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अमेरिका में भारतीय मूल के इस शख्स ने पुराने इमिग्रेशन सिस्टम के खिलाफ छेड़ी है जंग

स्नातक होने से दो साल पहले पटेल को 21 साल की उम्र में 'एजिंग आउट' का सामना करना पड़ा, लेकिन वे छात्र वीजा पर देश में बने रहे। ग्रीन कार्ड हासिल करने की कोशिश के बावजूद पटेल को अहसास हुआ कि यह बहुत मुश्किल है और इसके लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है।

इम्प्रूव द ड्रीम के संस्थापक दीप पटेल। / ourtesy/Dip Patel

सोचो, तुम एक देश में पले-बढ़े, वहां के स्कूलों में पढ़े और पूरा जीवन बनाया। लेकिन 21 साल की उम्र में तुम्हें देश से निकाल दिया जाए। सही नहीं है, है ना? लेकिन अमेरिका में सैकड़ों हजारों युवा प्रवासियों के लिए ये सच है, जिनके पास ग्रीन कार्ड पाने का कोई रास्ता नहीं है। इसमें इनकी कोई गलती नहीं है, बल्कि ये एक ऐसी व्यवस्था की वजह से है जो समय के साथ अटकी हुई है। लेकिन बदलाव आने वाला है। और ये सब दीप पटेल की वजह से।

भारत में जन्मे दीप पटेल (कनाडा में थोड़ा समय बिताने के बाद) नौ साल की उम्र में दक्षिणी इलिनोइस, अमेरिका आ गए। हाई स्कूल खत्म करने के बाद उन्होंने 2019 में फार्मेसी में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। स्नातक होने से दो साल पहले पटेल को 21 साल की उम्र में 'एजिंग आउट' का सामना करना पड़ा, लेकिन वे छात्र वीजा पर देश में बने रहे।

'एजिंग आउट' का मतलब है कि अगर माता-पिता को 21 साल की उम्र तक ग्रीन कार्ड नहीं मिलता है, तो उनके छोटे बच्चों को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सकता है। बेहतर हालात में, वे रहने का कोई रास्ता ढूंढ़ लेते हैं। ग्रीन कार्ड हासिल करने की कोशिश के बावजूद पटेल को अहसास हुआ कि यह बहुत मुश्किल है। हालांकि, वे अपने ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (OPT) प्रोग्राम में नामांकन का लाभ उठा सके और थोड़े समय के लिए राहत पा सके।

पटेल ने बताया कि स्नातक होने के बाद थोड़े समय के लिए मेरे लिए चीजें ठीक हो गईं। OPT के जरिये मुझे कुछ सालों के लिए काम करने की अनुमति मिल गई। लेकिन मैं जानता था कि जब यह समय खत्म हो जाएगा, तो मुझे देश छोड़ना पड़ेगा।' अपने बचपन में प्रवास की अनिश्चितता से निराश और कुछ बदलाव लाने के लिए दृढ़संकल्पित होकर पटेल ने 2017 में वकालत शुरू की। इसके साथ ही उन्होंने इम्प्रूव द ड्रीम की स्थापना की, जो अब एक बड़ा जमीनी स्तर का संगठन बन गया है। पटेल ने कहा, हम लंबी अवधि के वीजा धारकों के बच्चों और ग्रीन कार्ड बैकलॉग में फंसे परिवारों के लिए वकालत करते हैं। मुझे खुशी है कि हम अभी तक काफी प्रगति कर पाए हैं।

इस समस्या के मूल कारण की बात करते हुए भारतीय-अमेरिकी को लगता है कि 'अगर प्रवास कानून समय-समय पर अपडेट होते रहते तो यह समस्या उत्पन्न ही नहीं होती। पटेल ने कहा कि पिछले 50 साल से कानूनों में कोई संशोधन नहीं हुआ है। शायद सरकार ने 1950 और 60 के दशक में इन मुद्दों की उम्मीद नहीं की थी। इन्हें अब अपडेट करने का समय आ गया है।'

एक कारण के लिए खड़े होना और बदलाव की मांग करना एक बात है क्योंकि आप पीड़ित हैं। वहीं, एक कारण के लिए खड़े होना और बदलाव की मांग करना दूसरी बात है क्योंकि कई लोग पीड़ित हैं। बाद वाले के लिए लगातार प्रयास, पारदर्शिता और सभी के हितों का संगठित रूप से प्रतिनिधित्व करने की क्षमता की जरूरत होती है। जब रास्ता कठिन होता है या जमीन चुनौतीपूर्ण होती है तो कई लोग पीछे हट जाते हैं। इसीलिए वकालत कोई आसान काम नहीं है। पटेल के लिए, यात्रा का सबसे मुश्किल हिस्सा यह समझना था कि कैसे प्रभावी रूप से वकालत की जाए।

