सत्ता में वापसी के बाद कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने जो बातें कीं, दावे और वायदे किए उसका आकलन सब अपने हिसाब से कर रहे हैं या कर चुके होंगे। राष्ट्रपति ने मंगलवार रात को जो गर्वोक्तियां की हैं उनके हिसाब से महज डेढ़ महीने में अमेरिका महान बनने की दहलीज पर आ खड़ा हुआ है। अमेरिकी सपने की 'वापसी' हो गई है और 'स्वर्ण युग' का आगाज हो चला है। उनका कहना था कि पिछले सत्ता काल में अमेरिकियों को जो चिंताएं सता रही थीं अब उनका खात्मा हो गया है और बहुत कुछ ऐसा हुआ है जो अब तक विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र में नहीं हुआ। और बकौल ट्रम्प- होगा भी नहीं। संबोधन के लिहाज से ट्रम्प के केवल 45 दिन के राज में अमेरिका में जमीनी हालात बदल गये हैं। दुनिया का भूगोल बदलने वाला है... वर्ना बदल दिया जाएगा। लेकिन क्या यह सब वाकई काबिले-भरोसा है। यह सही है कि ट्रम्प 2.0 में अमेरिका की नीति और विश्व की राजनीति में कई 'पलट-प्रवाह' हुए हैं लेकिन अगर पिछली सत्ता में सब कुछ 'गड़बड़' था तो क्या सत्ता परिवर्तन के बाद और इतने कम समय में अमेरिका में 'रामराज्य' आ गया है।
यह सही है कि नए निजाम में नीतियां बदल गई हैं किंतु क्या 'महानता' और 'स्वर्ण युग' इतनी जल्दी हासिल किया जा सकता है। इसका उत्तर अमेरिका की जनता देगी या दे सकती है। हां, जहां तक भारतवंशियों का सवाल है तो इस 'जन्नत' में रहने वाले या बसने का ख्वाब देख रहे भारतीय समुदाय के लोग 'नये राजा' की रवायतों पर इतनी जल्दी प्रतिक्रिया देने की स्थिति में नहीं लगते। इसलिए कि जैसे-जैसे नई नीतियां अमल में आएंगी उसके कुछ समय बाद ही उनकी अच्छाई या बुराई सामने आएगी। लेकिन इतना तो तय है कि अद्वितीय रूप से प्रतिभाशाली और पैसे वालों के लिए अमेरिका के दरवाजे खुले हुए हैं और खुले रहेंगे। अलबत्ता उन प्रतिभाओं को हर हाल में अमेरिका को कुछ देना होगा। या तो कर या रोजगार। वैसे 'जन्नत' में जगह पाने का यह विकल्प भारतीयों के साथ सबके लिए खुला है। पूरी दुनिया के लिए। उसका पैमाना भी समान है। यह भी सही है कि भारतवंशियों ने अमेरिका में हर क्षेत्र की बुलंदियों को छुआ है। शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार और सियासत तक में भारतीय अग्रणी बने हुए हैं। कामयाबी का यह सिलसिला आगे भी बना रहेगा, ऐसा लगता है। अलबत्ता, भारत के लिहाज से एक सबसे बड़ा क्षेत्र जो प्रभावित होने वाला है या जिस पर बोझ पड़ने वाला है वह है व्यापार। और इसमें टैरिफ एक ऐसा पहलू है जो व्यापार का पूरा गणित बदलकर रख देगा। भारत कृषि जैसे जिन क्षेत्रों में देश के गरीब किसानों की दुहाई देकर जिस राहत या रियायत की मांग कर रहा है, लगता नहीं कि ट्रम्प प्रशासन को उस पर रहम आएगा। यह भी तय है कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने जो एक बार कह दिया वे उससे पीछे हटेंगे। पीछे हटने का मतलब वे 'महानता' में बाधा के तौर पर देखेंगे।
फिर भी, इन हालात में अमेरिका में बसे सियासी जगत के डेमोक्रेट भारतवंशियों ने ट्रम्प के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। सभी डेमोक्रेट सांसद ट्रम्प की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं, उनके फैसलों में खोट देख रहे हैं और दूरगामी दृष्टि से जमीनी स्तर पर इसमें अमेरिका का अहित देख रहे हैं। उन्हे गरीब, आम और मध्यवर्ग के लोगों की चिंता सता रही है। यह सियासी तकाजा भी हो सकता है। लेकिन देर से ही सही प्रजा 'जन्नत' की हकीकत अवश्य बताएगी। वह बताएगी कि लोकतंत्र के 'मंदिर' में 'रामराज्य' आया कि नहीं।
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