सद्गुरु
कुंभ की उत्पत्ति सौर मंडल के चक्रों के गूढ़ ज्ञान से हुई है। हम कौन हैं? हम इस तरह के क्यों हैं? इसका उत्तर मुख्यतः उन शक्तियों में छिपा है, जिनका हमारे ऊपर प्रभाव है। सौर मंडल इनमें सबसे महत्वपूर्ण है। सौर मंडल एक तरह से कुम्हार के चाक की तरह है, जबकि हम उस मिट्टी के घड़े की तरह हैं जिसे वह आकार दे रहा है।
कुंभ के लिए जिन चार स्थानों का चयन किया गया है, उसके कुछ निश्चित भौगोलिक और खगोलीय कारण हैं। सामान्यतः इन्हें प्रयाग कहा जाता है। दक्षिण में इन्हें संगम कहते हैं। तात्पर्य ये है कि इन बिंदुओं पर जल निकाय का एक निश्चित शक्ति के साथ मिलन होता है। जब यह मिलन विशेष समय पर, विशेष अक्षांशीय स्थितियों पर होता है तो यह जीवन की व्यापक संभावनाएं उत्पन्न करता है।
प्रयाग का अर्थ है, जल का मंथन। हमारे शरीर का 72 प्रतिशत हिस्सा स्वयं जल है। यदि आप किसी ऐसे स्थान पर हैं, जहां जल में विशिष्ट गतिशीलता है तो यह शरीर पर बहुत बड़ा प्रभाव डालता है। 12 वर्षीय चक्र के दौरान एक विशेष क्षण आता है, उस समय इसका प्रभाव अधिकतम होता है। यही कुंभ होता है।
इस 12 वर्षीय अवधि का संबंध बृहस्पति और सूर्य के साथ है। बृहस्पति एक बहुत विशाल ग्रह है। इसका व्यास पृथ्वी से 11 गुना है। इसका द्रव्यमान सौर मंडल के अन्य सभी ग्रहों के द्रव्यमान का दो-ढाई गुना है। इसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी ताकतवर है कि असल में सूर्य भी इसके कारण थोड़ा-सा विस्थापित हो जाता है। इसी वजह से बृहस्पति और सूर्य का पृथ्वी पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इसका मानव पर क्या असर होता है?
हमें यह समझना होगा कि 'कुंभ' का वास्तविक अर्थ एक घड़ा या जलपात्र होता है। कथा है कि समुद्र मंथन के दौरान, सबसे पहले विष निकला था, जिसे शिव ने पी लिया। इससे उनका गला नीला पड़ गया। उसके बाद अमृत निकला, जिसे सभी ने पाने की कोशिश की क्योंकि माना जाता है कि इससे वह अमर हो जाएंगे। इसी खींचतान में, थोड़ा-सा अमृत पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरा। इन्हीं स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है।
लेकिन यह अमृत है क्या? यह कोई रहस्यमय पेय नहीं है। जीवन अमृत दरअसल आपकी चेतना है। आपका शरीर इससे बना है। आपका मस्तिष्क इससे बना है। सब कुछ इसी से निकला है। हमें समझना चाहिए कि हम सभी छोटे बच्चे के रूप में पैदा होते हैं। यदि हमारे अंदर अमृत न होता तो हम विकसित होकर वह नहीं बन पाते, जो हम आज हैं। समुद्र मंथन और अन्य कथाएं प्रतीक हैं कि किसी ने प्रयास किया, अमृत आया और फैल गया।
सवाल ये है कि क्या आप अपने अंदर इस अमृत तक पहुंच पाए हैं या नहीं। यदि आपको वहां तक पहुंचने का मार्ग मिल गया है, तो आप अपने अमृत में हर दिन डुबकी लगा सकते हैं। यदि आप नहीं पा सके हैं, तो आप अपने आसपास की हर चीज के जरिए इस तरह पहुंचने का प्रयास करते हैं। कुंभ ऐसी ही एक शक्तिशाली प्रक्रिया है, जो बड़ी संख्या में लोगों को इस तरह के अनुभव का कुछ अहसास दिला सकती है। लेकिन व्यक्तिगत रूप से, आप हर रोज अपने अंदर डुबकी लगाने के लिए स्वतंत्र हैं।
कुंभ में वैसे तो हमें एक मंडल के लिए आना चाहिए, जो कि 48 दिन का होता है। यही वजह है कि सभी अखाड़े 45 से 48 दिनों के लिए ही कुंभ में रुकते हैं, क्योंकि यह एक साधना होती है। लेकिन आजकल लोग पर्यटक की तरह कुंभ में आते हैं। दो दिनों के लिए आते हैं और फिर चले जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। यह एक मंडल के लिए होना चाहिए, जहां आप साधना करें। हर दिन आप डुबकी लगाएं, साधना करें और उस स्थान पर रहें... क्योंकि यह ऊर्जा का केंद्र बिंदु होता है।
(सदगुरु एक योगी, रहस्यवादी, दूरदर्शी और न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलिंग लेखक हैं। वह भारत के 50 सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल हैं। सदगुरु को 2017 में भारत सरकार की तरफ से पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है, जो दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह असाधारण और विशिष्ट सेवाओं के लिए प्रदान किया जाता है। सद्गुरु दुनिया के सबसे बड़े जनांदोलन- कॉन्शियस प्लैनेट, सेव सॉइल के संस्थापक भी हैं, जिसने 4 अरब से अधिक लोगों को प्रभावित किया है।
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