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भारत, भारतीय और अमेरिका

जब भारतीय दर्शन पूरी दुनिया को एक कुटुम्ब या कुनबा मानता है तो इसकी व्यावहारिक तस्वीर ऐसी बनती है जिसमें परिवार के नाते सब एक दूसरे से जुड़ते हैं। यानी गार्सेटी जिस चक्र की बात करते हैं वह जिस बिंदू से आरंभ होता है फिर उसी बिंदू से आकर मिल जाता है। चक्र की पूर्णता भी यही है।

सांकेतिक तस्वीर / CANVA

भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने पिछले दिनों नई दिल्ली में भारत और भारतीयों के संदर्भ में कुछ अहम बातें कहीं। साथ ही दोनों देशों के लोगों की तुलना करते हुए अमेरिकावासियों की एक वृत्ति को भी रेखांकित किया। दरअसल, कुछ दिन पहले नई दिल्ली के अमेरिकन सेंटर में  'द इंडियन डायस्पोरा डिफाइनिंग सक्सेस इन द यूनाइटेड स्टेट्स' विषय पर एक पैनल चर्चा का आयोजन किया गया था। चर्चा के बाद न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ विशेष बातचीत में गार्सेटी ने भारत को एक धैर्यवान देश बताते हुए कहा कि भारत के लोग इतिहास को एक सीधी रेखा के रूप में नहीं, बल्कि एक चक्र के रूप में देखते हैं। जाहिर है कि यह चक्र उस भारतीय दर्शन की ओर इशारा करता है जिसमें पूरी दुनिया को एक परिवार माना जाता है। यानी वसुधैव कुटुम्बकम। जब भारतीय दर्शन पूरी दुनिया को एक कुटुम्ब या कुनबा मानता है तो इसकी व्यावहारिक तस्वीर ऐसी बनती है जिसमें परिवार के नाते सब एक दूसरे से जुड़ते हैं। यानी गार्सेटी जिस चक्र की बात करते हैं वह जिस बिंदू से आरंभ होता है फिर उसी बिंदू से आकर मिल जाता है। चक्र की पूर्णता भी यही है। भारत के इसी दृष्टिकोण को प्रधानमंत्री मोदी अपनी अमेरिका यात्राओं में बार-बार दोहराते रहे हैं।

बकौल गार्सेटी अमेरिका में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्र दोनों देशों के संबंधों के सेतु हैं। न सिर्फ सेतु बल्कि परस्पर रिश्तों को प्रगाढ़ करने वाला सेतु। गार्सेटी मानते हैं कि वे भारत लौटें या अमेरिका में रहें, वे भविष्य के सीईओ, डॉक्टर, शोधकर्ता और युग परिवर्तन करने वाले बन जाते हैं जो दोनों देशों को समृद्ध करते हैं। अमेरिकी राजदूत की यह बात आज की व्यावहारिक सच्चाई उजागर करने वाली है। बीते कुछ वर्षों में अमेरिका की सत्ता और समाज के अलावा विभिन्न पेशेवर क्षेत्रों भारतीय मूल के लोगों ने शीर्ष पद प्राप्त किये हैं। अमेरिका में प्रवासियों का सबसे बड़ा तबका होने के नाते स्थानीय समाज और राजनीति पर इसके प्रभाव को देखा जा सकता है। हाल ही में सम्पन्न हुए अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में भी दोनों प्रमुख पक्षों यानी रिपब्लिकन और डेमोक्रेट अभियानों में भारतीय मूल के कई लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सक्रिय रहे। डेमोक्रेट पार्टी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस का भारत से उजागर नाता है। नये शासन में भी काश पटेल जैसे ट्रम्प के 'सेनानी' अहम पद पर नामित हैं। भारतीय जड़ों वाले कुछ और लोग भी ट्रम्प शासन में जगह बनाने वाले हैं। और अभी तो नामांकन का सिलसिला शुरू ही हुआ है। अमेरिका की राजनीति में भारतीय मूल के लोग कितना असर रखते हैं यह बात जगजाहिर हो चुकी है।

बेशक. यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि सपनों की धरती पर आकर भारतीय लोगों ने अपनी कड़ी मेहनत, स्वभाव और अपनाई हुई जमीन को अपना परिवार मानकर आगे बढ़ने का सिलसिला जारी रखा। पहली पीढ़ी के सपने पूरे हुए तो दूसरी पीढ़ी प्रेरित हुई। आज स्थिति यह है कि अधिकाधिक छात्र अमेरिका जाकर पढ़ना चाहते हैं, अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं। अपने परिवार और अपने देश के लिए कुछ अनुकरणीय करना चाहते हैं। उनको अब यकीन हो चला है कि उनकी मेहनत व्यर्थ नहीं जाएगी। यह एक भरोसा है और सब जानते हैं कि भरोसा यकायक नहीं बनता। उसे कायम होने में बरसों लग जाते हैं। यही भरोसा अमेरिका और भारत के संबंधों का आधार है।

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