अमेरिका की टेक हब कहे जाने वाले कैलिफोर्निया के क्यूपर्टिनो शहर में हर साल एक खास रंगीन परंपरा निभाई जाती है—होली की। इस बार भी टब्बसुम और अवि ने अपने घर के बैकयार्ड में होली का ऐसा जश्न मनाया, जिसे देख हर भारतीय दिल झूम उठा। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सबने रंगों से एक-दूसरे को सराबोर किया और ढोल-नगाड़ों पर थिरकते हुए देसीपन को महसूस किया।
लेना सुजान बताती हैं, “मैं दीवाली की पार्टी होस्ट करती हूं और टब्बसुम होली की। ये परंपरा कब शुरू हुई, याद नहीं… शायद ‘हमेशा से’।” यही वो भावना है जो भारत से हजारों किलोमीटर दूर बसे भारतीयों को जोड़ती है—एक त्योहार, एक जश्न, एक अपनापन।
मंदिरों से मेलों तक फैला जश्न
बे एरिया में होली का इतिहास 30 साल पुराना है। सनीवेल हिंदू मंदिर और कम्युनिटी सेंटर ने 1997 में पहली बार होली का आयोजन किया था। तभी से यह परंपरा कई मंदिरों और विश्वविद्यालयों में फैलती गई। रंग, संगीत, और स्वादिष्ट भोजन के साथ यह उत्सव देसी समुदाय के लिए एक घर जैसा माहौल बनाता है।
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एक समय था जब मंदिर की होली के बाद लोग सीधे बर्गर किंग या मैकडॉनल्ड्स जैसे आउटलेट्स में अपने रंग-बिरंगे कपड़ों के साथ पहुंच जाते थे। धीरे-धीरे व्यवस्था बदली—अब $5 की टिकट में रंग भी मिलता है और गरमागरम खाना भी।
होली- दिल्ली से कैलिफोर्निया तक
लेखिका सुजान बताती हैं कि दिल्ली में उनका बचपन होली से जुड़ी कई सीमाओं में बंधा था। “एक लड़की होने के नाते मुझे बाहर जाकर होली खेलने की इजाजत नहीं थी,” वो याद करती हैं। लेकिन कैलिफोर्निया में होली खेलने की आज़ादी और समानता की भावना ने त्योहार को और भी खूबसूरत बना दिया।
पाकिस्तानी भी मनाते हैं होली
पाकिस्तानी-अमेरिकी ट्रैवल एजेंट नुसरत बताती हैं कि उन्होंने पाकिस्तान में भी होली मनाई थी। “सिंध, कराची, लाहौर, हैदराबाद में हिंदू समुदाय अब भी होली का त्योहार हर्षोल्लास से मनाता है।”
अब ‘देसी’ होली में विदेशी भी शामिल
लेखिका बताती हैं कि कैसे एक साल वे दिल्ली में अपने बेटों और उनकी विदेशी गर्लफ्रेंड्स को लेकर गुलमोहर पार्क क्लब पहुंचीं, जहां होली के देसी रंग में विदेशी चेहरे भी झूमते दिखे।
इस साल होली का रंगीन मेला सैंटा क्लारा फेयरग्राउंड में लगने जा रहा है, जहां पंजाबी गायक सुखबीर सिंह, डीजे रश और कई कलाकार धमाल मचाएंगे। खाने, रंग, म्यूजिक और डांस से भरपूर इस फेस्टिवल का इंतजार हर किसी को है।
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