डोनाल्ड जे. ट्रम्प के ऐतिहासिक शपथ ग्रहण पर पूरी दुनिया की नजरें हैं। एक तरफ ट्रम्प के पहले कार्यकाल से कई समानताएं दिख रही हैं, वहीं ट्रम्प 2.0 सरकार को लेकर जिज्ञासा भी है। वजह है ट्रम्प का अप्रत्याशित रवैया। ट्रम्प ऐसे समय पद संभालने जा रहे हैं, जब पूर्वी यूरोप और पश्चिम एशिया में युद्ध छिड़े हैं, सप्लाई चेन में बड़ी बाधाएं आ चुकी हैं, वैश्विक तापमान बढ़ रहा है और मुद्रास्फीति ने दुनिया के कई देशों की नींद उड़ा रखी है। ट्रम्प के नए प्रशासन में भारत के सामने कई अवसर हैं तो कई चुनौतियां भी हैं।
द्विपक्षीय संबंध
अमेरिका और भारत के संबंध इस वक्त वैश्विक भू-राजनीति की आधारशिला बने हुए हैं। राष्ट्रपति क्लिंटन के समय से ही हर राष्ट्रपति ने व्यापारिक, वाणिज्यिक संबंधों, सुरक्षा व प्रौद्योगिकी में साझा हितों के ध्यान में रखकर संबंध मजबूत किए हैं। ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल आपसी व्यापार, आव्रजन, हिंद-प्रशांत क्षेत्र और मैन्यूफैक्चरिंग पर फोकस के साथ इन महत्वपूर्ण संबंधों को फिर से व्यवस्थित करने का अवसर है।
ट्रम्प 2.0 सरकार में भी अमेरिका और भारत का व्यापार आपसी संबंधों का एक महत्वपूर्ण, मगर विवादास्पद हिस्सा बना रहेगा। ट्रम्प के पहले कार्यकाल में टैरिफ और व्यापार को लेकर असंतुलन और खटपट देखने को मिली थी। दोनों देशों ने एक-दूसरे की वस्तुओं पर शुल्क तक लगा दिया था। इसके बाद भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस (जीएसपी) के फायदों से वंचित कर दिया गया था। इसकी वजह से व्यापारिक संबंधों अधर में आ गए थे। 2021 में ट्रेड पॉलिसी फोरम (टीपीएफ) के फिर से शुरू होने के बाद ही व्यापारिक वार्ता में तेजी आई थी।
बाजार और अर्थव्यवस्था
भारत 4 ट्रिलियन डॉलर इकोनमी बनने के करीब है। वह सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है। इस लिहाज से अमेरिकी कारोबारियों के लिए वहां पर विशाल संभावनाएं हैं। अमेरिका कृषि उत्पादों, डिजिटल सर्विसेज टैक्स और बौद्धिक संपदा सुरक्षा पर टैरिफ जैसे प्रमुख मुद्दों को सुलझाकर व्यापारिक वार्ता को आगे बढ़ाने की पहल कर सकता है।
वहीं भारत रेग्युलेटरी बाधाओं को लेकर अमेरिका की चिंताओं को दूर करके अपने माल और आईटी सर्विसेज के लिए बड़े बाजार तक पहुंच प्राप्त कर सकता है। भारत की दिग्गज आईटी कंपनियों के लिए एच-1बी वीजा का प्रमुख मुद्दा है। एच-1बी वीजा और उच्च कुशल आव्रजन जैसे मसलों पर सख्ती की चर्चाओं ने एमएजीए समर्थकों और उदारवादियों के बीच दरार पैदा कर दी है।
इमिग्रेशन व टैलेंट
यह मसला भारतीय आईटी पेशेवरों को सीधे-सीधे प्रभावित करता है। सिलिकॉन वैली में प्रतिभाओं की कमी दूर करने में भारतीयों की अहम भूमिका रहती है, जो उच्च-कुशल वीजा पर निर्भर हैं। यह अन्य अमेरिकी उद्योगों और अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम हैं, जिन्हें चीन से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रम्प के सामने आव्रजन नीतियों में सुधार करने का अवसर है। इन्हें आर्थिक जरूरतों के हिसाब से नया रूप दिया जा सकता है।
नौकरशाही की अड़चनों को दूर करने, स्किल्ड वर्कर्स के लिए वीजा आसान बनाने और ग्लोबल टैलंट के अनुरूप सिस्टम तैयार करने से दोनों ही देशों को फायदा होगा। भारत को जहां अपने प्रोफेशनल्स को वैश्विक मंच पर मजबूत करने का मौका मिलेगा, वहीं अमेरिका को टेक्नोलोजी व तथा हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों में अपनी बढ़त बनाए रखने का अवसर मिलेगा।
क्वाड और चीन
