ADVERTISEMENT

'भारतीय सिलिकॉन वैली' की नौकरियों में आरक्षण पर बवाल, दिग्गजों के विरोध के बाद प्रस्ताव होल्ड पर

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा है कि उनकी सरकार एक नए कानून को अंतिम रूप दे रही है जो कंपनियों को यह सुनिश्चित करने के लिए मजबूर करेगा कि उनके आधे से अधिक कर्मचारी ऐसे आवेदक हों जो कर्नाटक की प्रमुख भाषा बोलते हैं।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया नए कानून को जायज ठहराया है। / X @siddaramaiah

भारत की सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले बेंगलुरु शहर में अब सभी प्राइवेट नौकरियों में से आधी से ज्यादा स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने के प्रस्ताव पर विवाद हो गया है। कर्नाटक राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की सरकार ने इस संबंध में नए कानून की घोषणा की है। हालांकि भारतीय टेक कंपनियों द्वारा इसकी कड़ी आलोचना के बाद सरकार ने प्रस्तावित विधेयक को होल्ड कर दिया है। 

बेंगलुरू को भारत की ग्रोथ का आईटी पावरहाउस माना जाता है। गूगल, टीसीएस और इन्फोसिस जैसी वैश्विक आईटी कंपनियों के ऑफिस यहीं पर हैं। इंडस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार, बेंगलुरू देश-विदेश से आईटी सेक्टर की शीर्ष इंजीनियरिंग प्रतिभाओं को आकर्षित करता है। कर्नाटक राज्य के अनुमानित 336 बिलियन डॉलर के वार्षिक आउटपुट में लगभग एक चौथाई हिस्सा यहीं से आता है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बुधवार को कहा कि उनकी सरकार एक नए कानून को अंतिम रूप दे रही है जो कंपनियों को यह सुनिश्चित करने के लिए मजबूर करेगा कि उनके आधे से अधिक कर्मचारी ऐसे आवेदक हों जो कर्नाटक की प्रमुख भाषा बोलते हैं। सिद्धारमैया ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए है कि स्थानीय लोग नौकरियों से वंचित न हों और उन्हें अपनी जन्मभूमि में आरामदायक जिंदगी मिल सकें।



कर्नाटक सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी उद्योग निकाय नैसकॉम ने कहा कि यह प्रस्ताव से गंभीर रूप से चिंतित करने वाला है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यह कदम यहां पर उद्योग को खत्म करने वाला और स्थापित कंपनियों को बाहर जाने पर मजबूर करने वाला साबित हो सकता है। नैसकॉम में एक बयान में कहा इस प्रस्ताव से उद्योगों के विकास में बाधा आएगी, नौकरियों पर असर पड़ेगा और राज्य के ग्लोबल ब्रांड प्रभावित होगा। 

फार्मास्युटिकल दिग्गज बायोकॉन की संस्थापक किरण मजूमदार शॉ उद्योग जगह की कई अन्य हस्तियों ने भी ऐसी ही आशंका जताई है। किरण ने चेतावनी दी कि इससे आईटी में बेंगलुरु की अग्रणी स्थिति खतरे में आ सकती है। इन्फोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी मोहनदास पई ने कहा कि विधेयक भेदभावपूर्ण है।

हालांकि कड़े विरोध के बाद कर्नाटक सरकार ने उस विधेयक को रोक दिया जिसमें राज्य की निजी कंपनियों को कन्नड़ लोगों के लिए नौकरियां आरक्षित करने का प्रावधान है। इस बिल में देश की आईटी कैपिटल की कंपनियों में गैर-प्रबंधन भूमिकाओं की 70 प्रतिशत और प्रबंधन स्तर की 50 प्रतिशत नौकरियों में स्थानीय लोगों की नियुक्तियों को प्राथमिकता देने की बात कही गई है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने एक्स पर पोस्ट किया कि निजी क्षेत्र के संस्थानों, उद्योगों और उद्यमों में कन्नड़ लोगों के लिए आरक्षण लागू करने वाला विधेयक अभी तैयारी के चरण में है। अगली कैबिनेट बैठक में व्यापक चर्चा के बाद इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। 

गौरतलब है कि भारत में लगभग 55 करोड़ लोग आईटी सेक्टर में काम करते हैं। इनमें से कई बेंगलुरु में सबसे अधिक मांग वाली नौकरियों में हैं। लेकिन देश के अन्य हिस्सों से भारतीयों का आना बेंगलुरू में खासकर स्थानीय रूप से प्रभावशाली कन्नड़ भाषियों की नाराजगी का विषय बन गया है। 

कर्नाटक के लगभग दो-तिहाई निवासी कन्नड़ बोलते हैं, लेकिन राज्य के बाहर इस भाषा का शायद ही उपयोग किया जाता है जबकि हिंदी और अंग्रेजी शहर के आईटी सेक्टर की आम भाषा हैं। राज्य में क्षेत्रवादी कार्यकर्ताओं ने पहले भी साइनबोर्ड पर अंग्रेजी के इस्तेमाल का विरोध करते रहे हैं। सिद्धारमैया सरकार ने इस साल सार्वजनिक साइनेज को मुख्य रूप से कन्नड़ भाषा में लिखना अनिवार्य कर दिया है। 

Comments

ADVERTISEMENT

 

 

 

ADVERTISEMENT

 

 

E Paper

 

 

 

Video

 

Related