प्रधानमंत्री मोदी के हाल ही में खत्म हुए अमेरिका दौरे से साफ जाहिर हुआ कि मोदी सरकार और ट्रम्प प्रशासन दोनों ही भारत और अमेरिका के बीच दोस्ती को और मजबूत करने को लेकर कितने प्रतिबद्ध हैं। US इंडिया स्ट्रेटेजिक एंड पार्टनरशिप फोरम (USISPF) के सीईओ मुकेश अघी ने शुक्रवार को कहा कि कुल मिलाकर ये दौरा बहुत अच्छा और काम का रहा। इससे साफ दिखा कि दोनों देश आपसी रिश्ते को मजबूत करने के लिए कटिबद्ध हैं।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के निमंत्रण पर पीएम मोदी 12 और 13 फरवरी को दो दिन के लिए अमेरिका के दौरे पर आए थे। व्हाइट हाउस में दोनों नेताओं की काफी अच्छी मीटिंग हुई जिसने अगले चार सालों के लिए दोनों देशों के रिश्तों की दिशा तय कर दी।
अघी ने इस दौरे के बारे में अपनी राय देते हुए बताया, 'वह (मोदी) राष्ट्रपति ट्रम्प से मिलने वाले चौथे लीडर थे। मीटिंग बहुत अच्छी रही। अहम बात ये है कि प्रधानमंत्री लगभग हर कैबिनेट मिनिस्टर से मिल पाए जो उस समय अपनी पोस्ट पर थे। लेकिन इससे भी ज्यादा अहम बात ये है कि उन्होंने ज्यादा समय जरूरी मुद्दों पर बातचीत की।'
मुकेश अघी ने आगे बताया, 'उन्होंने भू-राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया, खासकर चीन पर। रूस और यूक्रेन के मुद्दों पर भी बात हुई। उन्होंने IMEC (इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक) कॉरिडोर के लिए अपनी सहमति जताई। साथ ही ये भी बताया गया कि राष्ट्रपति के भारत दौरे तक किसी तरह का व्यापार समझौता हो जाएगा।'
अघी ने कहा, 'लेकिन इससे भी ज्यादा अहम बात ये है कि उन्होंने कहा कि साल 2030 तक दोनों देशों के बीच का व्यापार 500 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। दोनों देशों के बीच टैरिफ कम करने पर भी बातचीत हुई। दोनों तरफ से इस पर काम हो रहा है और उम्मीद है कि आगे चलकर एक व्यापार समझौते के तौर पर आपसी व्यापार साझेदारी हो पाएगी।'
उन्होंने कहा, 'मोदी और ट्रम्प के बीच बहुत अच्छे और गर्मजोशी भरे रिश्ते हैं। दोनों में इतनी परिपक्वता है कि वो मुश्किल विषयों पर भी कामयाबी के साथ बात कर सकते हैं। भारत ने टैरिफ के बारे में बात की, जिस पर ट्रम्प बार-बार जोर दे रहे थे। भारत को 'टैरिफ किंग' भी कहा जा रहा है। लेकिन उन्होंने परिपक्व तरीके से इस मुद्दे को निपटाया। मुझे लगता है कि दोनों देशों के लिए फायदेमंद समझौता हुआ है।'
एक सवाल के जवाब में अघी ने कहा कि 'असली मुद्दा सिर्फ टैरिफ नहीं है। असली मुद्दा मार्केट एक्सेस और बराबर का मैदान है। उन्होंने आगे बताया कि बराबर के मैदान में, टैरिफ के साथ-साथ और भी कई चीजें हैं। जैसे, क्वालिटी कंट्रोल सर्टिफिकेशन, एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान ले जाने की सुविधा। कस्टम के मामले में भी समस्याएं हैं। मिसाल के तौर पर आप ग्लोबल सप्लाई चेन का हिस्सा हैं और स्थानीय नियमों की वजह से सामान जल्दी नहीं पहुंच पाता।'
