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लोकगीतों के माध्यम से होली!

होली अपने साथ रंग - प्रेम - उत्सव और लोकगीतों की बौछार लेकर आती है। वहीं खेत-खलिहान वालों के लिए फसलों का त्योहार।

प्रतीकात्मक तस्वीर। / Pexels

पूरब के लोगों के लिए होली अपने साथ रंग - प्रेम - उत्सव और लोकगीतों की बौछार लेकर आती है। वहीं खेत-खलिहान वालों के लिए फसलों का त्योहार। मौसम ऐसा होता है कि हर तरफ़ बौर छाया रहता है। ऐसे में कैसे नव विवाहित जोड़े पर फागुन का असर ना हो। कैसे लोककवि गीत ना लिखते? कैसे लोकगायक यह दर्द, नोक-झोंक, प्रेम सुरों में ना बाँटते?  कैसे घर की विवाहित बेटी अपने पिया का इंतज़ार कर रही है की गवना नही कराया लेकिन होली में तो मिलने आ जाते पिया। 

ऐसे में लोकगीतों के माध्यम से फगुनाहट के क़िस्से: 

फागुन के साथ खेतों में सरसों की पिटाई हो रही है। चार दिन की बहूरिया अपने मेहंदी लगे हाथों से सरसों पीट रही है। ऐसे में उसके दूल्हे की नज़र उसपर पड़ती है। अपनी दुल्हन की हालत देख वह गुनगुना उठता है, 

" पानवा नियर गोरी आतर पातर, फूलवा नियर सुकूमार होऽऽऽ ला..... ला ....गोरी, हो आतर - पातर "

इतना सुनते ही दुल्हन का मुँह बिना गुलाल, गुलाबी हो उठता है।  अँचरा से मुँह ढाँक कर कनखी से अपनी ननद की तरफ़ देखती है कि कहीं वह तो नही सुन रही यह सब। 

ननद रानी इन सब को देख कर अनदेखा करती हुई सरसों को मसल रहीं है, ऐसे जैसे सारे अरमान मसल रही हो।  सोच रही है कि एक मेरा मरद है जिसे मेरी चिंता ही नही। ऐसे में नई- नवेली भाभी पूछती है, “बबूनी काहे मुँह सूखईले बानी? सब ठीक बा नू?”  ननद रानी भरे आँख, रुँधे गले से कहती है- भौजी तुमसे क्या छिपाना,

"पिया छोड़ी गईले परदेसवा रे

आइल फागुन के महिनवा रे सखियाँ…”

भौजी, ननद को समझाती है, चिंता मत करीं। भोले बाबा पर बीसबास रखी। पाहुन होली में ज़रूर आएम। भौजी की बात से ननदो को बल मिलता है। और दोनों ननद- भौजाई सरसों को पसार घर के कामों में लग जातीं है।

 शाम को भोजन की तैयारी में लगी भौजी तरकारी के लिए हरदी पीसने बैठी तो हरदी ऐसा पुरान की जल्दी कुचाए ना। पास ही बर्तन धो रही अपनी ननद से पूछती है, 

"कहवा के हाऊवे सील-सीलवटीया कहवा के हरदी पुरान होSSS”

ननद रानी हँस कर जबाब देती है, “राउरा नईहरे के हवे सील - सिलवातिया, ससुरा के हरदी पुरान होSSSS, गोरिया आंगना में पिसेलू हरदीया…”

वहीं दिन भर की सरसों पिटाई और पूरवा हवा के ज़ोर से बेचारी सुकुमार कनिया, सर्दी-गरम से फूल रही है। नाक झाड़-झाड़ के बिना रंग के लाल हुआ जा रहा है।

ऐसे में उसके दूल्हा को देखा नही जाता। कहता है कि “सुनअ ना नकबेसर खोल के रख द, ना त नाक छिला जाई।”

नई कनिया को भी बात सही लगती है। ऊ भी ई नकबेसर से परेशान है। निकाल कर रख देती है अँगना में जहाँ महावीर जी का स्थान है। अपने दूल्हा से कहती है, “तनी देखत रहिएगा नकबेसरवा हम आँगनवा लीप ली तबतक, होली जो है।”

इधर दूल्हा राजा चिवड़ा- दही का पान कर खटिया पर पड़े, हम्म तो कह देते है पर इसी बीच उनकी आँख लग जाती है ।

सुबह - सेबर के बेरा में कउवा सब का मौज होता है। ऐसे में एक कोवा भोजन की तलाश में अंगना में मंडरा रहा था। नकबेसर को ही अपना भोग समझ कर ले भागता है।

कनिया, कौवा को नकबेसर ले जाते देखती है तो छाती फाड़ कर रोने लगती है,

“नकबेसर कागा ले भागा,मोरा साइयाँ अनाड़ी ना जागा”

साइँया राम जब अपनी दुल्हनिया का विलाप सुनते है हड़बड़ा कर उठते हैं। कहते हैं, मत रोव हमार करेजा। हमारा से ग़लती हो गईल। हम तोहरा के लाली चुनरी ले आएम।

कनिया पूछती है कहवा के लाली चुनरी ? साइयाँ कहते हैं, 

“ हाजीपुर के लाली हो चुनरिया,पटना के रंगरेज सजनी लाली चुनरी…हो लाली चुनरी।”

इधर नव दंपति होली के साथ प्रेम के रंग में डूबा हुआ है की उधर  भोले बाबा और रेल बाबा की किरपा से ननदो के पाहुन अपने ससुरा में रंग खेलने पहली बार आ रहें है। सूट -बूट के साथ अटैची लिए जब गाँव में प्रवेश करतें है तो देखते है कि-

“फाग खेलत सारा गाँव रे रसिया फागुन आया ...”

गाँव का लाईका सब पाहुन को रास्ते में पकड़ कर रंगने लगता है । इधर एक छोट लईका दौड़ कर घर पहुँचता है बताने को की जीजा जी आ रहें है।  ननद रानी भोले बाबा को बार -बार गोड़ लाग रहीं है, बार -बार खिड़की- दुआर तक जा रही है कि कहाँ रह गए पिया मोरे ?अधीर हो पड़ोस के एक लईका को भेजती है पता लगाने को। वह बालक आकर कहता है- दीदिया, “यमुना तट श्याम खेलत होरी यमुना तट ..."

अब ननद रानी से सबर नही होता है। अबीर -रंग की थाल लिए  वह निकल पड़ती है, अपने श्याम राम को रंगने।

“उत से निकली नवल जानकी लेकर हाथ अबीर, होरी खेलत रघुबीर…”

होली के रंगों से सराबोर घर की नई कनिया, अपने दूल्हे को प्रेम पूर्ण ताना देती है कि,

"ऐसी होरी ना खेलो कन्हाई रे ऐसी होरी

तन मन रंग सब श्याम तुम जानत, जाओ - जाओ बनवारी रे ..."

इसी बीच ननद रानी भूत बनी अपनी पति के साथ घर पहुँचती है।भाभी उनका स्वागत रंगो से करती है। गाँव के पाहून को रंगने सारा गाँव उमड़ पड़ता है। महिलाएँ रंगों से भर देती हैं। वहीं पुरुषों की टोली,  ढोल-झाल के साथ निकल पड़ता है गाते हुए, 

“खेले मसान में होरी दिगम्बर

खेले मसान में होरी…”

और इसी के साथ आप सबको होली की रंगीन शुभकामनाएँ !!!

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