वॉक करने निकली थी। देखती हूं घर के सामने पार्क में येल्याना बैठी है। उसके अनुसार यहां सभी उसके नाम का थोड़ा ग़लत उच्चारण करते हैं। येल्याना को ‘येलिना’ कहते हैं। उन सभी में मैं भी शामिल थी कई बार। येल्याना, यूक्रेन से है। इस एक साल में उससे ठीक-ठाक दोस्ती हो गई है। कई क़िस्से उसके देश-घर के सुने हैं तो कई अपने देश के सुनाए है। हमारी कोलोनी में कई परिवार यूक्रेन और रशिया से हैं। यह लोग यूक्रेन-रशिया बॉर्डर वाले ज़्यादातर हैं। युद्ध की मार से बचने के लिए यहां शरण लिए हुए हैं।
मुझे लगा नहीं था कि यह युद्ध इतना लंबा होगा…औरों की तरह मैं भी इसे भूल कर अपनी दुनिया में चहक-महक रही थी कि येल्याना आज टकरा गई। हमारी पहली मुलाक़ात भी कम दिलचस्प नहीं थी।
ग्लास स्किन, नीली आंखें, पतली-दुबली, सीधे हल्के भूरे बालों वाली येल्याना खूब सुंदर है। सजने-संवरने का भी खूब शौक़ है उसे। मैंने कभी उसे बाहर यूं ही ट्रैकिंग पैंट या घर के कपड़ों में नहीं देखा। वह कहती है कि हमारे यूक्रेन में तो सुपरमार्केट भी तैयार होकर जाते हैं। ड्रेसिंग बहुत मायने रखती है हमारे लिए।
हां तो विषय से ना भटकते हुए पहुंचती हूं जब येल्याना पार्क में बैठी हुई थी। बेंच के सामने जो जगह है, उसपर उसने एक तस्वीर चौक से बना रखी है। बच्चें यहां रंगीन चौक से कुछ-कुछ बनाते रहते हैं। कई बार चौक छोड़ भी जाते हैं। उन्हीं छोड़े चॉक्स से उसने एक तस्वीर बनाई थी। मुझे देख कर चहकती हुई हाय कहती है और पूछती है तुम्हा बेटा आज कहां है? मैंने कहा दोनों अपने पिता के साथ स्वीमिंग गए हैं।
ओह के साथ उसने कहा कि फिर आज ऐवा को अकेले खेलना पड़ेगा। ऐवा उसकी ढाई साल की बेटी है। मैं देखती हूं येल्याना को। सुनती हूं उसकी बातें तो लगता है वह यूक्रेन को वैसे ही याद करती है जैसे मैं भारत को।
हम दोनों के विस्थापन का कारण अलग-अलग है पर दर्द एक सा है। या यूं कहें उसे मुझसे कहीं ज़्यादा दर्द है। मैं तो बस परिवार के मोह की मारी हूं। वह बताती है कि वह जब मां बनने वाली थी तब युद्ध शुरू हो गया। ऐसे में वहां रहना सुरक्षित नहीं था। शहर उजड़ गया, घर टूट गए, पर उसका परिवार वहीं रह गया। परिवार वाले ठीक हैं पर हर रोज़ मुश्किल का सामना करते हैं। कभी बिजली, कभी पानी, कभी बम…
वह अपने पति के साथ अमेरिका चली आयी। लेकिन अमेरिका के भी अपने दर्द हैं। पहला बच्चा कोई जानकारी नहीं, परिवार नहीं, दोस्त नहीं, नई जगह और फिर बाक़ी की ज़िम्मेदारी। कई बार मुझे लगता है मैं ही हूं, पर मेरे साथ तो फिर भी कई दोस्त थें जो परिवार समान हैं।
वह कहती है कि लवली जैसे ही युद्ध ख़त्म होगा मैं अपने देश चली जाऊंगी। यह कहते हुए उसकी आंखें उदास रहती हैं और चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट। मैं कुछ बोल नहीं पाती। वह शायद बात बदलते हुए पूछती हैं कि एक फ़िल्म है कम एंड सी। देखी है तुमने?
मैंने कहा: नहीं
ओह! क्या फ़िल्म है। तुमने इतनी वॉर बेसेड मूवीज़ देखी पर मास्टरपीस तो रह ही गया। इसे ज़रूर देखना और मुझे बताना कैसी लगी।
मेरी और येल्याना की बातों से इतर इस यूक्रेनियन लड़की ने क्या बेहतरीन फ़िल्म बताई… युद्ध की यातनायें बरसों बाद भी उतनी मारक है…मैं कई दिन इस फ़िल्म के दृश्यों में उलझी रही…इस देखना एक त्रासदी ही हैं…
सोचती हूं कि हमने इतनी घृणा देखी है फिर भी हम वहीं हैं। इसका कोई अंत नहीं… सोचती हूं, कब येल्याना यूक्रेन लौटेगी? वहां लौट कर उसकी मनोदशा क्या होगी? क्या वह तब भी मेरी दोस्त बनी रहेगी…
क्या वह यहां से जा पाएगी? क्या यहां से जाने के बाद उसे अमेरिका याद आएगा? आख़िर यहां उसे सुरक्षा मिली थी। फिर उसकी बेटी का जन्मस्थान। और सुना है अपनी मिट्टी से विस्थापित व्यक्ति अमूमन विस्थापित ही रह जाता है।
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