अमेरिका के वर्जीनिया में 10 अप्रैल को मुझे WHEELS Global Foundation के एक इवेंट में जाने का मौका मिला। इस इवेंट में दो बड़े शख्सियतें मुख्य वक्ता थे। धार्मिक और सामाजिक नेता श्री माधुसूदन साई और क्रिकेट के दिग्गज सुनील गावस्कर। ये पूरा इवेंट सुरेश शेनॉय ने बहुत खूबसूरती से होस्ट किया था।
कार्यक्रम के बाद मुझे गावस्कर से मिलवाया गया। उन्हें बताया गया कि मैं एक बौद्धिक संपदा (IP) वकील हूं। बातचीत के दौरान, उन्होंने (गावस्कर) बताया कि 1970 और 1980 के दशक में उनके पूरे क्रिकेट करियर में उनकी बहुत सारी तस्वीरें और वीडियो बनाए गए थे। फिर उन्होंने एक बहुत ही अहम सवाल पूछा, इन तस्वीरों और रिकॉर्डिंग का मालिक कौन है?
आज के दौर में मशहूर हस्तियों की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया, वेबसाइट्स और विज्ञापनों पर बहुत जल्दी वायरल हो जाते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सिर्फ तस्वीर या वीडियो लेने वाला उसे जैसे चाहे वैसे इस्तेमाल कर सकता है। खासकर तब जब उसमें सुनील गावस्कर जैसी कोई मशहूर हस्ती हो।
खेल सितारों के लिए सबसे बड़ी चिंता सीधी है, बिना इजाजत लिए या बिना कोई पैसा दिए, कोई और उनकी तस्वीरों या वीडियो का इस्तेमाल पैसे कमाने के लिए कर सकता है। यह विज्ञापन, मर्चेंडाइज या सोशल मीडिया के जरिए हो सकता है। यह उन खिलाड़ियों के साथ खासकर नाइंसाफी है, जिनका चेहरा, नाम या उनकी कोई खास एक्शन वाली तस्वीर जूते से लेकर खाने-पीने की चीजें तक कुछ भी बेचने में काम आ सकती है।
खुशकिस्मती से खिलाड़ियों के भी अधिकार हैं। अमेरिका समेत कई देशों में, 'राइट ऑफ पब्लिसिटी' नाम का कानून उनकी हिफाजत करता है। इससे उन्हें अपने नाम, तस्वीर, आवाज और शक्ल के इस्तेमाल पर कंट्रोल मिलता है। अगर कोई बिना इजाजत उनके फोटो का इस्तेमाल किसी ऐड या किसी प्रोडक्ट में करता है, तो खिलाड़ी कानूनी कार्रवाई कर सकता है। लेकिन ये अधिकार हर देश में अलग-अलग हैं। कुछ देशों में साफ-साफ कानून हैं, तो कुछ देश अभी इन अधिकारों को मानने के शुरुआती दौर में हैं।
एक बात बहुतों को हैरान करती है कि फोटो क्लिक करने वाला या वीडियो रेकॉर्ड करने वाला आमतौर पर कॉपीराइट का मालिक होता है, फोटो में दिखने वाला शख्स नहीं। यहां तक कि अगर फोटो खिलाड़ी के फोन से ली गई हो, तो भी उसके पास ऑटोमेटिकली राइट्स नहीं होते, जब तक कि उसने खुद वो फोटो नहीं ली हो। मिसाल के तौर पर, अगर कोई फैन मैच के दौरान किसी क्रिकेटर की फोटो लेता है, तो कॉपीराइट फैन के पास होगा। लेकिन अगर वो फैन फिर उस फोटो का इस्तेमाल किसी बिजनेस को प्रमोट करने या कोई प्रोडक्ट बेचने के लिए करता है, तो वो खिलाड़ी के पब्लिसिटी राइट्स का उल्लंघन कर सकता है।
एडिटोरियल और कमर्शियल इस्तेमाल में फर्क है। न्यूज आर्टिकल्स, डॉक्यूमेंट्रीज या बायोग्राफिकल फीचर्स में इस्तेमाल होने वाली तस्वीरें आमतौर पर एडिटोरियल यूज के तहत आती हैं। आमतौर पर खिलाड़ी की इजाजत की जरूरत नहीं होती। लेकिन उसी फोटो का इस्तेमाल किसी ब्रांड को प्रमोट करने या माल बेचने के लिए कमर्शियल यूज है तो खिलाड़ी की मंजूरी की जरूरत होती है।
