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ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व: जंगल की गोद में बाघों के साम्राज्य की यात्रा

ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व न केवल भारत के वन्य जीवन का गौरव है, बल्कि यह हमारी पारिस्थितिकी को संतुलित रखने में भी अहम भूमिका निभाता है।

ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व / Dr. Parvish Pandya

. डॉ. राज दवे, डॉ. परविश पंड्या और गौरव सागरवाल

भारत के प्राचीन जंगलों में बसे ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व में प्रकृति अपनी पूरी भव्यता में जीवंत होती है। यह स्थान न केवल बाघों का आश्रय है, बल्कि विविध वन्यजीवों और हरे-भरे जंगलों का भी घर है। यहाँ की हरियाली, पशु-पक्षियों की चहचहाहट और रोमांचक सफारी यात्राएँ प्रकृति प्रेमियों के लिए एक अनूठा अनुभव प्रदान करती हैं। आइए, इस अद्भुत जंगल की यात्रा पर चलें।

जैसे ही सूरज की पहली किरणें ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व की विशाल भूमि को छूने लगीं, हम रोमांच से भरे इसके प्रवेश द्वार पर खड़े थे। जंगल की महक—गीली मिट्टी, सागौन के पत्तों और अदृश्य जानवरों की हल्की कस्तूरी—हवा में घुली हुई थी। यह रोमांचक अहसास था कि हम एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करने वाले थे जहाँ प्रकृति का शासन था।

मुंबई से नागपुर की फ्लाइट और फिर चार घंटे की एसयूवी यात्रा के बाद, हम अपने रिसॉर्ट पहुँचे। नागपुर को 'टाइगर कैपिटल ऑफ इंडिया' कहा जाता है, और यहाँ से किसी भी दिशा में एक किलोमीटर के भीतर बाघ के पंजों के निशान मिलना लगभग तय माना जाता है। महाराष्ट्र का सबसे पुराना और बड़ा राष्ट्रीय उद्यान तडोबा, जंगली सौंदर्य और अविश्वसनीय वन्य जीवन का प्रतीक है। अगले तीन दिनों तक हमने इस अद्भुत पारिस्थितिकी तंत्र में डूबने की योजना बनाई, जिसमें बाघ की दुर्लभ झलक, पक्षियों की मधुर ध्वनियाँ और जंगल की गूढ़ शांति अनुभव करना शामिल था।

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इतिहास और महत्व
ताडोबा नाम 'तारू' नामक गोंड जनजाति के एक योद्धा से लिया गया है, जो कथाओं के अनुसार, एक बाघ से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। वहीं, अंधारी नदी, जो इस रिजर्व से होकर बहती है, इसके नाम को पूरा करती है। कभी महाराजाओं का शिकार स्थल रहे तडोबा का भाग्य 1973 में 'प्रोजेक्ट टाइगर' के तहत संरक्षित क्षेत्र घोषित होने के बाद बदल गया। आज यह भारत की सबसे बड़ी संरक्षण सफलताओं में से एक है।

यह घना जंगल कभी भोंसले वंश की राजधानी नागपुर को दूरस्थ चौकियों और शाही शिकार स्थलों से जोड़ता था। राजा यहाँ अपने क्षेत्र विस्तार और शिकार अभियानों के लिए आते थे। जहाँ कभी शाही शिकारगाह थी, वहाँ अब वन्यजीवों की स्वच्छंद दुनिया है, जो भारत की अद्वितीय जैव विविधता का प्रतिबिंब प्रस्तुत करती है।

Dr. Parvish Pandya / टाइगर

वन्य जीवन का रोमांच
1,727 वर्ग किलोमीटर में फैला ताडोबा भारत के आश्चर्यजनक वन्यजीवों के लिए एक फलता-फूलता अभयारण्य है। जब हम जंगल में गहराई तक गए, तो सागौन और बाँस के घने जंगलों में बहती हवा की सरसराहट एक प्राकृतिक संगीत की अनुभूति करवा रही थी। तभी हमारे गाइड ने चुप रहने का इशारा किया और गीली मिट्टी पर ताजे पंजों के निशान दिखाए।

