न्यू यॉर्क शहर ने आधिकारिक तौर पर 14 अप्रैल को 'डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर दिवस' के तौर पर मान्यता दी है। ये भारतीय नेता के 134वें जन्मदिन के मौके पर एक खास सम्मान है। न्यू यॉर्क के मेयर एरिक एडम्स ने एक प्रस्ताव पर दस्तखत करके इस ऐलान को आधिकारिक बना दिया। ये भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री और समाज सुधारक को एक ऐतिहासिक श्रद्धांजलि है, जिनका बौद्धिक सफर इसी शहर से शुरू हुआ था।
इस प्रस्ताव में उनकी जीवनभर चली सामाजिक अन्याय और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई को नमन किया गया है। मेयर एडम्स ने आंबेडकर की वैश्विक नागरिक अधिकारों में प्रासंगिकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, 'डॉ. आंबेडकर का अपने अनुयायियों को संदेश था 'पढ़ो, लड़ो, संगठित हो'। वह भारत में किसानों और मजदूरों के शोषण और छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाते रहे। उन्होंने अपनी जिंदगी विविधता, समानता और समावेश के लिए लड़ते हुए बिताया। यही वे मूल्य हैं जो न्यूयॉर्क के पांचों इलाकों की पहचान रहे हैं।'
डॉ. आंबेडकर ने न्यू यॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने इस शहर को अपनी शुरुआती सोच - आजादी, न्याय और लोकतंत्र - गढ़ने का श्रेय दिया था। यही सिद्धांत बाद में भारतीय संविधान के लेखन में उनके काम आए। इसे दुनिया के सबसे समावेशी संविधानों में से एक माना जाता है। उन्होंने अपनी जिंदगी के मकसद को बहुत साफ शब्दों में बताया था: 'हमारा ये संघर्ष धन या ताकत के लिए नहीं है। ये आजादी के लिए लड़ाई है। ये इंसानी सम्मान वापस पाने की लड़ाई है।'
आंबेडकर का प्रभाव भारत से बहुत दूर तक पहुंचा है। 100 से अधिक देशों में उनके जन्मदिन को संसदों, संयुक्त राष्ट्र मिशनों और शैक्षणिक क्षेत्रों में मनाया जाता है। 2016 में, उनकी 125वीं जयंती पर, तत्कालीन UNDP प्रशासक और न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री हेलेन क्लार्क ने संयुक्त राष्ट्र को बताया था, 'डॉ. आंबेडकर समझते थे कि असमानताएं भलाई के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। उनका विजन UNDP में हमारे काम को प्रेरित करता रहता है। खासकर सभी के लिए समावेश, समानता और सम्मान को बढ़ावा देने में। 2030 के सतत विकास एजेंडा में उनकी 'किसी को पीछे नहीं छोड़ने' की प्रतिबद्धता झलकती है।'
इसके अगले साल, संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना जे. मोहम्मद ने इसी भावना को साझा करते हुए कहा, 'डॉ. आंबेडकर समानता के अथक समर्थक थे। सामाजिक न्याय और समावेश का उनका दृष्टिकोण संयुक्त राष्ट्र के मूल्यों और मिशन के साथ पूरी तरह मेल खाता है।'
न्यू यॉर्क शहर में 14 अप्रैल को 'डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर दिवस' के तौर पर मनाने की मुहिम का नेतृत्व दीलीप म्हास्के ने किया। वो लंबे समय से आंबेडकरवादी नेता और फाउंडेशन फॉर ह्यूमन होराइजन के अध्यक्ष हैं। सालों से म्हास्के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आंबेडकर के विचारों का प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने जमीनी स्तर पर काम करने के साथ कूटनीतिक पहल भी की है। 2016 में, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मदद से म्हास्के ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में पहली बार आंबेडकर जयंती का आयोजन किया, जो अब एक सालाना परंपरा बन गई है।
म्हास्के के काम ने भारतीय और अमेरिकी नीति निर्माताओं, नागरिक अधिकार संगठनों और वैश्विक शैक्षणिक संस्थानों के बीच बातचीत को जोड़ने में मदद की है। उनके काम ने अमेरिकी प्रशासन का ध्यान खींचा है। उन्हें ट्रम्प प्रशासन के वीआईपी मेहमान के तौर पर भी बुलाया गया था। वो मैनहट्टन में ईस्ट 63वीं स्ट्रीट का नाम 'डॉ. बी.आर. आंबेडकर वे' रखने के 2023 के सफल अभियान में भी अहम भूमिका निभा चुके हैं। इससे न्यू यॉर्क आंबेडकर के सम्मान में सड़क का नाम रखने वाला अमेरिका का पहला शहर बन गया।
इस प्रस्ताव पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए म्हास्के ने कहा, 'शुक्रिया मेयर एडम्स। ये प्रस्ताव सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है। ये एक नैतिक घोषणा है जो न्यू यॉर्क को मानवाधिकार और न्याय के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करती है। डिप्टी कमिश्नर दिलीप चौहान को भी शुक्रिया। आपकी अथक कोशिशों ने दुनिया भर के दबे-कुचले लोगों के लिए आशा की किरण जगाई है।'
इस ऐलान को दुनिया भर से तारीफ मिल रही है। भारत सरकार में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले ने वैश्विक स्तर पर आंबेडकर के संदेश को फैलाने में म्हास्के की भूमिका को उजागर करते हुए कहा, 'मैं अपने दोस्त दीलीप म्हास्के को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने डॉ. आंबेडकर का नाम वैश्विक मंच पर पहुंचाया। कोलंबिया से लेकर भारत के भविष्य को गढ़ने तक का उनका सफर दिखाता है कि कैसे न्यू यॉर्क ने दुनिया के सबसे महान दिमागों को पोषित किया है।'
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