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डॉलर के मुकाबले गिर रहा रुपया, क्या कारगर होगा RBI का ये नया उपाय?

RBI के मुताबिक, अब बैंक एक से तीन साल की अवधि के लिए सरकारी तय रेफरेंस रेट से 400 बेसिस पॉइंट्स (4%) ज्यादा ब्याज दे सकेंगे। वहीं, तीन से पांच साल की अवधि के लिए बैंक रेफरेंस रेट से 500 बेसिस पॉइंट्स (यानी 5%) ज्यादा ब्याज दे सकेंगे।

हाल के दिनों में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरावट आई है। / Reuters

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने शुक्रवार को फॉरेन करेंसी नॉन-रेजिडेंट (FCNR-B) डिपॉजिट पर बैंकों द्वारा दी जाने वाली ब्याज दर को बढ़ा दिया है। ये कदम इसलिए उठाया गया है ताकि विदेशी मुद्रा का आना बढ़ सके। हाल के दिनों में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरावट आई है। यह ऑल टाइम लो पर पहुंच गई है।

FCNR-B एक तरह का टर्म डिपॉजिट अकाउंट होता है। जहां प्रवासी भारतीय विदेशी मुद्रा में इसे खोल सकते हैं। चूंकि ये अकाउंट विदेशी मुद्रा में होता है, इसलिए जो पैसा जमा करता है उसे एक्सचेंज रेट के रिस्क से कोई लेना-देना नहीं होता। यही बात इसे एनआरआई के लिए आकर्षक बनाती है।

रुपये पर दबाव के समय, सेंट्रल बैंक पहले भी इसी तरीके का इस्तेमाल कर चुका है। मिसाल के तौर पर, जुलाई 2013 में जब देश के कमजोर मैक्रोइकॉनॉमिक फंडामेंटल्स की वजह से रुपये पर बहुत दबाव था, तब भी ऐसा ही किया गया था। हाल ही में, जुलाई 2022 में भी RBI ने इसी तरह की छूट दी थी। 

RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपनी मॉनिटरी पॉलिसी स्टेटमेंट में बताया कि अब बैंक एक से तीन साल की अवधि के लिए सरकारी तय रेफरेंस रेट से 400 बेसिस पॉइंट्स (4%) ज्यादा ब्याज दे सकेंगे। वहीं, तीन से पांच साल की अवधि के लिए बैंक रेफरेंस रेट से 500 बेसिस पॉइंट्स (यानी 5%) ज्यादा ब्याज दे सकेंगे। ये नया बदलाव 200 बेसिस पॉइंट्स (यानी 2%) का इजाफा है। इससे उम्मीद है कि एनआरआई ज्यादा पैसे भारत में जमा करेंगे और रुपये को सहारा मिलेगा।

Emkay Global की प्रमुख अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा का कहना है कि रुपये की कमजोरी को रोकने के लिए, RBI ने पिछले दो महीनों में बहुत सारा पैसा खर्च किया है। ये खर्च डॉलर बेचकर किया गया है। लगभग 35 से 40 अरब डॉलर। इसके अलावा, RBI ने एक तरह की 'डॉलर की कमी' वाली स्थिति भी बनाई है, ताकि आगे रुपया और न गिरे। अब RBI ने ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला इसलिए लिया है ताकि विदेशों से और पैसे आएं और रुपये को सपोर्ट मिले।  

रुपये पर कई मोर्चों से दबाव है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ नीतियों, पोर्टफोलियो आउटफ्लो, एशियाई देशों की मुद्राओं में कमजोरी और धीमी आर्थिक वृद्धि से रुपये को नुकसान हो रहा है। मंगलवार को रुपया, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर 84.7575 पर पहुंच गया था। फिलहाल यह 84.6200 पर टिका हुआ है।

SBM बैंक इंडिया के ट्रेजरी हेड मंदार पिटाले नहीं मानते कि RBI के इस कदम से रुपये को मजबूती मिलेगी। उनका कहना है, 'मुझे नहीं लगता कि इस कदम से विदेशी मुद्रा जमा में कोई खास इजाफा होगा। इससे उन बैंकों को फायदा हो सकता है जिनके पास पहले से ही इस तरह के जमा की मांग है। लेकिन बाकी बैंक स्थानीय बाजार से सस्ते में धन जुटा सकते हैं, इसलिए उनके लिए ब्याज दरों को बढ़ाने का कोई फायदा नहीं है।'

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