कनाडा की संघीय राजनीति में उथल-पुथल और पड़ोसी अमेरिका में सत्ता परिवर्तन ने यहां रहने वाले 20 लाख से अधिक भारतीय मूल के प्रवासियों की समस्याएं बढ़ा दी हैं। भारतीय मूल के नेताओं में विश्वास की खाई चौड़ी हो गई है। यह लिबरल पार्टी की लीडरशिप के आगामी चुनाव में साफ दिख रहा है।
कनाडा और भारत सरकार के बीच पिछले साल से 'विदेशी हस्तक्षेप' के आरोपों को लेकर घमासान जारी है। यह घमासान अभूतपूर्व और अप्रिय राजनयिक विवाद का रूप ले चुका है। इसकी आग में कनाडाई इंडियन डायस्पोरा झुलस रहा है।
पिछली एक सदी से कनाडा में भारतीय मूल के लोग बिना ज्यादा राजनीतिक समर्थन के फल-फूलते रहे हैं। लेकिन अब उन्हें अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ रहा है। एक्सप्रेस एंट्री, स्टूडेंट वीजा और पारिवारक पुनर्मिलन जैसी कई योजनाओं और प्रोत्साहनों को या तो स्थगित कर दिया गया है या फिर उन्हें अनाकर्षक बना दिया गया है।
दोनों सरकारों के आपसी विवाद के बीच भारतवंशियों का राजनीतिक दबदबा भी दांव पर है। प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के उत्तराधिकारी के रूप में लिबरल पार्टी की कमान संभालने के लिए भारतीय मूल के नेताओं में से सिर्फ चंद्र आर्य मैदान में हैं। लिबरल कॉकस में भारतीय मूल के 16 सदस्य हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से कोई भी आर्य का सपोर्ट नहीं कर रहा है।
अनीता आनंद और हरजीत सिंह सज्जन को महत्वपूर्ण रक्षा मंत्रालय का नेतृत्व करने वाले दक्षिण एशियाई मूल के पहले राजनेता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। लेकिन ये दोनों 2025 का संघीय चुनाव न लड़ने का इरादा जाहिर कर चुके हैं। सुख धालीवाल, परम बैंस, रणदीप सेराई, जॉर्ज चहल और गैरी आनंद सांगरी जैसे दक्षिण एशियाई मूल के अन्य लिबरल नेता पार्टी प्रमुख पद के लिए बैंक ऑफ कनाडा के पूर्व गवर्नर मार्क कार्नी का समर्थन कर रहे हैं।
हरजीत सिंह सज्जन ने भी मार्क कार्नी का समर्थन कर दिया है। हालांकि अनीता आनंद ने अपने पत्ते अभी नहीं खोले हैं। लिबरल पार्टी लीडरशिप की एक अन्य दावेदार, विदेश मंत्री मेलानी जोली ने भी रेस से हटते हुए मार्क कार्नी का सपोर्ट करने का फैसला कर लिया है जो कर्ज में फंसे कनाडाई अर्थव्यवस्था से संकट से बाहर निकालने का वादा कर रहे हैं।
लिबरल लीडरशिप की रेस में चंद्र आर्य के अलावा पूर्व उप प्रधानमंत्री व वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड और सदन की नेता करीना गोल्ड भी हैं। लेकिन कनाडा के हाउस ऑफ कॉमन्स में दक्षिण एशियाई मूल के सांसदों में से किसी ने भी कार्नी के अलावा अन्य किसी उम्मीदवार का खुलकर समर्थन नहीं किया है।
हाउस ऑफ कॉमन्स में इस वक्त दक्षिण एशियाई मूल के सबसे ज्यादा सांसद लिबरल पार्टी में हैं। लिबरल पार्टी में दक्षिण एशियाई मूल के 16, कंजरवेटिव पार्टी में चार और एनडीपी के पास सिर्फ एक, उसके नेता जगमीत सिंह हैं। तीसरी सबसे बड़ी पार्टी ब्लॉक क्यूबेकोइस में भारतवंशी समुदाय का कोई प्रतिनिधि नहीं है।
हाउस ऑफ कॉमन्स में दक्षिण एशियाई समुदाय से लिबरल पार्टी में अंजू ढिल्लों, बर्दिश चग्गर, रूबी सहोता, कमल खेड़ा, सोनिया सिद्धू, अनीता आनंद, चंद्र आर्य, परम बैंस, रणदीप सराय, सुख धालीवाल, जॉर्ज चहल, इकविंदर गहीर, आरिफ विरानी, गैरी आनंदसंगारी, मनिंदर सिद्धू हैं। कंजर्वेटिव पार्टी में टिम उप्पल, जसराज सिंह हल्लन, अर्पण खन्ना और शुवालॉय मजूमदार सांसद हैं।
संघीय चुनाव अक्टूबर में होने वाले हैं। लेकिन दक्षिण एशियाई मूल के कितने सांसदों को अगले हाउस ऑफ कॉमन्स में जगह मिल पाएगी, यह काफी हद तक लिबरल पार्टी के अगले नेता और नए प्रधानमंत्री की पसंद पर निर्भर करेगा।
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