव 'फ्री और फेयर' होगा, लेकिन उन्हें यकीन नहीं था कि यह 'शांतिपूर्ण' होगा।

प्रोफेसर रॉबर्ट पेज ने कहा हम 2021 की गर्मी से अमेरिकियों के राजनीतिक हिंसा के प्रति रवैये के बारे में त्रैमासिक राष्ट्रीय सर्वेक्षण कर रहे हैं। हमारे सबसे हालिया सर्वेक्षण में, जो 12 सितंबर से 16 सितंबर तक किया गया था, हमें राजनीतिक हिंसा के लिए समर्थन की चिंताजनक तस्वीर मिली। विशेष रूप से यह रवैया द्विदलीय था। लगभग 6 प्रतिशत प्रतिभागियों ने सहमत या पूरी तरह सहमत हुए कि 'डोनाल्ड ट्रम्प को राष्ट्रपति पद पर वापस लाने के लिए बल का इस्तेमाल जायज है।' 8 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा ने सहमत या पूरी तरह सहमत हुए कि 'डोनाल्ड ट्रम्प को राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए बल का इस्तेमाल जायज है।'

लीग ऑफ वुमेन वोटर्स ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स की सीईओ सीलिना स्टीवर्ट ने वोटरों को भागीदारी से हटाकर इसमें बाधा डालने के प्रयासों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, 'हमने न केवल इस चुनाव चक्र में, बल्कि पिछले चुनाव चक्रों में भी देखा है कि वोटरों को भागीदारी से हटाने के लिए अक्सर सफाई की जाती है।' लीग ऑफ वुमेन वोटर्स ऑफ वर्जीनिया ने आने वाले चुनाव से महज एक महीने पहले वोटरों को गैरकानूनी और व्यवस्थित रूप से भागीदारी से हटाने की राज्य की नीति को चुनौती देने के लिए फेडरल कोर्ट में एक मुकदमा दाखिल किया है। स्टीवर्ट ने कहा, हर कोई साफ भागीदारी चाहता है। यह ऐसी चीज नहीं है जिसका हम विवाद करें, लेकिन यह कानूनी तरीके से किया जाना चाहिए।'

वोटिंग राइट्स एंड इलेक्शन प्रोग्राम, ब्रेनन सेंटर फॉर जस्टिस के काउंसल एंड्रयू गार्बर ने राज्य चुनाव कानूनों और हाल ही में हुए कुछ बड़े बदलावों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि ब्रेनन सेंटर साल में कुछ बार अपनी वोटिंग लॉ राउंडअप जारी करता है, जहां हम देश भर के सभी 50 विधानसभाओं में वोटिंग से संबंधित हर बिल पर नजर रखते हैं ताकि यह जान सकें कि वोटिंग कानून कैसे बदल रहे हैं।'

स्क्रिप्स न्यूज के मुताबिक ब्रेनन सेंटर ने पाया है कि 30 राज्यों ने कम से कम 78 कानून पास किए हैं जो वोट करना मुश्किल बनाते हैं। गार्बर ने कहा कि चुनाव कानून में बदलाव की संख्या उनकी संस्था द्वारा पिछले दो चुनाव चक्रों में मिलाकर देखे गए बदलावों की लगभग दोगुनी है। जॉर्जिया, फ्लोरिड और टेक्सास समेत राज्यों ने ऐसे कानून पास किए हैं जो कई तरह से वोट करना मुश्किल बनाते हैं। हालांकि, ब्रेनन सेंटर ने पाया है कि कम से कम 41 राज्यों ने लगभग 168 कानून पास किए हैं जिन्हें संस्था का मानना है कि वह वोट करना आसान बनाते हैं।

 

 

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