इस अप्रैल भारत के विभिन्न हिस्सों में सौर नववर्ष अलग-अलग अंदाज में मनाया जा रहा है। इसके केंद्र में कृषि और प्रकृति से जुड़ी परंपराएं हैं।
वैसाखी: पंजाब की सुनहरी फसलें
पंजाब और उत्तर भारत में वैसाखी रबी (सर्दियों) की फसल के पकने का प्रतीक है। इस वक्त किसानों के खेत गेहूं की सुनहरी बालियों से लहलहाते हैं। गेहूं के अलावा दलहन, तिलहन और गन्ने की फसल भी इस त्योहार का अहम हिस्सा होते है। भांगड़ा और गिद्दा नृत्य इस उत्सव की खासियत होती हैं जो फसल कटने की खुशी में किए जाते हैं।
विशु: केरल का प्राकृतिक उपहार
केरल में विशु नए साल की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन सबसे पहले विशुक्कणी (मौसमी फसल से सजा दृश्य) देखने की परंपरा है जिसमें कणिवेल्लरी (सुनहरी ककड़ी) खास होती है। इस साल यह फसल तिरुवनंतपुरम के कल्लियूर में उगाई गई है। इसके साथ ही धान, नारियल और सब्जियों की कटाई भी इसी मौसम में होती है।
बोहाग बिहू: असम के धान के खेत
असम में बोहाग बिहू या रोंगाली बिहू नए साल के साथ ही धान की बुवाई के सीजन की शुरुआत का प्रतीक होता है। यह त्योहार किसानों को नई फसल के लिए तैयार करता है। चावल और नारियल से बने पिठा और लड्डू जैसे पारंपरिक व्यंजनों के साथ आदिवासी समुदायों की विशेष शराब आपोंग और चुजे इस उत्सव की खासियत होती हैं।
गुड़ी पड़वा: आम की रौनक
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा रबी की फसल की कटाई और आम के मौसम की शुरुआत का प्रतीक होती है। इस मौसम में बाजार अल्फांसो आमों से भर जाते हैं। दाल और अनाज से बने पारंपरिक व्यंजन भी इस त्योहार का विशेष हिस्सा होते हैं।
पना संक्रांति: ओडिशा की फसलें
ओडिशा में पना संक्रांति (महाविशुब संक्रांति) ओडिया नववर्ष की शुरुआत और फसलों की कटाई का प्रतीक होती है। इस समय धान, गेहूं, मूंग दाल, अरहर दाल, सरसों, तिल और कद्दू जैसी सब्जियों की कटाई होती है। आम, कटहल और बेल जैसे फल भी इस पर्व का हिस्सा होते हैं।
ये त्योहार न सिर्फ भारत की कृषि संस्कृति को दर्शाते हैं बल्कि प्रकृति और इंसान के बीच रिश्ते को भी गहरा बनाते हैं।
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