उन्होंने अमेरिकी कंपनियों की उम्मीदों का जिक्र करते हुए कहा, 'ये सिर्फ टैरिफ के बारे में नहीं है। और भी कई बातें हैं, जिनकी वजह से अमेरिकी कंपनियों को प्रभावी ढंग से काम करने में थोड़ी कठिनाई होती है।उन्होंने बताया कि भारत को अगर 7-8% या उससे ज्यादा की ग्रोथ करनी है, तो उसे ज्यादा एक्सपोर्ट करना होगा। इसके लिए जरूरी है कि उसके प्रोडक्ट क्वालिटी और दाम दोनों में कॉम्पिटिटिव हों।'
उन्होंने कहा, 'भारत को ये देखना होगा कि वो कैसे अपने मार्केट को खोले। अगर दोनों देशों के बीच 500 बिलियन डॉलर का व्यापार का लक्ष्य रखा जाए, तो इससे दोनों देशों में ज्यादा रोजगार के मौके बनेंगे। इसलिए व्यापार बहुत जरूरी है।'
अघी ने कहा, 'भारत के नजरिए से दो चीजें बहुत अहम हैं। पहली है भारत में आने वाला FDI और दूसरी है टेक्नोलॉजी। अगर भारत को अमेरिका से ये दो चीजें मिल जाती हैं, तो अगले 20 सालों में भारत की तरक्की में बहुत मदद मिलेगी। लेकिन साथ ही, अमेरिका के लिए भी ये जरूरी है कि भारत भू-राजनीतिक मंच पर एक अहम साझेदार बने।'
उन्होंने कहा कि 'भारत के रूस, मध्य पूर्व के देशों, जापान और हां चीन के साथ भी रिश्ते हैं। हर लिहाज से भारत अमेरिका के लिए एक अहम साझेदार बन जाता है तो इससे दुनिया में एक ज्यादा स्थिर, सुरक्षित माहौल बन सकता है।' अघी ने कहा कि भारत रूस, मध्य पूर्व और यूरोप के देशों के साथ बातचीत में एक स्थिर शक्ति बन सकता है। उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि भारत खासकर QUAD के जरिए अमेरिका के साथ साझेदारी कर सकता है। मुझे भारत और बाकी दुनिया के बीच मजबूत और स्थिर रिश्ते देखकर बहुत खुशी हो रही है।'
DOGE के खुलासों पर एक सवाल के जवाब में अघी ने कहा कि USAID द्वारा भारत में वोटर टर्नआउट के लिए 2 करोड़ 10 लाख डॉलर भेजना बिलकुल बेमानी है। भारत में वोटर टर्नआउट लगभग 70% है, इसलिए इसे बढ़ाने के लिए और पैसे की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, 'हम देख रहे हैं कि ये पैसा असल में बांग्लादेश गया। भले ही भारत का नाम था, लेकिन इसका इस्तेमाल ज्यादा नहीं हुआ।'
उन्होंने कहा, 'ये गलत है। एक लोकतंत्र में, आप किसी दूसरे देश को पैसा नहीं भेज सकते और न ही ये कह सकते हैं कि वोटिंग इस तरह होगी। इससे गलत संदेश जाता है। इसलिए, मैं कहूंगा कि यह दखलअंदाजी है। ऐसा नहीं होना चाहिए। हालांकि, उन्होंने कहा कि उन्हें 2024 के चुनावों के दौरान अमेरिका की तरफ से किसी भी तरह के दखल की आशंका नहीं है।'
अघी ने कहा, 'मुझे लगता है कि भारतीय मतदाता परिपक्व, स्वतंत्र और फैसला लेने के काबिल हैं। लोकसभा चुनाव में हमने देखा कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को संदेश दिया। फिर हरियाणा, महाराष्ट्र और अब दिल्ली के विधानसभा चुनावों में उन्होंने विपक्ष को संदेश दिया। इसलिए इतनी परिपक्वता है कि मुझे नहीं लगता कि बाहरी ताकतें उन्हें प्रभावित कर सकती हैं।'
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