मिस्र के पिरामिडों का निर्माण कैसे हुआ था, ये रहस्य सदियों से इतिहासकारों और वैज्ञानिकों को आश्चर्यचकित करता रहा है। अब शिकागो यूनिवर्सिटी में भारतीय मूल के शोधकर्ता राजन हुड्डा ने एक क्रांतिकारी सिद्धांत पेश किया है जो इन प्राचीन वास्तुशिल्प चमत्कारों के निर्माण के रहस्यों पर से पर्दा उठा सकता है।
राजन हुड्डा ने अपने नए शोध पत्र 'थ्योरी ऑफ द कंजॉइंट सॉल्यूशन एंड द श्रिंकिंग डुअल एल नॉच रैंप्स' में पिरामिड के निर्माण की अनूठी पद्धति पर विस्तार से रोशनी डाली है। 20 पेज का यह शोध पत्र पांच दशकों से अधिक की गहन रिसर्च के बाद तैयार किया गया है। हुड्डा दावा करते हैं कि यह पिरामिड निर्माण के 'अकाट्य सबूत' पेश करता है।
राजन हुड्डा बताते हैं कि जब वह आठ साल के थे, उन्होंने पहली बार मानव इतिहास के इस महान रहस्य के बारे में सुना था। यह शोध इस काम के प्रति मेरे प्यार, लगन और जज्बे का नतीजा है जिसने मुझे 50 साल से अधिक समय तक पिछले 4,500 वर्षों से अनसुलझी इस पहेली की कड़ी जोड़ने के लिए प्रेरित किया।
'एल नॉच रैंप' थ्योरी
पिरामिड के निर्माण की मौजूदा थ्योरी इनके बाहरी रैंप या जटिल आंतरिक सुरंगों पर आधारित हैं, लेकिन हुड्डा इन सबसे अलग एक नया नजरिया पेश करते करते हैं, वह है 'एल नॉच रैंप'। वह कहते हैं कि पिरामिड्स को परतों में बनाया गया था, ठीक उसी तरह, जैसे केक में परतें लगाई जाती हैं। इसी तरह पत्थर की 210 परतें तैयार की गई थीं।
हुड्डा का कहना है कि सबसे पहले पत्थर की सबसे निचली परत बनाई गई थी। लेकिन उसका एक कोना अधूरा छोड़ दिया गया था। ऐसा उस परत के ऊपर करीब 4.5 फीट ऊंचा रैंप बनाने के लिए किया गया था। इसी रैंप के जरिए दूसरी परत के लिए पत्थरों को ढोया गया था। ठीक इसी तरह एक के बाद एक 209 परतें बनाई गईं। इस प्रक्रिया को तिकोने पिरामिड के शीर्ष पर पहुंचने तक दोहराया गया।
हुड्डा का कहना है कि जब पिरामिड ऊपर तक बन गया, तब इन रैंप को ऊपर से नीचे आते हुए हटा दिया गया। उन्होंने दावा किया कि रैंप एक नहीं दो बनाए गए थे। एक रैंप के जरिए पत्थरों को ऊपर ले जाया जाता था, जबकि दूसरे रैंप से मजदूर ऊपर चढ़ते थे। उनका कहना है कि चूंकि पिरामिड बनने के बाद रैंप को हटा दिया गया था, इसलिए इनका कोई सबूत नहीं मिलता।
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