भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद (आईएएमसी) ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से भारत को विशेष चिंता वाले देश (सीपीसी) के रूप में नामित करने और मानवाधिकारों तथा धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने वाले सरकारी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया है।
आईएएमसी के एडवोकेसी निदेशक अजीत साही ने कहा कि हम इस बात के आभारी हैं कि विदेश विभाग अमेरिकी नागरिकों के खिलाफ भारत सरकार के हमलों को गंभीरता से लेता है। कुछ दिन पहले विदेश विभाग ने अपनी वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में कहा था कि पिछले साल जातीय हिंसा फैलने के बाद मणिपुर में मानवाधिकारों का हनन हुआ।
मानवाधिकार रीतियों पर रिपोर्ट का भारत खंड 'महत्वपूर्ण' मानवाधिकारों के हनन को रेखांकित करता है। इसमें जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा, गैर-न्यायिक हत्याएं, दंडात्मक घरेलू विध्वंस, सरकार के आलोचकों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) का हथियारीकरण शामिल है। यही नहीं रिपोर्ट में अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध, जिनमें पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, पत्रकारों की अनुचित गिरफ्तारी और सेंसरशिप का भी जिक्र है।
साही ने कहा कि रिपोर्ट में उल्लिखित भारतीय अल्पसंख्यकों और प्रवासी भारतीयों के खिलाफ मानवाधिकारों के हनन के कई मामलों को देखते हुए हम विदेश विभाग से भारत को विशेष चिंता वाले देश के रूप में नामित करने और इसके सबसे कठोर और खतरनाक सरकारी अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का आग्रह करते हैं।
लोकतंत्र, मानवाधिकार और श्रम ब्यूरो के वरिष्ठ अधिकारी रॉबर्ट एस गिलक्रिस्ट ने विदेश मंत्री ब्लिंकन द्वारा मानवाधिकार प्रथाओं पर वार्षिक रिपोर्ट (देश) जारी होने के बाद मीडिया से कहा कि अमेरिका और भारत नियमित रूप से लोकतंत्र और मानवाधिकार के मुद्दों पर उच्चतम स्तर पर परामर्श करते हैं।
गिलक्रिस्ट ने कहा कि हम भारत को अपने मानवाधिकार दायित्वों और प्रतिबद्धताओं को बनाए रखने के लिए दृढ़ता से आग्रहपूर्वक प्रोत्साहित करते हैं। हम नियमित रूप से अमेरिका और भारत में नागरिक समाज के प्रतिनिधियों से उनका दृष्टिकोण जानने के लिए मिलते हैं। हम भारत सरकार से विभिन्न लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले नागरिक समाज संगठनों के साथ नियमित रूप से परामर्श करने का भी आग्रह करते हैं।
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