सैन फ्रांसिस्को के सीईओ और IIT के पूर्व छात्र वरुण वुम्माडी ने 30 जनवरी को एक्स (पहले ट्विटर) पर अपनी पोस्ट में भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की काम करने की आदतों पर सवाल उठाए हैं। उनकी बातें, खासकर ज्यादा तनख्वाह के बावजूद छह दिन काम करने से कतराने को लेकर, काफी चर्चा में हैं। इसे लेकर वर्क-लाइफ बैलेंस पर बहस छिड़ गई है।
वुम्माडी ने लिखा, 'हमारे भारतीय दफ्तर में इंजीनियर्स की भर्ती करते वक्त मुझे एक पैटर्न नजर आया है। एक करोड़ रुपये की बेसिक सैलरी के बावजूद बहुत से लोग ज्यादा मेहनत करने को तैयार नहीं हैं। तीन से आठ साल के अनुभव वाले कई इंजीनियर्स वीक में छह दिन काम करने से कतराते हैं।'
पिछले साल Infosys के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने वैश्विक प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए लंबे काम करने के घंटों की जरूरत पर जोर दिया था। उनके वीक में 70 घंटे काम करने वाले बयान की खूब आलोचना हुई थी। लोगों ने कहा कि इससे कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य और निजी जिंदगी पर बुरा असर पड़ता है।
हाल ही में लार्सन एंड टुब्रो (L&T) में भी यह मुद्दा फिर सामने आया। वहां कर्मचारियों से समय सीमा पूरी करने के लिए ज्यादा ओवरटाइम के साथ ही अक्सर वीकेंड में भी काम करने की उम्मीद की जाती है। L&T के चेयरमैन एस एन सुब्रमण्यन ने वीक में 90 घंटे काम करने का सुझाव दिया था। ये बातें दिखाती हैं कि कई भारतीय पेशेवरों पर निजी जिंदगी से ज्यादा काम को तरजीह देने का कितना दबाव है।
दूसरी तरफ भारत के कॉरपोरेट जगत में लोग कम पैसे में रात-रात भर काम करने, खुद के लिए समय न मिलने से हताश हैं।एक एक्स यूजर राधिका रॉय ने लंबे काम के घंटों और भारतीय काम करने के तरीके पर अपने विचार साझा करते हुए लिखा, 'छह महीने से यूरोप में हूं और मुझे भारत के काम करने के तरीके से नफरत होने लगी है। रोज रात के 12 बजे के बाद तक काम करना पड़ता है। उसके बदले में मिलते हैं मूंगफली के दाम और इज्जत भी नहीं मिलती। अपने लिए कोई समय नहीं मिलता। हम लोग कैसे इतने सालों से यूं जी रहे हैं?'
वुम्माडी की एक्स पर पोस्ट को 371,000 से ज्यादा व्यूज मिले। इस पर लोगों ने खूब समर्थन और विरोध भी किया। कुछ लोग उनकी बातों से सहमत हुए, तो कुछ ने वर्क-लाइफ बैलेंस का बचाव करते हुए कहा कि यह सिर्फ सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में ही नहीं, बल्कि हर उद्योग में एक मुद्दा है।
जैसे-जैसे विरोध बढ़ता गया वुम्माडी ने 2 फरवरी को एक और पोस्ट में अपने विचारों पर जोर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि वर्क-लाइफ बैलेंस एक ऐसा शब्द है जो लोगों का ध्यान खींचता है, लेकिन सफलता के लिए जरूरी नहीं है। उन्होंने लिखा, 'भारतीयों को वर्क-लाइफ बैलेंस ही ध्यान और प्रचार दिलाता है। जो लोग मेहनत करने को तैयार हैं, उम्मीद है कि वे इस वायरस से नहीं घबराएंगे। कई सफल स्टार्टअप्स ने वीक में छह या सात दिन काम किया है। एलन मस्क एक जीता-जागता उदाहरण हैं कि अगर आप मेहनत करेंगे तो कहां पहुंच सकते हैं।'
उनकी ये टिप्पणी टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क के ट्वीट के कुछ समय बाद आई, जिसमें उन्होंने लिखा था, "DOGE वीक में 120 घंटे काम कर रहा है। हमारे नौकरशाही विरोधी आशावादी 40 घंटे काम करते हैं। इसीलिए वे इतनी तेजी से हार रहे हैं।"
वुम्माडी की पोस्ट के जवाब में एक यूजर ने लिखा, 'काम करने की आदत सिर्फ घंटों के बारे में नहीं होती, बल्कि काम के असर के बारे में होती है। अगर एक करोड़ रुपये की बेसिक सैलरी के बावजूद प्रतिभाशाली इंजीनियर्स हिचकिचा रहे हैं, तो यह सोचने लायक है कि क्या उम्मीदें आधुनिक काम करने के तरीके के साथ तालमेल बिठाती हैं। लगातार उत्पादकता अक्सर ज्यादा घंटों से बेहतर होती है।'
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