भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक मंदी के खतरों के मुकाबले अपेक्षाकृत कम संवेदनशील है और संतुलित नीति समर्थन से देश मौजूदा अस्थिरता को अवसर में बदल सकता है। यह जानकारी आरबीआई की अप्रैल बुलेटिन में प्रकाशित "स्टेट ऑफ द इकोनॉमी" शीर्षक वाले लेख में दी गई है। आरबीआई ने कहा, “वैश्विक आर्थिक परिदृश्य कमजोर हो सकता है जिससे भारत की वृद्धि दर पर बाहरी मांग में गिरावट का असर पड़ सकता है, लेकिन घरेलू खपत और निवेश जैसे विकास इंजन बाहरी दबावों के मुकाबले ज्यादा मजबूत हैं।”
मौजूदा स्थिति में अवसर
आरबीआई के बुलेटिन के अनुसार, भारत के मजबूत घरेलू आर्थिक संकेतकों और सुदृढ़ मैक्रो-आर्थिक नींव के चलते देश ने वैश्विक व्यापार तनावों के बावजूद मजबूती दिखाई है। इस साल सामान्य से अधिक मानसून के पूर्वानुमान के चलते कृषि क्षेत्र की संभावनाएं भी बेहतर दिख रही हैं।
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मुद्रास्फीति में राहत
मार्च में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति गिरकर 3.34 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो पांच साल से अधिक समय में सबसे निचला स्तर है। खाद्य वस्तुओं की कीमतों में नरमी आने से यह राहत मिली है, जिससे आरबीआई को नीति दरों में और कटौती की गुंजाइश मिल सकती है। इस महीने की शुरुआत में आरबीआई ने लगातार दूसरी बार अपनी प्रमुख नीति दरों में कटौती की और अपने मौद्रिक रुख को नरम किया। हालांकि, उसने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि अनुमान को 6.7 प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है।
आरबीआई ने आगाह किया कि वैश्विक वित्तीय स्थितियों में अस्थिरता से उभरती अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हो सकती हैं और यह एक बार फिर दुनिया में मुद्रास्फीति को बढ़ावा दे सकती है। बुलेटिन में कहा गया है कि भारत आपूर्ति श्रृंखला के पुनर्गठन, विविध एफडीआई स्रोतों, और वैश्विक निवेशकों की रुचि का लाभ उठा सकता है। भारत की सेवाएं निर्यात और विदेशी धन प्रेषण इसकी चालू खाता स्थिति को स्थिर बनाए रखने में मदद कर रहे हैं।
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