प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) सम्मेलनों के वास्तविक नतीजों को लेकर जवाबदेही की कमी पर भारत में एक संसदीय समिति ने गंभीर चिंता जताई है। समिति का कहना है कि बिना उचित दस्तावेजों के सरकार इन आयोजनों के असल फायदों या कमियों का आकलन नहीं कर सकती।
शशि थरूर की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने भारतीय विदेश मंत्रालय से पीबीडी सम्मेलनों को भव्य उत्सव बनाने के बजाय अधिक नतीजे देने वाला बनाने का आग्रह किया है।
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समिति ने एक रिपोर्ट में कहा है कि प्रवासी भारतीय दिवस 2003 से मनाए जा रहे हैं। ये प्रवासी भारतीयों को अपनी मातृभूमि से जुड़ने और देश के विकास में योगदान देने का एक महत्वपूर्ण मंच है। हालांकि, यह आश्चर्य की बात है कि इन सम्मेलनों के बाद कोई औपचारिक जवाबदेही रिपोर्ट तैयार नहीं की गई है।
समिति ने आगे कहा कि इन आयोजनों के मूल्यांकन के बिना यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार इन कार्यक्रमों के असर का आकलन कैसे करती है और उसके मुताबिक आवश्यक सुधार कैसे लागू करती है।
समिति ने सिफारिश की है कि मंत्रालय भुवनेश्वर में आयोजित होने वाले 18वें प्रवासी भारतीय दिवस की तैयारी शुरू करने से पहले प्रत्येक सम्मेलन के नतीजों की रिपोर्ट तैयार करे और समिति को सौंपे।
समिति ने रीजनल प्रवासी भारतीय दिवस (RPBD) के आयोजन में देरी पर भी चिंता जताई। RPBD का उद्देश्य भी ऐसे प्रवासी भारतीयों से जुड़ना है जो भारत में द्विवार्षिक आयोजन में हिस्सा नहीं ले सकते। आखिरी RPBD साल 2018 में सिंगापुर में हुआ था। कोरोना महामारी के बाद इसका कोई आयोजन नहीं हुआ है।
सरकार हालांकि कहती रही है कि RPBD को बंद नहीं किया गया है। अगला आयोजन साल 2026 में होगा लेकिन समिति का कहना था कि आठ साल का अंतराल बहुत लंबा है और यह कार्यक्रम प्रवासी भारतीयों के साथ मजबूत संबंध बनाने का एक अवसर होते हैं।
विदेश मंत्रालय और राज्य सरकारों के बीच प्रवासी संबंधी मुद्दों पर समन्वय सुधारने की पहल विदेश संपर्क कार्यक्रम को लेकर भी समिति ने जांच की है। समिति ने पाया कि इस कार्यक्रम को अब तक केवल 10 राज्यों में आयोजित किया गया है जो नाकाफी है।
रिपोर्ट में भारत के वैश्विक प्रवासियों के साथ जुड़ाव में सुधार की तत्काल जरूरत पर जोर दिया गया है। सरकार से आग्रह किया गया है कि वे प्रतीकात्मक आयोजनों से आगे बढ़े और परिणाम देने वाले दृष्टिकोण के साथ कार्यक्रम करे।
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