'गर्ल्स विल बी गर्ल्स' पिछले साल की बड़ी संख्या में देखी जानी फिल्मों में से एक है। मैं फिल्म की कहानी में नहीं जाऊंगी, बस इतना कहूंगी कि ये हर टीनएजर और उनके मां-बाप को, खासकर लड़कियों की मांओं को जरूर देखनी चाहिए।
बच्चों की अच्छी परवरिश और पढ़ाई-लिखाई पर तो सभी पैरेंट्स का ध्यान रहता है, लेकिन उनके अंदर होने वाले बदलावों पर कम। इस वजह से बच्चे, खासकर लड़कियां, कई उलझनों में फंस जाती हैं। हमारे समाज में लड़कियों की सेक्सुअलिटी के बारे में इतनी पाबंदी है, इतनी लाज-शर्म है कि कई बातें मुझे शादी के बाद पता चलीं। इसमें बुराई नहीं है, लेकिन ये भी ठीक नहीं कि अपने शरीर और बदलावों के बारे में जानने की कोशिश करने वाली लड़कियों को लाज-शर्म या समाज के डर से छिपाया जाए। ये बातें मां-बाप या टीचर को अच्छे से समझाना चाहिए।
अमेरिका में स्कूलों में बच्चों को उनके शरीर और बदलावों के बारे में जानकारी दी जाती है, मगर माता-पिता की मर्जी से। लेकिन जिन माता-पिता को ये पसंद नहीं, उन्हें कम से कम बच्चों को कुछ बुनियादी जानकारी तो जरूर देनी चाहिए। वरना, गलत जानकारी से बच्चे गलत काम कर सकते हैं या फिर डर के साये में जी सकते हैं।
फिल्म 'गर्ल्स विल बी गर्ल्स' में एक और बात दिखाई गई है - हर इंसान की एक कमजोरी होती है, एक 'चाबी'। तेज-तर्रार लोग ये पहचान लेते हैं और फिर आपको अपने मुताबिक चलाते हैं और आपको पता भी नहीं चलता।
फिल्म का नाम 'गर्ल्स विल बी गर्ल्स' बिलकुल सही है। मांओं का दिल अपनी बेटियों के लिए हमेशा कोमल रहता है, लेकिन वो अक्सर भूल जाती हैं कि बेटियों का शरीर भी एक शरीर है। उनकी उम्र बढ़ने के साथ जिज्ञासा, हार्मोनल बदलाव और उलझनें भी आती हैं। इन उलझनों में उन्हें समझाने और सही रास्ता दिखाने के लिए मां से बेहतर और कौन हो सकता है? अपने अनुभवों से, एक मां अपनी बेटी को सही और गलत का फर्क समझा सकती है। इस फिल्म का एक मकसद ये भी है।
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