बहुत कम ही लोगों को यह पता होगा कि भारत में कई ऐसी रचनाएं भी हैं जिन्हें उस समय की महिलाओं ने बनवाया था। पूरे इतिहास में कई महिलाओं ने भारत के स्थापत्य और रचनात्मकता पर एक अमिट छाप छोड़ी है, जो समय की कसौटी पर प्रतिष्ठित स्मारकों के रूप में सामने आई है। आज यह देश की स्थायी विरासत की गवाह हैं। पवित्र मंदिरों से लेकर कब्रगाहों तक, इन संरचनाओं में महिलाओं की दूरदर्शी छाप दिखती है।
विरुपाक्ष मंदिर, पट्टदकल : पल्लवों पर अपने पति विक्रमादित्य की जीत का जश्न मनाने के लिए रानी लोकमहादेवी ने इस मंदिर का निर्माण किया था। यह पवित्र मंदिर कला के संरक्षण के लिए एक वसीयतनामा के रूप में खड़ी है। महारानी ने कांची की पल्लव राजधानी से कुशल मूर्तिकारों को बुलाया और इस वास्तुशिल्प चमत्कार के रूप में इस मंदिर के निर्माण का निरीक्षण भी किया। सदियों बाद भी आज यह मंदिर लोगों को विस्मित करती है।
महारानी मंदिर, गुलमर्ग : सुरम्य कश्मीर घाटी में स्थित यह मंदिर 1915 में महारानी मोहिनी बाई सिसोदिया द्वारा बनाया गया था। डोगरा राजवंश के राजा हरि सिंह की पत्नी के रूप में उनकी स्थापत्य कला इस शांत जगह पर चमकती है। यह मंदिर भगवान शिव जी की पत्नी पार्वतीजी को समर्पित है। सर्दियों के मौसम में इस मंदिर के चारों और आपको बर्फ दिखाई देगी, जिससे कि यहां का मौसम बहुत ही सुहाना लगता है। गर्मियों में भी यह स्थान बहुत खूबसूरत और देखने लायक होती है।
रानी की वाव, पाटन : गुजरात के पाटन जिले में 11 वीं शताब्दी में रानी उदयमती ने अपने पति को श्रद्धांजलि के रूप में इस लुभावनी संरचना का निर्माण किया था । एक इनवर्टेड मंदिर के रूप में इसे डिजाइन किया गया है। इसमें सात स्तर हैं। इसका स्थापत्य उदयमति की गहन भक्ति और कलात्मक दृष्टि को प्रदर्शित करता है।
हुमायूँ का मकबरा, दिल्ली : मुगल राजा हुमायूं के मरने के बाद उनकी विधवा हमीदा बानो बेगम ने उनके सम्मान में इस मकबरे को बनाया था। फारसी वास्तुकार मीरक मिर्जा घियास द्वारा इसे डिजाइन किया गया। यह मकबरा हमीदा के पति के प्रति उनके गहन प्रेम और श्रद्धा को दिखाती है।
मोती मस्जिद, भोपाल: भोपाल की दूसरी खातून नवाब सिकंदर जहां बेगम ने 1860 में अपनी मां पहली खातून नवाब गौहर कुदसिया बेगम के हाथों बुनियाद रखवाकर मोती मस्जिद को बनवाने का आगाज किया था। इस मस्जिद को एक बुलंद कुर्सी पर लाल पत्थरों से बनाया गया है। इसमें तीन सीढ़ीनुमा दरवाजे हैं। ये मस्जिद वास्तुकला की एक अच्छी मिसाल मानी जाती है।
फतेहपुरी मस्जिद, दिल्ली : दिल्ली के चांदनी चौक स्थित इस मस्जिद का ऐतिहासिक और मजहबी महत्व है। यह 372 वर्ष पुरानी है। इसका निर्माण वर्ष 1650 में मुगल बादशाह शाहजहां की पत्नी फतेहपुरी बेगम ने करवाया था। उन्हीं के नाम पर इसका नाम फतेहपुरी मस्जिद पड़ा। लाल पत्थरों से बनी यह मस्जिद वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। मस्जिद के दोनों ओर लाल पत्थर से बने स्तंभों की कतारें हैं। इस मस्जिद में एक कुंड भी है जो सफेद संगमरमर से बना है।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर,कोलकाता : कोलकाता का सबसे प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर रानी रासमणि ने 1855 में बनवाया था। रानी रासमणि एक परोपकारी और मां काली की भक्त थीं। ये मंदिर संत और आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक रामकृष्ण परमहंस की कर्मभूमि रही है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर की गिनती देश में देवी के प्रमुख तीर्थ स्थलों में की जाती है।
मिरजान किला, कर्नाटक : इसका निर्माण सोलहवीं शताब्दी में रानी चेन्नाभैरदेवी ने करवाया था। उन्हें पेपर क्वीन ऑफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने 54 वर्षों तक शासन किया। वह भारत पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली महिला थीं। उन्होंने इस बेहद खूबसूरत और भव्य किले का निर्माण करवाया था।
इतिमद-उद-दौला, आगरा : मुगल रानी नूरजहां ने इस मकबरे के निर्माण के साथ अपने पिता, मिर्जा गियास बेग को अमर कर दिया। इस संरचना को पूरा करने में 7 साल लगे थे। इसकी नाजुक सुंदरता और डिजाइन नूरजहां का अपने पिता के लिए उनके प्यार और श्रद्धा को दिखाता है।
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