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ट्रंप के नए आदेश को सामाजिक संगठनों ने बताया समुदायों के लिए खतरा

राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में इंग्लिश को अमेरिका की आधिकारिक भाषा घोषित किया है।

ट्रंप के इस आदेश पर सिख कोएलिशन ने भी चिंता जताई है। / facebook @ donald trump

नेशनल काउंसिल ऑफ एशियन पैसिफिक अमेरिकन्स (NCAPA) ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस हालिया एक्जीक्यूटिव ऑर्डर की कड़ी निंदा की है, जिसमें इंग्लिश को अमेरिका की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया है। 

इसके बाद अब सरकारी फंडिंग पाने वाली सरकारी एजेंसियों और संस्थाओं को अब ये तय करना होगा कि वे अपनी सेवाएं और दस्तावेज अंग्रेजी में ही देना चाहते हैं या नहीं। 

दरअसल ट्रंप ने तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन द्वारा पारित एक्जीक्यूटिव ऑर्डर 13166 को रद्द कर दिया है जिसके तहत फेडरल एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना था कि कम अंग्रेजी जानने वाले लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और कानूनी सहायता जैसी महत्वपूर्ण सेवाएं उनकी भाषा में उपलब्ध हों।  

ये भी पढ़ें - ट्रम्प के ‘अमेरिकन ड्रीम’ भाषण पर भारतवंशी डेमोक्रेट्स का करारा जवाब

वाशिंगटन डीसी स्थित 44 एशियन पैसिफिक अमेरिकन संगठनों के गठबंधन NCAPA ने ट्रंप के इस ऑर्डर को भाषा पहुंच, समानता और मूल अधिकारों के लिए खतरा करार दिया है। उसने कहा कि एशियन अमेरिकन, नेटिव हवाईयन और पैसिफिक आइलैंडर समुदायों को इस ऑर्डर से कठिनाई होगी। यह ऑर्डर समाज में विभाजन को और गहरा बना सकता है।

NCAPA के नेशनल डायरेक्टर ग्रेग ऑर्टन ने ट्रंप के इस आदेश की आलोचना करते हुए कहा, "कई अमेरिकी इमिग्रेंट्स को नस्लवादी टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। यह ऑर्डर भी उसी तरह का है, बस यह राष्ट्रपति के आदेश के रूप में आया है। यह ऑर्डर सिर्फ अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा घोषित करने से कहीं ज्यादा है। इससे लाखों अमेरिकियों के लिए आर्थिक अवसर सीमित हो सकते हैं।"  

सिख कोएलिशन ने भी चिंता जताई 
सिख कोएलिशन ने भी ट्रंप के इस आदेश पर चिंता जताते हुए इसका विरोध किया है। सोशल मीडिया पर एक बयान में संगठन ने कहा, "यह आदेश समाज के ऐसे समुदायों को हाशिए पर धकेल सकता है जिन्होंने अमेरिकी समाज को समृद्ध बनाने में योगदान दिया है।" 

सिख कोएलिशन ने भी चेतावनी दी है कि इंग्लिश को "राष्ट्रीय भाषा" बनाने की वजह से अन्य भाषाएं बोलने वाले समुदायों को गंभीर नतीजों का सामना करना पड़ सकता है। सरकारी सेवाओं तक उनकी पहुंच सीमित हो सकती है और सामाजिक असमानता बढ़ सकती है।
 

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