सुरक्षा के नजरिए से देखें तो भारतीय-प्रशांत क्षेत्र अमेरिका और भारत के रणनीतिक हितों के लिए अहम बना हुआ है। इंडो-पैसिफिक रणनीति की आधारशिला क्वाड है। चार लोकतंत्रों की 35 हजार अरब डॉलर से अधिक की अर्थव्यवस्था ने वैश्विक चुनौतियों से निपटने को प्राथमिकता दी है, जिसमें स्वास्थ्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, पुनर्निर्माण, सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखलाओं को पुनर्जीवित करना और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का विकास शामिल है।
दक्षिणी चीन सागर और भारत की उत्तरी सीमाओं पर चीन की लगातार बढ़ती मुखरता ने क्वाड को नया महत्व प्रदान किया है। ट्रम्प के पहले कार्यकाल में BECA (बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट) और COMCASA (कम्युनिकेशंस कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट) जैसे ऐतिहासिक समझौतों ने रक्षा संबंध को गहरा बनाया था। इस बार इन्हें और मजबूती मिलने की उम्मीद है।
टेक्नोलोजी शेयरिंग
अमेरिका और भारत के बीच रक्षा साझेदारी में पिछले एक साल में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। संयुक्त सैन्य अभ्यास, समुद्री गश्त और एकदूसरे से खुफिया जानकारी शेयर करना बीजिंग के प्रभाव से निपटने में महत्वपूर्ण होगा। इसके अलावा रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में विस्तार से भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा रणनीति की आधारशिला के रूप भूमिका को और मजबूती मिल सकती है।
अमेरिका भारत की क्षमताओं को मजबूत करके इंडो-पैसिफिक में नियम आधारित व्यवस्था को सुदृढ़ कर सकता है। अपने पहले कार्यकाल में चीन को लेकर ट्रम्प का टकराव वाला रुख भारत की सुरक्षा चिंताओं खासकर 2020 की गलवान घाटी की झड़प से जुड़ा था। ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका-भारत को चीन प्लस वन रणनीति के जरिए उसके ऊपर आर्थिक निर्भरता घटाने और विनिर्माण अर्थव्यवस्था तैयार करने पर फोकस करना चाहिए।
भारत का एजेंडा
भारत में पेश होने वाले आम बजट से उम्मीद है कि कारोबार के नियमों आसान बनाने, अधिक अमेरिकी निवेश आकर्षित करने और आपसी विकास को बढ़ावा देने के लिए सुधारों को लागू किए जाने चाहिए। ट्रम्प के 'अमेरिका फर्स्ट' एजेंडे को भारत की 'मेक इन इंडिया' पहल से संतुलित करना एक प्रमुख चुनौती है क्योंकि दोनों देश घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को प्राथमिकता दे रहे हैं। हालांकि इस टकराव पर आपसी सहयोग समय की मांग है। भारत की विशाल श्रम शक्ति और बढ़ता औद्योगिक आधार अमेरिकी तकनीकी विशेषज्ञता और पूंजी निवेश के पूरक बन सकते हैं।
अमेरिकी कंपनियों की भारत के विनिर्माण क्षेत्र खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स व फार्मा में रुचि बढ़ी है। सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग सुविधाओं से इसमें और बढ़ोतरी होगी। अमेरिका की प्रमुख कंपनियों ने भारत में स्मार्टफोन मैन्यूफैक्चरिंग, ऑटोमैटिक वाहनों और चिप डिजाइन में काफी निवेश किया है। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त उद्यमों को प्रोत्साहित करने वाली नीतियां इस सहयोग को और आगे ले जा सकती हैं।
ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल अमेरिका-भारत संबंधों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। चुनौतियों के बावजूद मजबूत साझेदारी की नींव रखी जा चुकी है। इस पर आगे बढ़ने की राह में व्यापार असंतुलन, आव्रजन सुधार और सुरक्षा सहयोग संबंधी चुनौतियां हैं। ट्रम्प प्रशासन में दोनों ही देशों को व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाकर रणनीतिक जरूरतों के साथ आर्थिक प्राथमिकताओं को संतुलित करना होगा।
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