समय का संधिकाल तारीख के रूप में एक बार फिर हमारे सामने है। वर्ष 2024 की विदाई के साथ दुनिया 2025 की दहलीज पर खड़ी है। हर साल आने वाला यह अवसर अपनी उपलब्धियों का जश्न मनाने, नाकामियों पर मंथन करने और नए लक्ष्य रखकर नई उम्मीदों और संकल्प के साथ आगे बढ़ने का एक उत्सवधर्मी बहाना है। लेकिन यह बहाना वैश्विक रूप से स्वीकार्य है। जहां तक उपलब्धि का सवाल है... उसका जश्न तो उसके साथ ही शुरू हो जाता है और जब चाहे या बार-बार मनाया जाता है, मनाया जा सकता है और लोग मनाते ही हैं। नाकामियों पर मंथन वैसे तो उसी समय करना चाहिए लेकिन ईमानदारी से अपनी असफलताओं का आकलन कम ही लोग करते हैं। उसमें अक्सर पूर्वाग्रह या अहम आड़े आ जाता है। अलबत्ता, नए साल के मौके पर दुनियाभर के बहुत से लोग संकल्प लेते हैं किंतु उन संकल्पो को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने वालों की तादाद कम होती है। जाहिर है कि जितने संकल्प लिये जाते हैं उतने पूरे नहीं हो पाते। कुछ ही पूरे हो जाएं तो गनीमत है।
वर्ष 2024 में भी पूरब से लेकर पश्चिम तक तमाम सामाजिक और राजनीतिक तथा राजनीति-जनक घटनाएं हुईं। लेकिन बोलबाला रहा सियासत, चुनाव और जंग का। रूस-यूक्रेन युद्ध को देखते-देखते 3 साल होने जा रहे हैं लेकिन टकराव खत्म नहीं हुई है। वर्ष 23 में शुरू हुआ इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष भी सवा साल करने जा रहा है। इन दोनों ही टकरावों को खत्म करने की कामना पिछले साल के इस अवसर पर भी की गई थी लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो न सका। बल्कि मध्य-पूर्व में तनाव के हालात खड़े हो गए। इजराइल की ओर से जंग के कई मोर्चे वर्ष 2024 में खुल गये। शांति की बात करते-करते दुनिया जंग की विभीषिका में जाती दिखने लगी। लिहाजा इस वर्ष के अंत और अगले के प्रारंभ अवसर पर एक बार फिर तमाम जन शांति की कामना कर रहे हैं। जहां तक अमेरिका और भारत का ताल्लुक है तो संबंध प्रगाढ़ हुए हैं, हर क्षेत्र में भारतवंशियों का विस्तार हुआ है और सियासत में उनका असर समय के साथ बढ़ ही रहा है। एक बात अमेरिका और भारत में समान रही। दोनों ही देशों की केंद्रीय सत्ता को तय करने वाला आम चुनाव हुआ। अमेरिका में सत्ता बदल गई, भारत में बरकरार है। लेकिन दोनों देशों का चुनावी परिदृश्य अपने आरंभ से लेकर अंत तक नाटकीय रहा। उधर, भारत-कनाडा के संबंधों में आई खटास भी कम न हो सकी है। बल्कि 2024 की कुछ घटनाओं ने आग में घी का काम किया।
वर्ष 2025 में अमेरिका में नए निजाम के साथ वैश्विक संबंधों का पुनर्निर्धारण होने की बात हो रही है। जंग के हालात बदलेंगे ऐसी उम्मीद की जा रही है। लेकिन बदलाव कैसा होगा और किसके लिए अच्छा-बुरा साबित होगा यह 2025 में दिखने लगेगा। ट्रम्प की हुकूमत में भारत-अमेरिका के संबंध मजबूत होंगे इसका अतीत और आधार दोनों हैं। अमेरिका का रुख दुनिया की राजनीति और स्थिति को प्रभावित करता है। ऐसे में देखना यह होगा कि अलग-अलग ठिकानों पर चल रहे युद्ध क्या गति प्राप्त करते हैं। वैश्विक संबंध किस तरह परिभाषित होते हैं। जलवायु परिवर्तन जैसी चुनैतियों के मद्देनजर दुनिया क्या-कुछ कर पाती है। आस तो यही करनी चाहिए कि विश्व में कड़वाहट कम हो और वैश्विक चुनौतियों से निपटने की दिशा में सामूहिक कदमताल हो। संकल्प भी यही होना चाहिए।
Comments
Start the conversation
Become a member of New India Abroad to start commenting.
Sign Up Now
Already have an account? Login