मास्टरकार्ड फाउंडेशन की प्रेसिडेंट और सीईओ रीता रॉय ने अपने पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया है। हालांकि वह 2025 तक फाउंडेशन को लीड करती रहेंगी, जब तक कि उनकी जगह कोई और नहीं आ जाता।मास्टरकार्ड फाउंडेशन के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन जीन अब्दल्ला ने एक सुचारू बदलाव का भरोसा दिलाया है।
उन्होंने कहा, 'रीता मास्टरकार्ड फाउंडेशन की एक बेहतरीन सीईओ रहीं हैं। नतीजे सबके सामने हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि उन्होंने जो पार्टनर नेटवर्क और काबिल, मूल्यों पर आधारित संस्था बनाई है, वो हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए सबसे बड़ी देन है। मैं रीता के साथ मिलकर उनके उत्तराधिकारी की तलाश करने और मास्टरकार्ड फाउंडेशन के लिए एक और शानदार साल बिताने का इंतजार कर रहा हूं।'
संस्था की तरफ से बताया गया है कि रीता रॉय को 2008 में मास्टरकार्ड फाउंडेशन का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था। इसके दो साल बाद कनाडा में इसे मास्टरकार्ड से अलग एक स्वतंत्र संस्था के तौर पर स्थापित किया गया। उनके नेतृत्व में, फाउंडेशन दुनिया के सबसे बड़े और सबसे प्रभावशाली परोपकारी संगठनों में से एक बन गया। 50 अरब डॉलर से अधिक की संपत्ति के साथ फाउंडेशन ने अफ्रीका और कनाडा के आदिवासी समुदायों में कार्यक्रमों के लिए 10 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है। इससे लाखों युवाओं पर सकारात्मक असर पड़ा है।
अपने कार्यकाल के बारे में रीता रॉय ने कहा, 'मास्टरकार्ड फाउंडेशन के मिशन की सेवा करना जीवन बदलने वाला अनुभव रहा है। फाउंडेशन का निर्माण करना और इसे दुनिया में अच्छाई के लिए एक शक्ति बनाने की दिशा में ले जाना मेरे लिए सम्मान की बात रही है। मैं अपने सहयोगियों और हमारे भागीदारों के प्रति आभारी हूं, जिस प्रभाव को हमने मिलकर हासिल किया है। सबसे बढ़कर, मुझे हमारे मूल्यों पर गर्व है। इसके साथ ही युवाओं, हमारे अफ्रीकी भागीदारों और कनाडा के आदिवासी समुदायों के साथ इस यात्रा को तय करने पर गर्व है।'
रीता रॉय का जन्म मलेशिया में हुआ था। उनके पिता दुर्गादास एक डॉक्टर थे और उनकी मां एमिली दक्षिणी थाईलैंड के एक चीनी परिवार से एक नर्स थीं। जब रीता 14 साल की थीं तब उनके पिता का निधन हो गया था। उनकी परवरिश उनकी मां ने की, जिन्होंने रीता की शिक्षा और आत्मनिर्भरता के महत्व पर जोर दिया।
अपने शुरुआती नेतृत्व में रीता रॉय ने अफ्रीका के युवाओं की क्षमता में विश्वास करते हुए फाउंडेशन के प्रयासों को अफ्रीका पर केंद्रित करने का साहसिक निर्णय लिया। उन्होंने अफ्रीकी उद्यमियों, शिक्षकों और संस्थानों के साथ दीर्घकालिक साझेदारी बनाई। इससे फाउंडेशन की युवाओं को सशक्त बनाने की प्रतिबद्धता मजबूत हुई।
इस दृष्टिकोण ने प्रमुख पहलों को जन्म दिया। जैसे कि 2012 में मास्टरकार्ड फाउंडेशन स्कॉलर्स प्रोग्राम।जिसने 40,000 से अधिक युवा अफ्रीकियों को उच्च शिक्षा पूरी करने और करियर बनाने में मदद की है। 2018 में फाउंडेशन ने यंग अफ्रीका वर्क्स रणनीति शुरू की। इसका लक्ष्य 2030 तक 3 करोड़ युवाओं को सम्मानजनक काम पाने में सक्षम बनाना है। वर्तमान में 1.3 करोड़ युवा काम कर रहे हैं। इनमें वर्कफोर्स का 53 प्रतिशत महिलाएं हैं, जिनको इस कार्यक्रम से मदद मिली है।
कनाडा के ट्रुथ एंड रिकॉन्सिलिएशन कमीशन की 2015 की रिपोर्ट के जवाब में रीता रॉय ने फाउंडेशन का नेतृत्व करते हुए आदिवासी समुदायों के साथ मिलकर युवाओं की शिक्षा और आर्थिक सशक्तिकरण का समर्थन किया। इसके परिणामस्वरूप शुरू हुए एलीवी (EleV) कार्यक्रम ने 38,000 आदिवासी युवाओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने और अर्थपूर्ण आजीविका हासिल करने में मदद की है।
COVID-19 महामारी के दौरान रीता रॉय ने मास्टरकार्ड फाउंडेशन और अफ्रीका सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (अफ्रीका सीडीसी) के बीच 1.5 बिलियन डॉलर की साझेदारी का नेतृत्व किया। इसका मकसद अफ्रीका में टीकों के वितरण को बेहतर बनाना था। इस पहल ने 40,000 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित और तैनात किया। इससे वयस्कों में टीकाकरण की दर में 3% से बढ़कर 53% तक की उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
2024 में रीता रॉय और फाउंडेशन के बोर्ड ने मास्टरकार्ड फाउंडेशन एसेट मैनेजमेंट (MFAM) की स्थापना की। यह एक स्वतंत्र निवेश शाखा है। इसका मकसद दीर्घकालिक रूप से फाउंडेशन के परोपकारी मिशन को बनाए रखना है। MFAM अपनी तरह का सबसे बड़ा ग्रीनफील्ड निवेश स्टार्ट-अप में से एक है।
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