डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। रिपब्लिकन ट्रंप ने बीते बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए हुए कड़े मुकाबले में डेमोक्रेट कमला हैरिस को करारी शिकस्त दी। ट्रम्प ने अपने पूरे चुनावी अभियान के दौरान अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया। यह रुख घरेलू स्तर पर उनके कट्टर आव्रजन विरोधीपन को दर्शाता है। व्यापार और विदेश नीति विशेषज्ञों ने समझाया कि क्या ट्रम्प का यह रुख भारत और अमेरिका के बीच दोस्ती के आड़े आएगा।
जब डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति बने तो बधाई देने वाले सबसे पहले विदेशी नेताओं में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम था। पीएम मोदी ने ट्रम्प को फोन किया और जीतने की बधाई दी। पीएम मोदी ने ट्रम्प से कहा कि वे उम्मीद करते हैं कि उनकी दोस्ती पिछली बार की तरह नई ऊंचाईयों को छूगी। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प एक-दूसरे को मित्र कहते हैं, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि जब ट्रम्प फिर से अमेरिकी राष्ट्रपति बन रहे हैं तो बढ़ते व्यापार विवाद उनके मधुर संबंधों की परीक्षा लेंगे।
अपने आधिकारिक मुलाक़ातों के दौरान दोनों व्यक्तियों द्वारा साझा किए गए स्नेहपूर्ण आलिंगन और सौहार्दपूर्ण व्यवहार ट्रम्प के अपने पहले कार्यकाल में नई दिल्ली के प्रति कभी-कभार आक्रामक रुख को झुठलाते हैं, जब उन्होंने भारत को "टैरिफ किंग" और "व्यापार दुर्व्यवहारकर्ता" करार दिया था।
ट्रम्प की आव्रजन, व्यापार और विदेश नीतियां संभवतः इन विचारों पर आधारित होंगी, जिसका भारत पर भी प्रभाव पड़ेगा। ट्रम्प ने अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष वाले देशों पर "पारस्परिक" टैरिफ लगाने का वादा किया है। यह एक ऐसा कदम है जो दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में भारत के उद्योगों को प्रभावित कर सकता है। दिल्ली स्थित अनंत एस्पेन सेंटर थिंक-टैंक की मुख्य कार्यकारी इंद्राणी बागची ने एएफपी को बताया, "देखिए ट्रंप अमेरिका को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं, यह देखने वाली बात होगी, लेकिन वह अमेरिका में आर्थिक और औद्योगिक गतिविधि वापस लाना चाहते हैं।"
उन्होंने कहा, "दशकों से अमेरिका इस विचार पर कायम है कि चीजें कहीं और उत्पादित की जाती हैं और आपको वे सस्ती मिल सकती हैं। अगर विनिर्माण अमेरिका में वापस चला जाता है, तो उन देशों के लिए इसका क्या मतलब है जिनके पास अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष है?"
भारत और अमेरिका के बीच रिकॉर्ड 30 बिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार
वित्तीय वर्ष 2023-24 में 30 बिलियन डॉलर से अधिक के व्यापार अधिशेष के साथ भारत अमेरिका का नौवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। पीएम मोदी की सरकार ने अपने "मेक इन इंडिया" अभियान के माध्यम से स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने, नए उद्यमों के लिए सरल कानूनों और उदार कर रियायतों की पेशकश करने की भी मांग की है। चीन से बाहर अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने की चाहत रखने वाली कंपनी एप्पल और अन्य तकनीकी दिग्गजों की बढ़ती उपस्थिति के साथ यह पहल फलीभूत भी हुई है।
इसके अलावा टीसीएस और इंफोसिस सहित भारत की सबसे बड़ी तकनीकी कंपनियां अपने अमेरिकी समकक्षों को अपनी सूचना प्रौद्योगिकी जरूरतों को सस्ते श्रम बल के लिए आउटसोर्स करने का साधन देकर कॉर्पोरेट लेविथान बन गई हैं। बिजनेस कंसल्टेंसी द एशिया ग्रुप के अशोक मलिक ने एएफपी को बताया कि अगर ट्रम्प नौकरियों को वापस लाने और "टैरिफ" शुरू करने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करना चाहते हैं तो सभी को नुकसान हो सकता है।
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