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अमेरिकी टैरिफ के साइड इफेक्ट, भारत के इंजीनियरिंग निर्यात में बड़ी गिरावट

फरवरी में इंजीनियरिंग निर्यात 9.94 बिलियन डॉलर से घटकर 9.08 बिलियन डॉलर हो गया। इसने नौ महीनों से जारी ग्रोथ का ट्रेंड खत्म कर दिया।

इस गिरावट के बावजूद अमेरिका भारत के इंजीनियरिंग उत्पादों का सबसे बड़ा आयातक बना हुआ है। / REUTERS/Fabian Bimmer/File Photo

भारत के इंजीनियरिंग निर्यात में फरवरी 2025 में 8.6 फीसदी की सालाना गिरावट दर्ज की गई है। इसका मुख्य कारण अमेरिका की तरफ से नए टैरिफ की घोषणा के बाद स्टील और एल्युमीनियम शिपमेंट में भारी गिरावट को माना जा रहा है। 

यह पहली बार है जब अप्रैल 2024 के बाद निर्यात में गिरावट आई है। इसके बाद उद्योग जगत ने निर्यात में विविधता और रणनीतिक व्यापार समझौतों की मांग  तेज कर दी है ताकि आगे नुकसान कम किया जा सके।  

फरवरी में इंजीनियरिंग निर्यात 9.94 बिलियन डॉलर से घटकर 9.08 बिलियन डॉलर हो गया। इसने नौ महीनों से जारी ग्रोथ का ट्रेंड खत्म कर दिया। हालांकि अप्रैल-फरवरी के दौरान कुल वृद्धि  7.97%  रही और यह 105.85 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया लेकिन फरवरी में यह गिरावट दर्शाती है कि भविष्य के लिए चुनौतियों कम नहीं हैं। 

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ईईपीसी इंडिया के चेयरमैन पंकज चड्ढा  ने कहा कि इस गिरावट की मुख्य वजह एल्युमीनियम और उससे जुड़े उत्पादों के निर्यात में 58% और आयरन व स्टील के निर्यात में 40% की गिरावट है। इसके अलावा जहाज, नाव और एयरक्राफ्ट कंपोनेंट्स के निर्यात में भी उल्लेखनीय कमी आई है। 

हालांकि इस गिरावट के बावजूद अमेरिका भारत के इंजीनियरिंग उत्पादों का सबसे बड़ा आयातक बना हुआ है। उसके बाद यूएई और सऊदी अरब हैं। फरवरी में  अमेरिका को भारत से निर्यात 5.8% बढ़कर 1.66 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया।  

अमेरिका द्वारा 2 अप्रैल 2025 से लागू होने वाले टैरिफ के कारण भारत के इंजीनियरिंग निर्यात के लिए स्थिति और चुनौतीपूर्ण हो सकती है। ट्रंप प्रशासन के हाई टैरिफ नेशन के रुख और व्यापारिक भागीदारों पर प्रतिबंधात्मक उपायों से बाजार में भारी अस्थिरता बनी हुई है।  

इसके जवाब में, भारत सरकार कई अन्य देशों के साथ नए फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (FTA) पर कार्य कर रही है। भारत यूएई, ऑस्ट्रेलिया और EFTA क्षेत्र  के साथ पहले ही ऐसे समझौते कर चुका है। यूरोपियन यूनियन, यूनाइटेड किंगडम, गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल और पेरू के साथ बातचीत चल रही है ।  

भारतीय इंजीनियरिंग उद्योग को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ उसे अमेरिका में अपने मार्केट शेयर को बचाना है, वहीं चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से होने वाले ट्रेड डायवर्जन को कंट्रोल भी करना है। ।  

एक्सपर्ट्स का कहना है कि आगे भारत की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह अपने निर्यात बाजारों को कितना डायवर्सीफाई कर सकता है और कितने फायदेमंद व्यापार समझौते हासिल कर सकता है। 

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