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विदेशी फंडिंग को लेकर भारतीय गृह मंत्रालय के नए FCRA (विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम) नोटिफिकेशन पर सिविल सोसाइटी संगठनों ने आपत्ति जताई है। नए नियमों के तहत अब एनजीओ को विदेशी फंड लेने तीन साल और उसे खर्च करने के लिए चार साल की समयसीमा का पालन करना होगा।
मंत्रालय का कहना है कि इस बदलाव से पारदर्शिता बढ़ेगी। हालांकि आलोचकों का दावा है कि ये नियम एनजीओ खासकर लंबे प्रोजेक्टों और वंचित समुदायों के साथ काम करने वाले संगठनों पर अतिरिक्त बोझ डालेंगे। अब तक फंड के इस्तेमाल को लेकर कोई निश्चित समयसीमा नहीं थी। आलोचक नई समयसीमा को अव्यावहारिक और नुकसानदेह बता रहे हैं।
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नए नियम पुराने प्रोजेक्टों पर भी लागू होंगे जिससे उन संगठनों को दिक्कत हो सकती है जिनके प्रोजेक्ट पहले से चल रहे हैं। एनजीओ को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ सकती है और समयसीमा बढ़ाने के लिए अतिरिक्त अनुमति लेनी पड़ सकती है। आरोप है मंत्रालय के पास विस्तार देने का अधिकार होने से पक्षपात की आशंका बढ़ गई है।
एक प्रमुख एनजीओ के प्रतिनिधि ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जवाबदेही जरूरी है लेकिन यह समयसीमा बहुत सख्त है। इंफ्रास्ट्रक्चर या गहन सामुदायिक कार्यक्रमों को चार साल में पूरा करना मुश्किल होगा। इससे हमें महत्वपूर्ण प्रोजेक्टों को बीच में ही बंद करना पड़ सकता है या जुर्माना भरना पड़ सकता है।
निशीथ देसाई एसोसिएट्स के एक्सपर्ट सहर शर्मा और राहुल ऋषि का कहना है कि जवाबदेही जरूरी है लेकिन नए नियमों से सामाजिक विकास और लोक कल्याण में लगे एनजीओ पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। सरकार का नियंत्रण बढ़ने से एनजीओ का योगदान कम हो सकता है। आलोचकों का कहना है कि ये नियम उन संगठनों के लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे जो सरकारी मिशन को आगे बढ़ाने में जुटे हैं।
कई लोगों का मानना है कि इन नए नियमों से वास्तविक विकास भी कार्य प्रभावित हो सकते हैं और सिविल सोसाइटी का दायरा कम हो जाएगा। एनजीओ के संसाधन कमजोर पड़ सकते हैं और लाभार्थियों को नुकसान हो सकता है।
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