ADVERTISEMENTs

अमेरिका में बढ रहीं भारतीय विरोधी भावनाओं से किस तरह निपटें, रिचर्ड वर्मा ने बताया

रिचर्ड वर्मा का कहना है कि अमेरिका में दुनिया के अलग-अलग कोनों से आए लोग रहते हैं जिनके अलग-अलग विचार हैं। यही इस देश की असली ताकत है। यही इस देश को महान बनाता है। 

रिचर्ड वर्मा 2015 से 2017 तक भारत में अमेरिकी राजदूत रह चुके हैं। / Courtesy Photo

अमेरिका में पिछले कुछ समय में भारतीय मूल के लोगों के खिलाफ विरोधी आवाजें मुखर हुई हैं। इस मुद्दे पर अमेरिकी उप विदेश मंत्री (प्रबंधन एवं संसाधन) रिचर्ड वर्मा का कहना है कि हमें एक दूसरे का सम्मान करने की जरूरत है। यहां दुनिया के अलग-अलग कोनों से आए लोग रहते हैं जिनके अलग-अलग विचार हैं। यही इस देश की असली ताकत है। यही इस देश को महान बनाता है। 

2015 से 2017 तक भारत में अमेरिकी राजदूत रह चुके रिचर्ड वर्मा ने न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ एक इंटरव्यू में अपने खट्टे-मीठे अनुभवों को साझा किया, जिन्होंने उनके करियर को आकार दिया और द्विपक्षीय संबंधों का भविष्य तय किया। 

भारतीय-अमेरिकी समुदाय की हाल के समय में बढ़ती आलोचना के बावजूद रिचर्ड वर्मा ने अमेरिका के समावेशी दृष्टिकोण का जिक्र किया। उनका कहना था कि हर कोई मुझसे सहमत नहीं होगा, लेकिन यही चीज है, जिसके लिए मैं आने वाले वर्षों में भी लड़ता रहूंगा।

भारतीय अमेरिकियों की अविश्वसनीय तरक्की का जिक्र करते हुए वर्मा ने कहा कि मैं जब अमेरिकी सेना में था, तब हमारे समुदाय के कुछ गिने-चुने लोग ही थे। अब उनकी संख्या सैकड़ों-हजारों में है। यह तरक्की संयोग से नहीं बल्कि कड़ी मेहनत और लगन से संभव हुई है।

समुदाय की उपलब्धियों पर गर्व करते हुए उन्होंने आगे कहा कि एक दौर था, तब कांग्रेस में कुछ ही भारतीय-अमेरिकी थे। आज भारतीय मूल के लोग उपराष्ट्रपति समेत अहम पदों तक पहुंच चुके हैं। यह बहुत गर्व की बात है। अमेरिका में पढ़ने वाले विदेशियों में सबसे ज्यादा भारतीय छात्र हैं। इस वक्त अमेरिका में हर चार विदेशी छात्रों में से एक भारत से है। यह एक बड़ा बदलाव है।

अमेरिका-भारत के बीच लोकतंत्र, सहिष्णुता और कानून के शासन जैसे साझा मूल्यों का हवाला देते हुए वर्मा ने कहा कि दोनों देशों के बीच साझेदारी अगले 25 वर्षों में और मजबूत होगी। अमेरिका के लिए भारत का महज रणनीतिक महत्व नहीं है बल्कि यह दोस्ती उन मूलभूत सिद्धांतों में निहित है, जिसने दोनों देशों को फलने-फूलने का मौका दिया है।

उन्होंने कहा कि पिछले 25 वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापार और रक्षा सहयोग में जबरदस्त वृद्धि हुई है। 2000 में हमारे बीच बिल्कुल भी रक्षा व्यापार नहीं होता था। अब यह 20 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है। द्विपक्षीय व्यापार 200 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है। संबंधों में संभावित जोखिमों पर वर्मा ने कहा कि यह साझेदारी अल्पकालिक हितों के बजाय साझा मूल्यों पर आधारित रहेगी। 

रिचर्ड वर्मा ने बताया कि कैसे उनके पिता 1963 में सिर्फ 14 डॉलर और बस का टिकट लेकर अमेरिका आए थे। यह इस देश की बहुसांस्कृतिक, समावेशी लोकतंत्र की ताकत ही है, जो हमारे जैसे लोगों को अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए यहां कामयाबी हासिल करने देता है।

अमेरिका-भारत संबंधों के विकास में दो दशकों तक महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वर्मा ने 1990 के दशक में स्थापित महत्वाकांक्षी विजन को याद किया और कहा कि अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते जैसे महत्वपूर्ण समझौतों ने इसे आगे बढ़ाया। हमें नहीं पता था कि यह संभव हो सकेगा, लेकिन हमने एक बहुत ही महत्वाकांक्षी विजन तय किया। इसने पूरा खेल ही बदल दिया। 

रिचर्ड वर्मा कृत्रिम बुद्धिमत्ता को कूटनीति के लिए एक महत्वपूर्ण टूल की तरह देखते हैं। हालांकि वह एआई को जिम्मेदारी से इस्तेमाल करने और यह सुनिश्चित करने पर जोर देते हैं कि इसका इस्तेमाल अच्छे कार्यों के लिए होना चाहिए, किसी का उत्पीड़न करने के लिए नहीं।

Comments

ADVERTISEMENT

 

 

 

ADVERTISEMENT

 

 

E Paper

 

 

 

Video

 

Related