पिछले कुछ समय में विदेशों खासकर अमेरिका में शरण मांगने वाले भारतीयों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इस मसले ने भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा का ध्यान आकर्षित किया।
भारतीय विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने हाल ही में राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में इस प्रवृत्ति पर चिंता जताई और इस मुद्दे पर सरकार के रुख से अवगत कराते हुए डेटा तक पहुंच की चुनौतियों को सामने रखा।
संसद में रखी गई रिपोर्ट के अनुसार, अकेले अमेरिका में ही साल 2021 से 2023 के बीच शरण मांगने वाले भारतीयों की संख्या में 800 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इनमें से लगभग आधे आवेदक गुजरात से बताए जाते हैं।
इन चौंकने वाले आंकड़ों पर भारत सरकार का कहना है कि शरण आवेदनों और अनुमोदन का व्यापक डेटा उपलब्ध नहीं है क्योंकि मेजबान देशों के गोपनीयता कानूनों और डेटा संरक्षण नीतियों की वजह से पूरे आंकड़े नहीं मिल पाते हैं।
भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना था कि विदेश में शरण मांगने वाले लोग अक्सर विदेशी सरकारों के सामने अपने देश की नकारात्मक छवि पेश करते हैं। सरकार ने जोर देकर कहा कि भारत का लोकतांत्रिक ढांचा ऐसा है कि नागरिकों को उनकी शिकायतों के समाधान के यहीं पर पर्याप्त कानूनी अवसर उपलब्ध मिलते हैं और उन्हें विदेशों में शरण मांगने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
भारत सरकार ने कहा है कि वह उन कारणों का समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो नागरिकों को विदेश में शरण लेने के लिए मजबूर करते हैं। इन प्रयासों में शामिल हैं:
सामाजिक-आर्थिक सुधार: रोज़गार के अवसरों को मज़बूत करना विशेष रूप से गुजरात जैसे राज्यों में ताकि नागरिकों को विदेश में शरण मांगने की जरूरत न पड़े।
जागरूकता बढ़ाना: शरण मांगने के कानूनी एवं सामाजिक नतीजों से नागरिकों को अवगत कराना और घरेलू स्तर पर व्यक्तिगत या व्यवस्थागत मुद्दों के समाधान तंत्र को परिपक्व करना।
राजनयिक जुड़ाव: शरण आवेदनों में वृद्धि के पीछे के कारणों को बेहतर ढंग से समझने और समस्या का समाधान खोजने के लिये विदेशी सरकारों के साथ मिलकर काम करना।
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