जब खिलाड़ी किसी प्रोफेशनल क्लब या लीग से जुड़ते हैं, तो वो अक्सर ऐसे कॉन्ट्रैक्ट साइन करते हैं जिससे उन ऑर्गेनाइजेशन्स को प्रमोशन के लिए उनकी तस्वीरों का इस्तेमाल करने का हक मिल जाता है। मिसाल के तौर पर, एक फुटबॉल क्लब को टीम के ऐड्स में खिलाड़ी की तस्वीर इस्तेमाल करने का हक हो सकता है। और एक लीग स्पॉन्सर्स या मीडिया कंपनियों को गेम्स की फुटेज बेच सकती है। हालांकि, टॉप लेवल के खिलाड़ी अक्सर अपने कॉन्ट्रैक्ट में खास क्लाजेज रखते हैं ताकि अपने इमेज पर कुछ कंट्रोल रख सकें – खासकर एंडोर्समेंट्स या पर्सनल ब्रैंडिंग के लिए।
अपनी इमेज की हिफाजत और मैनेजमेंट के लिए, कई जाने-माने खिलाड़ी 'इमेज राइट्स कंपनीज़' बनाते हैं। ये कंपनियां कानूनी तौर पर खिलाड़ी के नाम, तस्वीर और शक्ल की मालकिन होती हैं। ये ब्रांड्स, स्पॉन्सर्स और मीडिया कंपनियों के साथ लाइसेंसिंग डील करती हैं। इससे मिलने वाले पैसे इकट्ठा करती हैं। इससे खिलाड़ी को बेहतर कानूनी सुरक्षा, दुनियाभर में कंट्रोल और आर्थिक फायदा मिलता है।
खिलाड़ी अपनी इमेज की सुरक्षा के और भी तरीके अपनाते हैं। कुछ लोग बिना इजाजत इस्तेमाल रोकने के लिए 'सीज एंड डिजिस्ट' लेटर भेजकर कानूनी कार्रवाई करते हैं। कुछ लोग ऐसे सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करते हैं जो ऑनलाइन बिना इजाजत उनकी तस्वीर दिखने पर नजर रखता है। कुछ खिलाड़ी अपने नाम, निकनेम या सिग्नेचर सेलिब्रेशन का ट्रेडमार्क कराते हैं। बहुत से खिलाड़ी सोशल मीडिया या ई-कॉमर्स साइट्स से अपनी तस्वीर के गलत इस्तेमाल पर 'टेकडाउन रिक्वेस्ट' भी करते हैं।
एक बड़ी चुनौती यह है कि दुनियाभर में कानून एक जैसे नहीं हैं। अमेरिका में बहुत मजबूत सुरक्षा है, जबकि भारत जैसे देशों में ये कानून अभी बन रहे हैं। इससे आगे रहने के लिए, कई टॉप खिलाड़ी दुनियाभर के लीगल एक्सपर्ट्स के साथ काम करते हैं ताकि अपने ट्रेडमार्क रजिस्टर कर सकें और अपने इमेज राइट्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू कर सकें।
एक असली मिसाल के तौर पर, इस लेख में वर्जीनिया के इवेंट की एक तस्वीर है जिसमें डॉ. हितेन घोष, गावस्कर और मैं हूं। ये तस्वीर मेरे आईफोन से किसी ने ली थी, जो किसी ने बड़ी मेहरबानी से ली थी। लेकिन मुझे याद नहीं कि किसने ली थी। टेक्निकली, जिसने फोटो ली है, उसी के पास कॉपीराइट है, मेरे पास नहीं। चूंकि मुझे नहीं पता कि किसने फोटो ली है, कॉपीराइट की स्थिति साफ नहीं है। मैं इस तस्वीर का इस्तेमाल निजी काम के लिए कर सकता हूं, जैसे इस लेख में। लेकिन किसी विज्ञापन में इसका कमर्शियल इस्तेमाल कानूनी तौर पर मुश्किल हो सकता है।
आज के डिजिटल जमाने में किसी खिलाड़ी की इमेज लगभग उतनी ही कीमती है जितना उसका खेल का प्रदर्शन। सुनील गावस्कर, क्रिस्टियानो रोनाल्डो और सेरेना विलियम्स जैसे खेल के दिग्गज सिर्फ खिलाड़ी नहीं हैं, वो ग्लोबल ब्रांड्स हैं। और किसी भी ब्रांड की तरह, उनकी इमेज की भी सावधानी से हिफाजत करने की जरूरत है। चाहे आप कोई उभरता हुआ खिलाड़ी हो या ग्लोबल सुपरस्टार, संदेश एक ही है: अपने हक जानिए, अपनी इमेज की हिफाजत कीजिए और सुनिश्चित कीजिए कि अगर कोई आपकी शोहरत से फायदा उठा रहा है, तो आप भी उस तस्वीर और उस पैसे का हिस्सा हों।
(लेखक डॉ. राज एस. दवे इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी में स्पेशलाइज्ड लीगल और बिजनेस एडवाइजर हैं। ये लेख क्रिकेट के दिग्गज सुनील गावस्कर के एक सवाल के जवाब में लिखा गया है।)
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