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जन्मसिद्ध नागरिकता पर ट्रम्प के आदेश से भारतीय-अमेरिकी समुदाय में डर और गुस्सा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के जन्मसिद्ध नागरिकता पर रोक लगाने वाले आदेश ने भारतीय-अमेरिकी समुदाय में भारी आक्रोश और चिंता पैदा कर दी है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदेश कोर्ट में कड़ी चुनौती का सामना करेगा।

अमेरिकी प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रम्प / POTUS

अमेरिका में रहने वाले भारतीय उद्यमी, नेता और कम्युनिटी लीडर्स ने अमेरिकी प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रम्प के पहले दिन ही उठाए गए एक फैसले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। ट्रम्प ने एक कार्यकारी आदेश जारी किया है जिससे जन्म के आधार पर मिलने वाली नागरिकता पर पाबंदी लग सकती है। ये आदेश अमेरिका के संविधान के 14वें संशोधन की पुरानी व्याख्या को चुनौती देता है। इस संशोधन के मुताबिक, अमेरिका की धरती पर पैदा होने वाले हर शख्स को नागरिकता मिलती है। कानून के जानकारों को लगता है कि इस ऑर्डर के खिलाफ कोर्ट में जमकर केस होंगे।

इस पूरे विवाद की जड़ में ट्रम्प का ये दावा है कि जिन बच्चों के माता-पिता गैरकानूनी तौर पर अमेरिका में रह रहे हैं या फिर अस्थायी वीजा पर हैं, उन्हें ऑटोमेटिकली अमेरिकी नागरिकता नहीं मिलनी चाहिए। इस फैसले से भारतीय-अमेरिकी समुदाय में नाराजगी है। इनमें कई लोग वर्षों से ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे हैं। अब वे अपने परिवारों के भविष्य को लेकर डरे हुए हैं।

राजनीतिक और सामुदायिक प्रतिक्रियाए 

भारतीय-अमेरिकी सांसद रो खन्ना ने इस आदेश की सोशल मीडिया पर आलोचना की। उन्होंने कहा,  'ट्रम्प के आदेश से सिर्फ उन बच्चों की जन्मसिद्ध नागरिकता नहीं छीनी जा रही है जिनके माता-पिता अवैध रूप से अमेरिका में हैं। बल्कि 'कानूनी' इमिग्रेंट्स, जो स्टूडेंट वीजा, H1B/H2B वीजा या बिजनेस वीजा पर हैं, उनके बच्चों का भी हक छीना जा रहा है। ये बात तो अब साफ हो गई कि रिपब्लिकन कानूनी इमिग्रेशन के कितने पक्षधर हैं।' 

इम्प्रूव द ड्रीम के संस्थापक दीप पटेल ने इसके व्यापक असर पर चिंता जताई और कानूनी हल की मांग की। उन्होंने कहा, 'हालांकि कोर्ट इस आदेश को रोक देगा, लेकिन इसके होने की संभावना ही दिखाती है कि 'अमेरिकाज चिल्ड्रन एक्ट' जैसे कानून की जरूरत क्यों है। अमेरिका में कानूनी तौर पर पले-बढ़े और शिक्षित बच्चे अमेरिकी हैं और उन्हें नागरिकता मिलनी ही चाहिए।'

भारतीय-अमेरिकी इमिग्रेशन वकील कार्तिकेय तन्ना ने इस आदेशमें कानूनी खामियों की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा, 'ट्रम्प का जन्मसिद्ध नागरिकता खत्म करने वाला कार्यकारी आदेश कोर्ट में फेल हो जाएगा। जहां तक ये वर्क वीजा वालों पर लागू होता है। लंबे समय के वीजा जैसे H-1B, L-1 आदि वालों पर अमेरिकी कानूनों का पूरा असर होता है। ये लोग टैक्स देते हैं और IRS के 'सबस्टेंशियल प्रेजेंस टेस्ट' को पूरा करते हैं। हो सकता है ट्रम्प ने वर्क वीजा होल्डर्स को इसलिए शामिल किया हो ताकि पूरा आदेश ही फेल हो जाए और वो कोर्ट को दोषी ठहरा सकें, साथ ही अपने समर्थकों को खुश भी रख सकें।'

