दक्षिण भारतीय शहर चेन्नई के लोगों के लिए दिन की सही शुरुआत तब तक नहीं होती जब तक ताज़ी बनी हुई फिल्टर कॉफी की सुगंध चारों ओर न फैल जाए। यह सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि एक परंपरा, एक विश्राम का पल और घर से जुड़ाव का अहसास है, चाहे इंसान दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हो। फिर चाहे वह मायलापुर की व्यस्त गलियां हों, लंदन का शांत उपनगर या फिर हैदराबाद की बरसात में भीगी सड़कें, दक्षिण भारतीयों का 'कापी' प्रेम कभी नहीं बदलता।
सुबह की शानदार शुरुआत
मायलापुर के एक पारंपरिक तमिल ब्राह्मण घर में, जब सूरज की पहली किरणें शहर को छूती हैं, तो नाना और अम्मा का रोज़ाना का रूटीन शुरू हो जाता है। अम्मा, खिचड़ी कांचीवरम साड़ी पहने, घर के पूजा कक्ष में जाकर दीप जलाती हैं। चारों ओर ताज़े चमेली के फूलों और चंदन की महक फैल जाती है। उधर नाना, सफेद वेस्टी और अंगवस्त्रम पहने, सब्ज़ी खरीदने निकलते हैं और रास्ते में पुराने सब्जीवाले से दो-चार बातें कर लेते हैं, जो उन्हें सालों से जानता है।
लेकिन इस सबके पहले एक अहम चीज़ होती है—कॉफी।
तांबे के दावरा-टंबलर की हल्की खनक के बीच गर्मागर्म फिल्टर कॉफी को ऊपर-नीचे उंडेला जाता है ताकि उसमें सही झाग आ सके। अम्मा मुस्कुराते हुए नाना को टंबलर पकड़ाती हैं, "यह सिर्फ कॉफी पीने की बात नहीं है, बल्कि इसे महसूस करने, अखबार पर चर्चा करने और मन को ताजगी देने का तरीका है।"
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लंदन में चेन्नई की खुशबू
दूसरी तरफ, दुनिया के एक अलग कोने में वेम्बली, लंदन के एक शांत घर में—एक दक्षिण भारतीय NRI दंपत्ति भी अपनी सुबह बिल्कुल वैसे ही शुरू करता है। जहां आसपास की गलियों में अंग्रेजी ब्रेकफास्ट टी की खुशबू फैली होती है, वहीं उनके रसोईघर में अब भी "नरसुस कॉफी" की तेज़ सुगंध होती है। यह कॉफी हर भारत यात्रा पर चेन्नई से खासतौर पर लाई जाती है।
80 वर्षीय श्री सुब्रमण्यम, जो दशकों पहले यूके में बस गए थे, कहते हैं, "हम भले ही लंदन में रहते हैं, लेकिन हमारी जड़ें गहरी हैं। मेरी पत्नी आज भी सुबह जल्दी उठती हैं, पूजा करती हैं और फिर मुझे उसी पुराने चांदी के टंबलर में कॉफी परोसती हैं—बिल्कुल चेन्नई की तरह।"
हैदराबाद में एनआरआई संस्कृति
हैदराबाद के जुबली हिल्स में, जहां कई एनआरआई सालों विदेश में बिताने के बाद वापस लौटे हैं, वहां भी फिल्टर कॉफी का वही महत्व है। लक्ष्मी और विट्ठल कृष्णमूर्ति ने 25 साल न्यू जर्सी में बिताए, कहते हैं, "हमारे पास घर में कई आधुनिक कॉफी मशीनें हैं, लेकिन हमारी पुरानी स्टील की फिल्टर में रातभर टपकती हुई डेकोक्शन वाली कॉफी का कोई मुकाबला नहीं।"
उनका दिन सुप्रभातम के मंत्रों से शुरू होता है, फिर एक बालाजी मंदिर की छोटी सी यात्रा और नाश्ते से पहले स्टील टंबलर में झागदार फिल्टर कॉफी। "यह हमारे साथ चेन्नई की यादों को हर दिन जीवंत रखता है," कृष्णमूर्ति कहते हैं।
एक पेय से बढ़कर
दक्षिण भारतीय परिवारों के लिए परंपराओं को जीवित रखना सिर्फ पुरानी यादों में खोने भर की बात नहीं है, बल्कि यह अपनी पहचान बनाए रखने का जरिया भी है। चाहे वह कॉफी पीने की अनूठी परंपरा हो, केले के पत्ते पर रसम-भात खाने का आनंद हो, या फिर हर शुक्रवार मंदिर जाने की आदत—ये सभी चीज़ें उनकी जड़ों से जुड़े रहने का माध्यम हैं।
लंदन की अय्यर गर्व से कहती हैं, "मेरे पोते-पोतियां अब स्टारबक्स की जगह फिल्टर कॉफी की डिमांड करते हैं। यह उनके खून में है!"
संस्कारों से जुड़ी एक महक
आज जब दुनिया तेज़ी से मॉडर्न हो रही है, तब भी फिल्टर कॉफी सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि अपनेपन, सुकून और संस्कृति का प्रतीक बनी हुई है।
चाहे आप चेन्नई में हों, हैदराबाद में, लंदन में या दुनिया के किसी भी कोने में—एक झागदार, कड़क फिल्टर कापी सिर्फ एक स्वाद नहीं, बल्कि घर की याद, एक परंपरा और एक ऐसी भावना है, जो कभी धुंधली नहीं होती।
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