लॉस एंजिल्स स्थित मीडिया एक्जीक्यूटिव और जोकॉलो पब्लिक स्क्वॉयर की डायरेक्टर मॉइरा शौरी मानती हैं कि भारतीय होने का सार धार्मिक या सांस्कृतिक रूढ़ियों से कहीं आगे है। भारतीय, हिंदू संस्कृति और एक निश्चित रूढ़ि से बहुत आगे है। उन्होंने अबू धाबी में इंडियास्पोरा समिट फोरम फॉर गुड (IFG) 2025 के दौरान न्यू इंडिया अब्रॉड को एक साक्षात्कार के दौरान ये बातें कहीं।
उन्होंने कहा, 'मैं ईसाई हूं, वास्तव में मैं कैथोलिक हूं और मैं एंग्लो-इंडियन हूं। मेरे पूर्वज, जो भी थे, 1800 के प्रारंभ में भारत गए और विवाह किया और यहां मैं हूं। मैं इस सम्मेलन में किसी और की तरह खुद को भारतीय मानती हूं।'
मॉइरा शौरी का जन्म और पालन-पोषण नई दिल्ली में हुआ। उन्होंने सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़ाई की और फिर अमेरिका के एमर्सन कॉलेज से आगे की पढ़ाई पूरी की। मीडिया इंडस्ट्री में उनका 20 साल से अधिक का अनुभव है। 1996 में उन्होंने MTV इंडिया लॉन्च किया था। अब वो एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के जोकाॅलो पब्लिक स्क्वेयर की हेड हैं। ये एक मीडिया ऑर्गेनाइजेशन है जो जर्नलिज्म और इवेंट्स के जरिए पब्लिक डिस्कशन पर फोकस करता है।
जैसे-जैसे भारतीय प्रवासी अमेरिका, ब्रिटेन से लेकर कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका तक दुनियाभर में फैल रहे हैं, शौरी को लगता है कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान एक अहम जोड़ने वाली ताकत है। लेकिन उनका मानना है कि विदेशों में रहने वाले सभी भारतीयों को एकजुट करने के लिए कोई एक बैनर नहीं है।
मॉइरा कहती हैं, 'अपनी संस्कृति को दुनिया में फैलाकर दूसरी संस्कृतियों को हमारे साथ जुड़ने, आपस में मिलकर नई चीजें बनाने, भांगड़ा को हिप-हॉप में मिलाने का मौका देकर हम उसमें नयापन जोड़ रहे हैं। संगीत तो एक विश्वव्यापी भाषा है। हम उस चीज में आनंद बढ़ा रहे हैं जो शायद अपने आप में बहुत पुरानी हो चुकी थी।'
शौरी रोजमर्रा की जिंदगी में भारतीय संस्कृति को शामिल करने की वकालत करती हैं। वो कहती हैं, 'मैं कभी भी अपने भारतीय होने का डंका नहीं बजाना छोड़ती। जब भी मैं कोई पार्टी रखती हूं, चाहे वो किसी बड़े नेता के लिए हो या किसी किताब के लॉन्च के लिए, मैं भारतीय खाना ही परोसती हूं। इसकी वजह ये है कि वो मेरा खाना है। अगर आप मेरे घर आ रहे हैं, तो आपको मेरा खाना ही खाना पड़ेगा।'
वो दूसरी पीढ़ी के भारतीय-अमेरिकियों को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने में आने वाली मुश्किलों को भी समझती हैं। उन्होंने माना, 'मुझे सबसे बड़ा नुकसान भाषा का नुकसान लगा है।' उन्होंने बताया कि 'कैसे उनका अपना परिवार, जिसकी जड़ें भारत के कई इलाकों में हैं, अंग्रेजी में पला-बढ़ा। लेकिन मैं अपने बच्चों में संस्कृति को खाने, भारतीय नृत्य और संगीत के जरिए भर सकती हूं।'
शौरी ने उप-राष्ट्रीय कूटनीति के महत्व पर भी जोर दिया, खासकर संकट के समय में। हाल ही में लॉस एंजिल्स में लगी आग के बाद उन्होंने बताया कि जरूरत के समय अक्सर सरकारों के बजाय समुदाय आगे आते हैं। वो कहती हैं, 'हम मार्च में एक कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं ताकि इस बारे में बात की जा सके कि खतरनाक समय में हमें किस तरह के गठबंधन की जरूरत है। शहरों और लोगों का आपस में जुड़ना, राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक दलों में होने वाले बदलावों से कहीं ज्यादा फर्क डाल सकता है।'
इंडियास्पोरा की लंबे समय से सदस्य रह चुकीं शौरी इस संगठन को एक बेहतरीन मंच मानती हैं, जहां प्रवासी समुदाय के सभी सदस्य बराबर के तौर पर योगदान देते हैं। उन्होंने इंडियास्पोरा फॉर गुड समिट को सबसे वैश्विक सम्मेलन बताया।
वह कहती हैं, 'भारत और भारतीय प्रवासी समुदाय में हो रही सभी सकारात्मक चीजों का जश्न मनाने के लिए एक साथ आना सराहनीय है। हम जिस भी देश में जाते हैं, वहां हम काफी अच्छा योगदान करते हैं।'
विदेशों में रहने वाले युवा भारतीयों के लिए उनका मानना है कि उन्हें अपनी पहचान तलाशने की आजादी मिलनी चाहिए। वो मानती हैं, 'ये थोड़ा पेचीदा है। मेरे चार बच्चों में से हर एक का भारत से अलग रिश्ता है। लेकिन भारत दुनिया की सबसे लंबे समय से चली आ रही संस्कृति है। कोई कितना भी अपने बाल रंग ले, कान छिदवा ले या टैटू बनवा ले, वो फिर भी भारतीय ही रहेगा। और वो भारतीय होने का उसका अपना तरीका है, जिसे स्वीकार किया जाना चाहिए।'
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