कारोबारी समुदाय की चिंताएं 

भारतीय-अमेरिकी उद्यमी शील मोहनोत ने इस आदेश को साफ तौर पर असंवैधानिक बताया। उन्होंने कहा, 'यहां असली मुद्दा ग्रीन कार्ड की देश-वार सीमा है जो हमारे इमिग्रेशन सिस्टम में असमानता को बढ़ाती है। अभी किसी एक देश के नागरिकों को सिर्फ 7% ग्रीन कार्ड मिल सकते हैं। इसका मतलब है कि भारतीयों को अक्सर ग्रीन कार्ड के लिए 10-20 साल या उससे अधिक इंतजार करना पड़ता है। ट्रम्प की योजना के तहत, इन देशों के इमिग्रेंट्स के बच्चे, जो अस्थायी दर्जे पर हैं, अपना जन्मसिद्ध अमेरिकी नागरिकता का अधिकार खो देंगे।'

फेयर अमेरिका के संस्थापक अनुज ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि जन्मसिद्ध नागरिकता खत्म करने वाला एग्जीक्यूटिव ऑर्डर सुप्रीम कोर्ट में टिक पाएगा। लेकिन जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव उन लोगों के लिए दोधारी तलवार की तरह है जो ग्रीन कार्ड के अंतहीन इंतजार में फंसे हुए हैं।' 

सैन फ्रांसिस्को के एक डेटा आर्किटेक्ट सिद्धार्थ ने आर्थिक नुकसान की चेतावनी दी। उन्होंने कहा, 'लंबे समय के वीजा होल्डर्स के लिए जन्मसिद्ध नागरिकता खत्म करना गलत और नुकसानदेह दोनों है। इससे प्रतिभाशाली लोग अमेरिका में काम करने से हिचकिचाएंगे, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को नुकसान होगा।'

कानूनी और नागरिक अधिकारों से जुड़ी चुनौतियां 

भारतीय-अमेरिकी समुदाय के नेता अजय भुटोरिया ने भी इस आदेश की निंदा की और इसकी कानूनी कमजोरियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि चौदहवें संशोधन में साफ-साफ कहा गया है कि अमेरिका में पैदा होने वालों को नागरिकता मिलेगी। इस नियम को बदलने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत है, न कि किसी एग्जीक्यूटिव ऑर्डर की। संविधान में संशोधन करना बेहद मुश्किल काम है।' 

भुटोरिया ने स्थापित कानूनी मिसालों की ओर भी इशारा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट का यूनाइटेड स्टेट्स बनाम वॉन्ग किम आर्क का फैसला भी शामिल है। इसने एक सदी से ज्यादा समय से जन्मसिद्ध नागरिकता को बरकरार रखा है। ACLU जैसे नागरिक अधिकार संगठनों ने पहले ही कोर्ट में इस ऑर्डर को चुनौती देने की योजना बना ली है। भुटारिया ने कहा कि ये कानूनी लड़ाई शायद सुप्रीम कोर्ट तक जाएगी, जहां जजों को ये तय करना होगा कि क्या एग्जीक्यूटिव ब्रांच अकेले ही संविधान की व्याख्या बदल सकती है। 

जैसे-जैसे इस सरकारी आदेश को लेकर कानूनी और राजनीतिक लड़ाई जारी है, भारतीय-अमेरिकी समुदाय अपने परिवारों, कानूनी तौर पर रह रहे प्रवासियों और पूरे अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर इसके संभावित असर को लेकर बहुत चिंतित है। जानकारों का मानना है कि इस आदेश को अदालतों में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन इसके राजनीतिक परिणाम आने वाले कई सालों तक देश की आव्रजन नीति पर बहस को प्रभावित करते रहेंगे।

 

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