बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान आकर्षित करने के लिए हिंदू अमेरिकी समुदाय और मानवाधिकार संगठनों ने व्हाइट हाउस के नजदीक शांति रैली आयोजित करने की योजना बनाई है।
रैली 13 फरवरी को स्थानीय समयानुसार दोपहर 12 बजे 17वीं स्ट्रीट और पेनसिल्वेनिया एवेन्यू पर शुरू होगी और फ्रीडम प्लाज़ा तक जाएगी। आयोजकों ने बांग्लादेश में हिंदू, ईसाई और बौद्ध समुदायों पर हो रहे हमलों की निंदा करते हुए अमेरिका और भारत से बांग्लादेश सरकार पर कूटनीतिक दबाव बनाने की अपील की है ताकि मानवाधिकारों का उल्लंघन रोका जा सके और अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
आयोजकों का कहना है कि यह रैली USAID द्वारा कथित रूप से बांग्लादेश में चलाई गई राजनीतिक गतिविधियों पर भी सवाल उठाएगी। दावा किया गया कि इसकी वजह से धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति और बिगड़ी है। रिपोर्ट बताती हैं कि बांग्लादेश में अब तक हिंदुओं और अन्य समूहों पर 2,000 से अधिक हमले हो चुके हैं।
रैली के आयोजकों की मुख्य मांगों में इस्कॉन के संन्यासी चिन्मय दास की रिहाई, बांग्लादेश में लक्षित हिंसा रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय सुरक्षित क्षेत्र बनाना, 1971 के बांग्लादेश नरसंहार और अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराधों में जवाबदेही तय करना और आतंकवाद को रोकना के प्रयास तेज करना शामिल है।
आयोजकों ने दावा किया कि बांग्लादेश में सक्रिय चरमपंथियों के हमास, हिज़बुल्लाह, आईएसआईएस और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों से वैचारिक संबंध हैं, जो कि वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं।
रैली के आयोजक सुरजीत चौधरी ने कहा कि हमास के खिलाफ राष्ट्रपति ट्रंप की कड़ी कार्रवाई ने अमेरिकियों का उनमें भरोसा बढ़ाया है। हम आग्रह करते हैं कि वे बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी और आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ सख्त कदम उठाएं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता पंकज मेहता ने कहा कि बांग्लादेश में मौजूदा स्थिति केवल मानवाधिकारों का मुद्दा नहीं है, यह वैश्विक सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है। यदि इसे नज़रअंदाज़ किया गया तो बांग्लादेश चरमपंथ के नए केंद्र के रूप में उभर सकता है।"
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