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भारत और अमेरिका : सहज रिश्तों में कुछ असहज पहलू

यह सही है कि दोनों देशों के संबंध अब इतने मजबूत और परिपक्व हो चुके हैं कि उनको कमजोर करने की कोई साजिश या सियासत आसानी से कामयाब नहीं हो पाएगी लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वाभिमान को लेकर तो कोई भी समझौता करने वाला नहीं है।

सांकेतिक तस्वीर / Image : NIA

विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्र यानी भारत और अमेरिका के बीच कई समानताएं हैं। वर्तमान में दोनों देशों के बीच संबंध भी सहज और सुदृढ़ हैं। मगर लगातार मजबूत होती मित्रता की मुनादियों और सहज रिश्तों के कुछ असहज पहलू भी हैं जो रह-रहकर सामने आते रहते हैं। जलवायु परिवर्तन से लेकर आतंकवाद के प्रतिकार तक दोनों देशों की प्रतिबद्धताएं समान हैं।

भारत और अमेरिका आतंतवाद का दंश झेल चुके हैं लिहाजा इस चुनौती को लेकर दोनों ही देशों की नीतियां कमोबेश एक जैसी हैं लेकिन भारत ने जिस शख्स को आतंकी घोषित किया है उसका अमेरिकी नागरिकता की आंड़ में 'एक तरह का संरक्षण' मिठास के बीच खटास जैसा है। यह मसला सहज संबंधों को असहज करने वाला है। अमेरिका की धरती पर पन्नू की हत्या की 'नाकाम साजिश का खुलासा' और उसमें भारत की संलिप्तता का दावा कालांतर में किसी एक को गलत साबित करने वाला है। इस मसले पर भारत में जो जांच चल रही है उसका निष्कर्ष भारत या अमेरिका में से किसी एक को गलत साबित कर देगा। और उस जांच के नतीजे और तरीकों या कहें कि प्रामाणिकता पर भी सवाल उठने तय हैं।

दोनों देश इस असहज कर देने वाले मामले को अपनी तरह से डील करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन इस या किसी अन्य मामले में तीसरे पक्ष अथवा देश की तरफदारी किसी को सहज तो किसी को असहज करने वाली है। मिसाल के तौर पर पन्नू मामले में रूस खुलकर भारत के साथ खड़ा। रूस ने इस मामले में अमेरिका को ही सवालों में घेर दिया है। रूस का कहना है कि अपने आरोप के पक्ष में अमेरिका ने अब तक कोई भरोसेमंद साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। यह तरफदारी भारत को खुश करने वाली है लेकिन अमेरिका को नाखुश।

इससे पहले रूस ने ही अमेरिका पर भारत के घरेलू मामलों में दखल देने का आरोप लगाया था। और कुछ समय पहले भारत के चुनाव में हस्तक्षेप का आरोप भी अमेरिका पर लग चुका है। चुनाव में हस्तक्षेप के रूसी आरोप पर तो अमेरिका को सफाई तक देनी पड़ी थी। घरेलू मामलों में दखल को लेकर तो रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोव ने यह तक कह दिया था कि वॉशिंगटन को भारत की राष्ट्रीय मानसिकता और इतिहास की समझ नहीं है। प्रवक्ता ने यह भी कहा था कि भारत ही नहीं दूसरे देशों की धार्मिक आजादी में भी अमेरिका अड़ंगा लगाता रहता है।

ईरान के चाबहार बंदरगाह को लेकर भी भारत-अमेरिका सहज नहीं हैं। चूंकि अमेरिका और ईरान के बीच तनाव है इसलिए वॉशिंगटन चाहता है दिल्ली की भी तेहरान से नजदीकियां न हों। चाबहार बंदरगाह के एक हिस्से के सह प्रबंधन को लेकर भारत से हुए समझौते के बाद अमेरिकी चेतावनी पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दो टूक कहा है कि इस मसले पर अमेरिका को अपना संकीर्ण नजरिया छोड़ना चाहिए। इसी तरह रूस-यूक्रेन युद्ध पर अमेरिका का पक्ष एकतरफा है जबकि भारत दोनों युद्धरत देशों के साथ संतुलन कायम करके चल रहा है। इजराइल-फिलिस्तीन टकराव में भी अमेरिका एक तरफ खड़ा है जबकि भारत अपने मित्र इजराइल से युद्धविराम की गुहार लगाने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन की स्थायी सदस्यता की आवाज उठा रहा है।

यह सही है कि दोनों देशों के संबंध अब इतने मजबूत और परिपक्व हो चुके हैं कि उनको कमजोर करने की कोई साजिश या सियासत आसानी से कामयाब नहीं हो पाएगी लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वाभिमान को लेकर तो कोई भी समझौता करने वाला नहीं है।

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