पटेल ने कहा, 'शुरुआत में मेरा इरादा एक बड़े समुदाय या संगठन को बनाने का नहीं था। विचार यह था कि मुझे ऐसे लोगों को ढूंढना है जो मेरी समस्या का समाधान कर सकें। हालांकि, किसी ने इसे प्राथमिकता नहीं दी। जब मुझे अहसास हुआ कि यह केवल मैं नहीं हूं, बहुत से लोग पीड़ित हैं और समाधान ढूंढ़ने के लिए लड़ रहे थे। मैंने फैसला किया कि मैं खुद काम करूंगा। इसके बाद सरकारी अधिकारियों, कांग्रेस के सदस्यों और सीनेटरों से सीधे संपर्क करना शुरू किया। अपनी और दूसरों की कहानी साझा करके बदलाव के लिए समर्थन बनाया।'

हालांकि आगे बढ़ने का रास्ता साफ हो गया था, लेकिन कई सालों में सैकड़ों बैठकों के बाद भी काम शुरू हो पाया। लेकिन पटेल लगातार प्रयास करते रहे। उन्होंने कहा, 'लड़ाई से पीछे हटना कभी आसान नहीं रहा। हम लगातार कोशिश करते रहे, और आखिरकार 2021 में मेरा मूल खाका, अमेरिका'स चिल्ड्रन एक्ट ( America's Children Act ) पेश किया गया। यह बिल लंबी अवधि के वीजा धारकों के बच्चों के लिए समस्या को ठीक करने का लक्ष्य रखता है। जो लोग कम से कम दस साल से अमेरिका में हैं और अमेरिकी विश्वविद्यालय से स्नातक हैं उनके लिए ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का रास्ता साफ करता है। यह बच्चों को व्यवस्था से बाहर होने से भी रोकता है।' पूरे डॉक्यूमेंटेड ड्रीमर्स समुदाय के लिए यह बिल, जो जल्दी ही कांग्रेस में सबसे लोकप्रिय द्विदलीय प्रवास बिल बनने के लिए रैंक में ऊपर चढ़ गया, एक महत्वपूर्ण मील पत्थर और उम्मीद की किरण बन गया।

पिछले कुछ महीनों में इम्प्रूव द ड्रीम की टीम ने प्रशासनिक बदलावों की वकालत करते हुए दोनों पक्षों के सीनेटरों और कांग्रेस के सदस्यों के साथ मिलकर एक पत्र लिखा है। यह पत्र न केवल लंबी अवधि के वीजा धारकों के बच्चों के लिए बल्कि ग्रीन कार्ड बैकलॉग में फंसे लोगों के लिए भी काम करने की अनुमति का आह्वान करता है।

इसमें मुख्य प्रस्ताव यह है कि जिन लोगों के पास अनुमोदित I-140 याचिका है और जो बैकलॉग में हैं उन्हें रोजगार अनुमति पत्र (EAD) दिया जाना चाहिए। लेकिन पटेल यह साफ करते हैं कि लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। लगभग 250,000 लंबी अवधि के वीजा धारकों के बच्चों पर इसका प्रभाव पड़ा है। वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि यह समूह व्यक्तियों को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा शुरू किए गए बच्चों के लिए स्थगित कार्रवाई (DACA) कार्यक्रम से बाहर रख दिया गया था, जिसका उद्देश्य देश में बच्चों के रूप में बड़े हुए प्रवासियों की रक्षा करना और उन्हें काम करने की अनुमति और परमिट देना था।

वर्तमान प्रशासन की और देखते हुए पटेल जोर देते हैं कि हमारे पास अभी भी कुछ समय बाकी है और प्रशासन के पास महत्वपूर्ण सुधार करने का पूर्ण अधिकार है। उन्होंने कहा कि अभी तक कम से कम एक उप-नियामक बदलाव किया जा सकता था जिससे 21 साल की उम्र पूरी होने पर व्यक्तियों को समर्थन मिल सके।'

हालांकि यात्रा लंबी है, लेकिन पटेल और डॉक्यूमेंटेड ड्रीमर्स का दृढ़ संकल्प अटूट है। क्योंकि वे हजारों लोगों के अधिकारों की वकालत कर रहे हैं, जिनका भविष्य अनिश्चित है। 'इम्प्रूव द ड्रीम' एक पूरी तरह से जमीनी स्तर पर काम करने वाला, स्वयंसेवकों पर आधारित संगठन है जिसमें संस्थागत फंडिंग नहीं है। पटेल का कहना है कि 'हमने जागरूकता और बदलाव लाए हैं जो महत्वपूर्ण हैं। यह व्यक्तिगत सफलता की कहानियां हैं जो वाकई मुझे और कई अन्य लोगों को लड़ते रहने के लिए प्रेरित करती हैं। मुझे विश्वास है कि एक दिन हम उस बदलाव को हासिल कर लेंगे जिसका हम लक्ष्य रख रहे हैं।'

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