कुछ ही क्षणों बाद हमारा इंतजार समाप्त हुआ। झाड़ियों से बाहर निकलते हुए हमने शंभू नामक एक भव्य बाघ को देखा, जिसकी चमकदार पीली आँखें पूरे क्षेत्र का निरीक्षण कर रही थीं। उस पल समय जैसे थम सा गया था। पूरे दिन में हमें और भी अविस्मरणीय बाघों के दर्शन हुए, जो ताडोबा के अनछुए सौंदर्य का प्रमाण थे।

ताडोबा के अन्य वन्यजीव
ताडोबा का राजा बाघ ही नहीं, बल्कि यहाँ अन्य शिकारी और वन्यजीव भी हैं। जंगली कुत्ता (ढोल) इस जंगल का एक रहस्यमयी और कुशल शिकारी है, जो समूह में शिकार करता है और सीटी जैसी ध्वनियों से संवाद करता है। एक बार, हमने एक आलसी भालू (स्लॉथ बियर) को दीमकों के टीले में खुदाई करते हुए देखा—यह दुर्लभ दृश्य हमारे सफारी अनुभव को और भी खास बना गया।

जंगल के घास के मैदानों में चीतल (चित्तीदार हिरण) के झुंड इधर-उधर घूमते दिखाई दिए। उनकी तेज़ सुनने की क्षमता और सतर्क स्वभाव उन्हें शिकारियों से बचने में मदद करता है। इनके तेज़ चेतावनी संकेत जंगल के अन्य जीवों के लिए जीवन रक्षक साबित होते हैं।

Dr. Parvish Pandya /

पर्यटन और संरक्षण
विदेशी पर्यटकों के लिए मुंबई या दिल्ली से नागपुर की फ्लाइट लेना सबसे सुविधाजनक विकल्प है। हमने कोर और बफर जोन में सुबह और शाम की सफारी का आनंद लिया, जो जंगल के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है।

ताडोबा के भीषण ग्रीष्मकाल में जल संकट से निपटने के लिए वन विभाग ने सौर ऊर्जा से संचालित पंपों द्वारा कृत्रिम जलस्रोत बनाए हैं, जिससे वन्यजीवों को पर्याप्त पानी उपलब्ध हो सके। यह आधुनिक तकनीक और संरक्षण के बीच संतुलन का शानदार उदाहरण है।

यहाँ ठहरने के लिए शानदार ईको-लॉज से लेकर बजट फ्रेंडली वन विश्राम गृह तक कई विकल्प उपलब्ध हैं। हमने भामदेली में ताडोबा वन विला में ठहरने का निर्णय लिया। यहाँ के सुपर डीलक्स कमरे में पूल और जैकुज़ी की सुविधा थी, जबकि डीलक्स रूम भी आरामदायक थे। भोजन में हमें पारंपरिक साओजी व्यंजन सहित स्वादिष्ट शाकाहारी महाराष्ट्रीयन भोजन परोसा गया।

स्थानीय जनजातियाँ और उनकी भूमिका
ताडोबा की यात्रा तब तक अधूरी है जब तक हम यहाँ के असली संरक्षकों—गोंड और कोलाम जनजातियों को नहीं पहचानते। उनकी परंपराएँ, कला, और वन्य ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी संजोया गया है। इको-टूरिज्म से उनके सतत जीवनयापन को भी सहयोग मिलता है।

Dr. Parvish Pandya / हिरण

पर्यटकों के लिए ज़िम्मेदारी
ताडोबा जैसी प्राकृतिक धरोहरों की यात्रा केवल रोमांच नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी भी है। यहाँ आकर हमें इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:
जंगल में शांति बनाए रखें और अनावश्यक शोर न करें।
प्लास्टिक का उपयोग न करें और कचरा जंगल में न फैलाएँ।
वन्यजीवों को सुरक्षित दूरी से देखें और उनके प्राकृतिक व्यवहार में हस्तक्षेप न करें।
स्थानीय जनजातियों का सम्मान करें और उनके संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा दें।

ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व न केवल भारत के वन्य जीवन का गौरव है, बल्कि यह हमारी पारिस्थितिकी को संतुलित रखने में भी अहम भूमिका निभाता है। यहाँ की यात्रा हमें प्रकृति की अद्भुत शक्ति और उसकी नाजुकता दोनों का अहसास कराती है।

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