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कनाडाई चुनाव: खालसा सृजन दिवस बनेगा भारतवंशियों के लिए भाग्यशाली?

वैशाखी का मुख्य धार्मिक आयोजन तख़्त श्री केसगढ़ साहिब, स्वर्ण मंदिर और तख़्त श्री दमदमा साहिब में होता है।

कनाडा में सिख सांसदों के साथ बैसाखी के अवसर पर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो। / X/@randeepssarai

दीवाली के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार वैशाखी क्या कनाडा में होने वाले संघीय चुनावों में भारतीय मूल के करीब 50 प्रत्याशियों की किस्मत का सितारा बुलंद करेगा? इन चुनावों का समय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय खासकर पंजाबी समुदाय इस वक्त वैशाखी के जश्न में डूबा है। पंजाबी में इसे खालसा सृजन दिवस भी कहा जाता है।

1699 में इसी दिन सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने पंजाब के ऐतिहासिक नगर आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी। गुरु नानक देव जी के जन्म के लगभग 230 वर्षों बाद गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों को संत-सिपाही की पहचान दी थी और खालसा पंथ की नींव रखी थी।

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खालसा की स्थापना की सालगिरह के अलावा वैशाखी को पारंपरिक रूप से उत्तर भारत में गेहूं की फसल की कटाई के मौसम की शुरुआत से जोड़ा जाता है। यह उत्तर भारत के किसानों की सामाजिक और आर्थिक प्रगति का भी प्रतीक है। कई भारतीय समुदायों में यह नववर्ष की शुरुआत का भी समय होता है।

वैशाखी का मुख्य धार्मिक आयोजन तख़्त श्री केसगढ़ साहिब (श्री आनंदपुर साहिब), स्वर्ण मंदिर (अमृतसर) और तख़्त श्री दमदमा साहिब (तलवंडी साबो) में होता है। सिख समुदाय के सदस्य दुनियाभर में गुरुद्वारों में विशेष सभाओं के माध्यम से ही नहीं बल्कि सामाजिक, राजनीतिक, कला, संस्कृति, खेल एवं आर्थिक प्रगति को प्रदर्शित करके हफ्तों तक जश्न मनाते हैं।

विदेशों में बसे पंजाबी समुदाय के लिए वैशाखी एक सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है। हाल ही में उत्तरी अमेरिकी के कुछ शहरों में छोटे विमानों से पुष्प वर्षा की परंपरा भी शुरू हुई है।

इस साल कनाडा में वैशाखी का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि संसदीय चुनाव इसी महीने के अंतिम सप्ताह में होने हैं। 2025 के संघीय चुनावों में हिस्सा ले रहे भारतीय मूल के उम्मीदवारों में 60 प्रतिशत से अधिक सिख हैं।

सिख कनाडा में उभरते हुए राजनीतिक अल्पसंख्यक हैं इसलिए कनाडा के प्रांतीय और संघीय दोनों स्तरों के राजनीतिक दलों के नेता टोरंटो, वैंकूवर, सरे, कैलगरी, एडमंटन और ब्रैम्पटन में होने वाले नगर कीर्तनों या सभाओं में उपस्थिति दर्ज कराते हैं। मतदान से एक दिन पहले ग्रेटर टोरंटो एरिया में सिखों का विशाल नगर कीर्तन निकलेगा। 

यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे राष्ट्रों ने न केवल सिख उत्सवों को मान्यता दी है बल्कि कई देशों ने वैशाखी पर सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया है। 2015 में मलेशिया सरकार ने वैशाखी पर अवकाश की घोषणा की थी। 1999 में खालसा के 300 वर्ष पूरे होने पर कनाडा ने स्मारक डाक टिकट जारी किया था। 

अब वैशाखी उत्सव कनाडाई संसद सहित कॉमनवेल्थ देशों की विधानसभाओं में भी मनाया जाता है। अमेरिका में न्यूयॉर्क, सैन फ्रांसिस्को, लॉस एंजेलिस आदि में सिख परेड हर साल निकाली जाती है। इंग्लैंड में लंदन के अलावा बर्मिंघम में भी यह उत्सव प्रमुख रूप से मनाया जाता है।

कनाडा में सिखों को अपनी पहचान बनाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा है। 1907 में ब्रिटिश कोलंबिया में भारतीयों से मतदान का अधिकार तक छीन लिया गया था। 40 वर्षों के संघर्ष के बाद 1947 में मतदान का अधिकार वापस मिला। 

1950 में ज्ञानी निरंजन सिंह ग्रेवाल ब्रिटिश कोलंबिया के मिशन शहर की सिटी काउंसिल में चुने जाने वाले पहले सिख बने। गुरबक्श सिंह माली कनाडा की हाउस ऑफ कॉमन्स में पहले पगड़ीधारी सिख सांसद बने।

कनाडा में पहला नगर कीर्तन 19 जनवरी 1908 को वैंकूवर की सेकंड एवेन्यू पर निकाला गया था। 28 अगस्त 1912 को हरदयाल सिंह अटवाल कनाडा में जन्मे पहले सिख थे। 1978 से कनाडा में बड़े स्तर पर नगर कीर्तन होने लगे। तब गुरु अमर दास जी की 500वीं जयंती पर विशाल नगर कीर्तन निकाला गया था। तभी से यह परंपरा जारी है।

वैशाखी केवल धार्मिक पर्व नहीं बल्कि सांस्कृतिक संवाद, विविधता का उत्सव और सिख समुदाय की पहचान का वैश्विक प्रतीक बन चुका है।

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