दुनिया को जब गरीबी, जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर सामाजिक एवं पर्यावरणीय संकटों का सामना करना पड़ता है, तो व्यक्तिगत स्तर पर इन समस्याओं को हल करना असंभव-सा लगता है। पूरे समुदाय, देश या दुनिया को प्रभावित करने वाली समस्याओं को समझना और उन्हें हल करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य लगता है।
ऐसे में हम अक्सर उम्मीद करते हैं कि कोई सरकार, कंपनी या अमीर व्यक्ति जिसके पास हमसे ज्यादा संसाधन हैं, इन मुद्दों को हल करने के लिए आगे आएगा। लेकिन इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जहां छोटे समूहों ने पहल की और बड़े पैमाने पर बदलाव लाए।
ऐसा ही एक उदाहरण 1970 के मिनियापोलिस में मिलता है, जिसमें एक समलैंगिक कपल ने जब शादी करने का प्रयास किया तो उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने विवाह में समानता के लिए एक लंबा अभियान शुरू किया।
बीस साल के बाद जब तीन अन्य समलैंगिक जोड़ों ने मैरिज लाइसेंस के लिए आवेदन किया तो किसी भी LGBTQ+ संगठन ने उनका साथ नहीं दिया क्योंकि उन्हें लग रहा था कि यह लड़ाई जीती नहीं जा सकती। लेकिन 2015 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले के बाद समलैंगिक विवाह एक संवैधानिक अधिकार बन गया।
1990 के दशक का एक और उदाहरण देखिए। उस वक्त भारतीय नेताओं द्वारा उठाए गए कदमों ने देश में आर्थिक विकास की नींव रखी थी। 2020 के दशक तक, भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका था और अब 2030 तक तीसरी सबसे बड़ी इकोनमी बनने की राह पर है। इस आर्थिक तरक्की ने गरीबी को काफी हद तक कम किया है, हालांकि आज भी भारत में जहां-तहां गरीबी नजर आती है।
गहन सामाजिक बदलाव आने में वक्त लगता है। ये बदलाव आमतौर पर कुछ लोगों द्वारा शुरू किए जाते हैं, जो दूसरों को अपने साथ जोड़ते हैं। मानवविज्ञानी मार्गरेट मीड ने इस पर बखूबी कहा था कि कभी ये न सोचें कि विचारशील और प्रतिबद्ध लोगों का छोटा समूह दुनिया को नहीं बदल सकता। वास्तव में, यही इकलौती चीज दुनिया को बदल सकती है। हम सभी असहायता की भावना को त्यागकर सक्रियता का रास्ता चुन सकते हैं। समाजिक और पर्यावरणीय बदलाव के लिए दानशीलता को अक्सर सबसे तार्किक माध्यम माना जाता है।
अब भारतीय अमेरिकियों का उदाहरण देखिए। करीब दस साल पहले, दीपक राज और राज गोयल के नेतृत्व में गैर-लाभकारी संगठन इंडियन-अमेरिकन इम्पैक्ट की स्थापना हुई थी। इसके बाद, भारतीय अमेरिकियों ने राजनीति में अपनी ताकत को पहचाना। एक दशक के अंदर भारतीय अमेरिकी समुदाय से कांग्रेस में छह प्रतिनिधि और एक सीनेटर है। समुदाय की एक महिला अमेरिकी उपराष्ट्रपति पद तक भी पहुंची। अगर राज और गोयल ने पहल नहीं की होती, तो संभंवतः आज भी कांग्रेस में भारतीय अमेरिकियों का प्रतिनिधित्व नहीं होता।
भारतीय अमेरिकी समुदाय को दानशीलता के मामले में भी सुप्त दिग्गज कहा जा सकता है। लेकिन अब वे जागृत हो रहे हैं। इस जागृति के निहितार्थ भारत, अमेरिका और अन्य जगहों पर मौजूद सामाजिक एवं पारिस्थितिक समस्याओं के लिए गहरे हो सकते हैं। 2018 में डालबर्ग और इंडियास्पोरा का एक सर्वेक्षण बताता है कि भारतीय अमेरिकी पहले से ही अमेरिकियों की तुलना में लगभग दोगुना समय स्वेच्छा से काम करते हैं।
इसके अलावा, अगर उनके वित्तीय दान उनकी राष्ट्रीय औसत आय से मेल खाते हैं तो यह भारत और अमेरिका में चैरिटी के लिए अतिरिक्त 2 बिलियन डॉलर का योगदान दे सकते हैं। यह दान के मामले में गेट्स फाउंडेशन जैसा एक और माध्यम साबित हो सकता है।
डालबर्ग एवं इंडियास्पोरा स्टडी के अनावरण समारोह में व्यापारिक नेता एवं दानी सुनील वाधवानी ने भारतीय अमेरिकियों से एक दशक के अंदर अपना दान तीन गुना करने का आह्वान किया। इसी की एक परिणिति 'इंडिया गिविंग डे' के रूप में सामने आई। 2023 में शुरू हुई यह पहल भारत में अमेरिकी दानशीलता को बढ़ावा देने का एक वार्षिक उत्सव है।
इस साल इंडिया गिविंग डे 14 मार्च को मनाया जाएगा। इसका आयोजन इंडिया फिलैंथ्रोपी अलायंस द्वारा किया जा रहा है। इस साल प्रत्येक भारतीय अमेरिकी परिवार से 100 डॉलर या उससे ज्यादा का दान लेने का लक्ष्य रखा गया है। इससे अभियान में शामिल 36 प्रमुख गैर लाभकारी संगठनों का कुल वार्षिक योगदान दोगुना हो सकता है और 125 मिलियन की राशि जुटाई जा सकती है।
इस फंड का बेहद प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किया जाएगा। भारतीय गैर-लाभकारी संगठन दुनिया में सबसे प्रभावी, इनोवेटिव और कुशल हैं। वास्तव में, भारत को अक्सर सामाजिक उद्यमिता का सिलिकॉन वैली कहा जाता है।
इंडिया गिविंग डे 2025 के अवसर पर मैं भारतीय अमेरिकी समुदाय के हर सदस्य से चार कदम उठाने का आह्वान करता हूं जो बड़ा बदलाव ला सकते हैं-
दान करें: 1 मार्च से 14 मार्च के बीच इंडिया गिविंग डे की वेबसाइट पर सूचीबद्ध 36 संगठनों में से किसी एक को $100 या अधिक का दान दें।
अनुभव साझा करें: सोशल मीडिया पर #ActForImpact हैशटैग के साथ अपने दान के अनुभव और कारण साझा करें।
कार्यक्रम आयोजित करें: परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर इंडिया गिविंग डे मनाएं और अपने अनुभव साझा करें।
सर्वे में भाग लें: डलबर्ग, इंडियास्पोरा और IPA द्वारा तैयार किए गए नए सर्वेक्षण में भाग लेकर समुदाय की प्रगति का आकलन करें।
( लेखक एलेक्स काउंट्स इंडिया फिलैंथ्रोपी एलायंस के कार्यकारी निदेशक हैं। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज में एडजंक्ट प्रोफेसर हैं। चार पुस्तकें भी लिख चुके हैं।)
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने विचार हैं और न्यू इंडिया अब्रॉड की आधिकारिक नीति या स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।)
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