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महाकुंभ में समा रही हैं दुनिया भर की आस्थाएं

महाकुंभ में आस्थाओं का ही नहीं, दुनियाभर की अलग-अलग विचारधाराओं, उद्देश्यों और लक्ष्यों का भी समागम हो रहा है।

आस्था और अध्यात्म के समागम में जुट रहे हैं दुनियाभर के लोग। / X@MahaKumbh_2025

उत्तर भारत की तीर्थनगरी प्रयागराज इन दिनों दुनियाभर की धर्म-ध्वजाओं और विश्व की तमाम आस्थाओं का केंद्र बनी हुई है। महाकुंभ के रूप में विश्व के सबसे बड़े मानवीय और धार्मिक आयोजन की शुरुआत के साथ ही पहले शाही स्नान, जिसे अमृत स्नान कहा गया, के दौरान 14 जनवरी को ही करीब 4 करोड़ लोगों ने त्रिवेणी (तीन नदियों के संगम) में आस्था की डुबकी लगाई। पवित्र स्नान करने वालों में बेशक भारतीय लोग अधिक थे लेकिन विश्न के इस अनूठे आयोजन का हिस्सा बनने के लिए हजारों की संख्या में दुनिया के तमाम देशो से लोग पहुंचे हैं, और पहुंच रहे हैं। भारत सरकार का दावा है कि 45 दिन तक चलने वाले इस महाआयोजन में 40 करोड़ लोग जुटेंगे और इन लोगों में दुनिया के 180 देशों के आस्थावान और उत्साही पर्यटक भी महाकुंभ के साक्षी होंगे। पहले सात दिन में ही अमेरिका, ब्रिटेन, जापान फिजी, फिनलैंड, गुयाना, मलेशिया, मॉरीशस, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, त्रिनिदाद और टोबैगो तथा संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के प्रतिनिधि, पर्यटक और आस्थावान लोग भारत की पवित्र नदियों के संगम में स्नान करते हुए अद्भुत अनुभूति प्राप्त कर चुके हैं और खुले मन से स्वीकार भी कर चुके हैं। 

विदेश से आने वालों में लोगों में आस्थावान, धार्मिक और पर्यटक तो हैं ही, सांधु-संत भी हैं। बहुत से विदेशी साधु-संत इस आयोजन से प्रभावित होकर उत्तर भारत की तीर्थनगरी प्रयागराज पहुंचे हैं तो कई धनाढ्य लोगों ने अपनी आस्थाओं में परिवर्तन और शिक्षा-दीक्षा की खातिर महाकुंभ का रुख किया है। एपल के को फाउंडर और अरबपति कारोबारी स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स भी महाकुंभ में हिस्सा हैं। वह निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि के शिविर में प्रवास कर रही हैं। जॉब्स 13 जनवरी को प्रयागराज पहुंची थीं। 16 जनवरी को उन्होंने अपने गुरु आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि से दीक्षा ली। लॉरेन पॉवेल को महाकाली के बीज मंत्र की दीक्षा दी गई है। वह ॐ क्रीं महाकालिका नमः का जाप करेंगी। यही नहीं, महाकुंभ के दौरान उनका नया नामकरण कमला के रूप में हो गया है। वहीं, मॉरीशस से महाकुंभ पहुंचे एक कंटेंट क्रिएटर की भावनाएं उस समय भारतीय अवधारणा 'वसुधैव कुटुम्बकम' से मेल खाती दिखीं जब उन्होंने कहा कि इस आयोजन को देखकर ऐसा महसूस होता है कि जैसे हम एक वैश्विक परिवार से हैं...यह भगवान के होने, कहीं होने का सवाल है...उनके रास्ते पर चलने का, यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए यहां रहने का उद्देश्य है। तीर्थ नगर की गलियों में थाईलैंड, रूस, जर्मनी से लेकर जापान तक के युवा सनातन संस्कृति को समझने के लिए विहार कर रहे हैं। थाईलैंड के चूललोंगकोर्न विश्वविद्यालय के शोध छात्र बवासा आवाहन नगर में महेशानंद बन गए हैं। रूस की राजधानी मास्को से आईं वोल्गा गंगा बनकर घूम रही हैं। वह बाबाओं की दुनिया का साक्षी बनकर अभिभूत हैं उठीं। उन्होंने सिद्ध पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी आत्मानंद पुरी से दीक्षा भी ली। वह भगवा रंग में पूरी तरह रंग चुकी हैं। जापान की कुमिको और जर्मनी के पीटर मार्ट भी संन्यासी चोला रंगाकर सनातन संस्कृति को समझने का प्रयास कर रहे हैं। महाकुंभ में आस्थाओं का ही नहीं, दुनियाभर की अलग-अलग विचारधाराओं, उद्देश्यों और लक्ष्यों का भी समागम हो रहा है। 

अब तक (सात दिन) का आयोजन करोड़ों आस्थावानों को संगम तक ले आया है और उम्मीद की जा रही है कि मौनी अमावस्या को होने वाले अगले अमृत स्नान (29 जनवरी) पर 10 करोड़ लोग संगम में डुबकी लगाएंगे। ऐसे में व्यवस्थाएं ही न केवल सुचारू दिख रही हैं बल्कि दुनियाभर से आने वाले लोगों के बीच चर्चाओं का सबब बनी हुई हैं। छोटे-छोटे द्वीप देशों से आये लोग एक साथ इतने लोगों को देखकर हतप्रभ हैं। हैरानी के साथ वे व्यवस्थाओं की तारीफ कर रहे हैं और उत्तर प्रदेश सरकार को साधुवाद दे रहे हैं। बेशक, इस आयोजन के लिए उत्तर भारत के इस राज्य की सरकार बधाई की पात्र है। हर अमृत स्नान पर किसी एक देश की आबादी जितने लोगों को संभालना आसान नहीं है।

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