भारत 46वीं अंटार्कटिक संधि सलाहकार बैठक (ATCM) और पर्यावरण संरक्षण समिति (CEP) की 26वीं बैठक की मेजबानी करेगा। पर्यावरण के लिए अहम इस मीटिंग का आयोजन 20 से 30 मई तक केरल के कोच्चि में होगा। इसकी मेजबानी पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES), भारत सरकार और नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) करेगा।
भारत 1983 से अंटार्कटिक संधि का एक सलाहकार सदस्य रहा है। यह मीटिंग अंटार्कटिका में पर्यावरणीय नेतृत्व, वैज्ञानिक सहयोग और रचनात्मक ग्लोबल डॉयलॉग के लिए भारत की क्षमता के अनुरूप है। ATCM और CEP की मीटिंग अंटार्कटिका के नाजुक इकोसिस्टम की रक्षा और क्षेत्र में वैज्ञानिक रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं। अंटार्कटिक संधि के तहत हर साल ऐसी मीटिंग बुलाई जाती है। ये बैठक अंटार्कटिका के पर्यावरण, वैज्ञानिक और शासन के मुद्दों को संबोधित करने के लिए संधि से जुड़े देशों और अन्य स्टेकहोल्डर्स के लिए एक अहम मंच के रूप में काम करती है।
1959 में इस संधि पर हस्ताक्षर किया गया था। इसके बाद इस संधि को 1961 में लागू किया गया। इस दौरान इसने अंटार्कटिका को शांतिपूर्ण उद्देश्यों, वैज्ञानिक सहयोग और पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित क्षेत्र के रूप में स्थापित किया है। इन वर्षों में संधि ने व्यापक समर्थन हासिल किया है। वर्तमान में 56 देश इसके पक्ष में हैं।
पर्यावरण संरक्षण समिति (CEP) की स्थापना 1991 में अंटार्कटिक संधि (मैड्रिड प्रोटोकॉल) के पर्यावरण संरक्षण पर प्रोटोकॉल के तहत की गई थी। CEP अंटार्कटिका में पर्यावरण संरक्षण और संरक्षण पर ATCM को सलाह देता है।
भारत 1983 से इस संधि का एक सलाहकार सदस्य रहा है। यह आज तक अंटार्कटिक संधि के अन्य 28 सलाहकार सदस्यों के साथ निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल रहा है। भारत का पहला अंटार्कटिक अनुसंधान स्टेशन, दक्षिण गंगोत्री 1983 में स्थापित किया गया था। वर्तमान में, भारत अनुसंधान स्टेशनों मैत्री (1989) और भारती (2012) का संचालन करता है । स्थायी अनुसंधान स्टेशन अंटार्कटिका में भारतीय वैज्ञानिक अभियानों की सुविधा प्रदान करते हैं। ये 1981 से चल रहे हैं।
संधि के सहयोगी के रूप में भारत अंटार्कटिका में पर्यावरण संरक्षण, वैज्ञानिक सहयोग और शांतिपूर्ण संचालन के लिए समर्पित है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ एम रविचंद्रन ने इस महीने केरल में आयोजित होने वाले ATCM और CEP बैठकों की मेजबानी करने के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, अंटार्कटिक क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण और वैज्ञानिक अनुसंधान के साझा लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए ज्ञान और विशेषज्ञता के सार्थक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए हम एक देश के रूप में तत्पर हैं।
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