इस वक्त पूरी दुनिया की नजरें अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी पर हैं। डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने को तैयार हैं। अमेरिका के अधिकतर सहयोगियों या प्रतिद्वंद्वियों के उलट एक देश ऐसा है जो आश्वस्त है कि अमेरिका के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी ट्रम्प 2.0 सरकार में गहरी नहीं हुई तो कमजोर भी नहीं होगी। ये देश है भारत।
ये अच्छी बात है कि भारत और अमेरिका के बीच घनिष्ठ संबंधों को बेहद ध्रुवीकृत अमेरिकी राजनीति में भी मजबूत द्विदलीय समर्थन हासिल है। तीन दशक पहले राष्ट्रपति क्लिंटन के दौर से अब तक प्रत्येक अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत से अपने संबंधों को गहरा किया है। आने वाले वर्षों में यह ट्रेंड जारी रहने की पूरी उम्मीद है।
दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और सबसे बड़े लोकतंत्र के बीच साझेदारी की नींव साझा मूल्यों और आपसी रणनीतिक हितों में है। अमेरिका-भारत की बहुआयामी साझेदारी आपसी मजबूत वाणिज्यिक संबंधों, करीबी रक्षा सहयोग और साझा रणनीतिक विचारों पर आधारित है। भारत की रणनीतिक स्थिति, आर्थिक क्षमताएं और सैन्य ताकत उसे दुनिया के एक प्रमुख हिस्से अर्थात यूरेशिया महाद्वीप और भारत-प्रशांत समुद्री क्षेत्र में अमेरिका का आदर्श भागीदार बनाती हैं।
पिछले दो दशकों में भारत को भूराजनीति से भी लाभ हुआ है। ट्रम्प के पिछले कार्यकाल में चीन से अमेरिका की प्रतिस्पर्धा ने भारत से रणनीतिक साझेदारी को गहरा बनाया। ट्रम्प प्रशासन की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष इंडो पैसिफिक के लिए 2017 के तैयार कॉन्सेप्ट नोट में भारत का प्रमुखता से उल्लेख किया गया था।
इसके अलावा ट्रम्प सरकार में ही क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और अमेरिका के संगठन) को पुनर्जीवन मिला था। ओबामा प्रशासन ने भारत को अमेरिका के बड़े रक्षा साझेदार का दर्जा दिया था लेकिन ट्रम्प प्रशासन ने ही भारत का दर्जा बढ़ाकर सामरिक व्यापार प्राधिकरण-1 (एसटीए-1) किया था।
ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में उम्मीद है कि पिछले कार्यकाल की नीतियों को और गहरा किया जाएगा। चीन को लेकर अमेरिका और ज्यादा आक्रामक हो सकता है। अपेक्षा रहेगी कि सभी मित्र और साझेदार देश मिलकर चीन के आर्थिक व सैन्य उभार को रोकने में भूमिका निभाएंगे। चीन से भारत की दशकों पुरानी प्रतिद्वंद्विता ने उसे एक प्रमुख भागीदार बनाया है। ट्रम्प प्रशासन में भी यही सोच कायम रहने वाली है। ऐसे में ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में भारत-प्रशांत क्षेत्र को लेकर रणनीति और क्वाड समूह में मजबूती आने की उम्मीद है। इसका अर्थ होगा कि भारत को क्षेत्र में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा।
ट्रम्प हालांकि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में आपसी लेन-देन के दृष्टिकोण को प्राथमिकता देते हैं। संस्थागत दृष्टिकोण से ज्यादा नेताओं से अपने व्यक्तिगत संबंधों को तवज्जो देते हैं। पिछली बार उन्होंने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ऐसा ही रवैया अपनाया था, संभवतः इस बार भी यह ट्रेंड जारी रहेगा।
ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल और यहां तक कि दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव प्रचार के दौरान भी भारत में अमेरिकी उत्पादों के लिए शुल्क बाधाओं और बाजार तक सीमित पहुंच का मुद्दा उठाया था। पिछले कुछ वर्षों से इसे लेकर मुखर रहे हैं। ऐसे में संभावना है कि अन्य देशों की तरह भारत को भी व्यापार, बाजार तक पहुंच और आव्रजन जैसे मसलों पर सार्वजनिक मतभेदों का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इन्हें रणनीतिक अनिवार्यताओं के साथ संतुलित करना जरूरी होगा।
एच-1बी वीजा का मुद्दा ट्रम्प के शपथ लेने से पहले ही जोर पकड़ चुका है। नतीजा चाहे जो हो, लेकिन इसका भारत समेत अन्य देशों की कुशल प्रतिभाओं की अमेरिका में एंट्री पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है। इसके अलावा, मैक्सिको और कनाडा से भी होकर अब बड़ी संख्या में अवैध भारतीय प्रवासी अमेरिका पहुंच रहे हैं।
पिछले एक दशक में अमेरिका और भारत के बीच रक्षा सहयोग काफी गहरा हुआ है। आने वाले समय में इसमें और मजबूती आने की उम्मीद है। 2023 से दोनों देशों ने उच्च तकनीक, असैन्य व सैन्य दोनों क्षेत्रों में साझेदारी को भी मजबूत बनाया है। इसमें क्रिटिकल व एमर्जिंग टेक्नोलोजी पर केंद्रित इनिशिएटिव iCET का अहम योगदान है।
रणनीतिक रूप से देखें तो अमेरिका भारत में एक ऐसा साझेदार देखता है जो चीन की सैन्य आक्रामकता का मुकाबला करने में उसका साथ देता है।
रिपब्लिकन प्रशासन के लिए यह महत्वपूर्ण है। इस साझेदारी के रक्षा और तकनीकी आयामों को भी अमेरिकी कांग्रेस में मजबूत द्विदलीय समर्थन हासिल है। हालांकि यह समय ही बताएगा कि ट्रम्प ने पिछले कार्यकाल में जिन पहलों को प्राथमिकता दी थी, उन्हें लेकर इस बार रवैया कैसा रहेगा। ये व्हाइट हाउस की नीतिगत प्राथमिकताओं ही तय करेंगी।
इस वक्त भारत-अमेरिका के बीच एक बहुआयामी साझेदारी है जो सैन्य और अर्थशास्त्र के पारंपरिक क्षेत्रों से लेकर उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों, अंतरिक्ष, साइबर व स्वास्थ्य सेवा तक विस्तार ले चुकी है। आगामी ट्रम्प प्रशासन में इसमें और मजबूती आने की उम्मीद है क्योंकि यह दोनों देशों के राष्ट्रीय हितों और साझा मूल्यों पर आधारित है।
(लेखक अपर्णा पांडे हडसन इंस्टीट्यूट में इनिशिएटिव ऑन द फ्यूचर ऑफ इंडिया एंड साउथ एशिया की निदेशक हैं।)
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