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अमेरिका में हाइपरलूप का सपना टूट गया, लेकिन भारतीय प्रयासों में जिंदा है

विमान की गति के साथ जमीन पर परिवहन के रूप में हाइपरलूप वन के मूल विचार ने 2014 के बाद से नियमित रूप से दुनिया की सुर्खियां बटोरी हैं। लेकिन कोविड के वर्षों ने हाइपरलूप पर भी अपना असर डाला और मार्च 2022 में एक घोषणा में कहा गया कि परियोजना को लोगों के बजाय माल परिवहन के लिए फिर से तैयार किया जा रहा है। इसने दुनिया भर में उत्साह को कम कर दिया।

भारत के लोगों में हाइपरलूप के लिए गहरा आकर्षण है। / IndiaTechOnline

आनंद पार्थसारथी

एक दशक पहले इलेक्ट्रिक कार उद्यमी और 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) के मालिक एलोन मस्क ने पहली बार सेमी-वैक्यूम ट्यूबों में 600 किमी प्रति घंटे से अधिक की गति से लोगों को जमीन पर ले जाने के लिए एक साहसी तरीका पेश किया था। लेकिन हाइपरलूप वन का यह सपना चूर हो चुका है। सैन जोस (सीए) मर्करी न्यूज ने पिछले महीने ब्लूमबर्ग का हवाला देते हुए रिपोर्ट किया है कि इसके लगभग सभी 200 से अधिक कर्मचारियों को बैठा दिया गया है। इसके लास वेगास टेस्ट ट्रैक को बेच दिया गया है और इसकी तकनीक और बौद्धिक संपदा संभवतः प्रमुख शेयरधारक और दुबई स्थित समूह, डीपी वर्ल्ड को हस्तांतरित कर दी गई है।

भारत ने एक समय में बेंगलुरु हवाई अड्डे, सिटी सेंटर और मैसूरु, महाराष्ट्र में मुंबई और पुणे, और आंध्र में अमरावती और विजयवाड़ा के बीच जैसे स्थानों के बीच हाइपरलूप लिंक स्थापित करने के लिए अमेरिकी डेवलपर के साथ कम से कम तीन समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए।

विमान की गति के साथ जमीन पर परिवहन के रूप में हाइपरलूप वन के मूल विचार ने 2014 के बाद से नियमित रूप से दुनिया की सुर्खियां बटोरी हैं। वर्जिन एयरलाइंस के रिचर्ड ब्रैनसन सहित अन्य लोगों ने 450 मिलियन डॉलर का इसमें निवेश किया। कुछ वर्षों तक इसे वर्जिन हाइपरलूप के नाम से ही जाना जाता था, जब तक कि ब्रैनसन ने अपनी हिस्सेदारी नहीं खींच ली और इस दुनिया में डीपी वर्ल्ड ने कदम रखा।

हाइपरलूप के लिए एक समय में भारत के कुछ पेशेवर काम करते थे। इनमें पुणे के पावर इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर तनय मांजरेकर शामिल हैं, जिन्हें हाइपरलूप पॉड में टेस्ट ट्रैक की सवारी करने वाले पहले दो दिग्गजों में से एक होने का गौरव प्राप्त था, हालांकि इसकी गति 175 किमी प्रति घंटे की रही।

लेकिन कोविड के वर्षों ने हाइपरलूप पर भी अपना असर डाला और मार्च 2022 में एक घोषणा में कहा गया कि परियोजना को लोगों के बजाय माल परिवहन के लिए फिर से तैयार किया जा रहा है। इसने दुनिया भर में उत्साह को कम कर दिया। पुणे से मुंबई की यात्रा 3 घंटे के बजाय 25 मिनट में या सैन फ्रांसिस्को से कैलिफोर्निया में लॉस एंजिल्स के बीच 6 घंटे की ड्राइव को घटाकर 45 मिनट की ईच्छा रखने वाले लोगों का इसके लिए गहरा आकर्षण था। एक तरह से मामला नैपथ्य में चला गया।

लेकिन खास तौर पर पुणे और चेन्नई के आसपास केंद्रित स्टार्टअप, जो अपने पेस के माध्यम से स्केल-डाउन हाइपरलूप पॉड्स लगाने के विभिन्न चरणों में हैं, हार नहीं मान रहे हैं। चेन्नई में आईआईटी मद्रास में सलाह देने वाली दो टीमें नियमित रूप से अपने काम को पूरा कर रही हैं। 2017 के बाद से, 50 सदस्यीय टीम को भारत सरकार, एलएंडटी और ट्यूब इन्वेस्टमेंट्स ऑफ इंडिया से फंड मिला है। रेलवे ने भी रुचि दिखाई है। परिणाम यह है कि चन्नई और बेंगलुरु के बीच 350 किलोमीटर के ट्रैक पर काम को गति मिल रही है जो यात्रा के समय को 30 मिनट तक कम कर सकती है।

कंपनी ने चेन्नई में 400 मीटर का परीक्षण ट्रैक बनाने के लिए टाटा स्टील और आर्सेलर मित्तल के साथ भागीदारी की है। पिछले साल इसने कुछ संयुक्त विकास के लिए नीदरलैंड स्थित हाइपरलूप प्लेयर हार्ड्ट हाइपरलूप के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

कार्गो भी पुणे स्टार्टअप Quintrans, हाइपरलूप को प्राथमिकता दे रहा है। इस पर 2021 से काम कर रहा है। निवेश में 100,000 अमरीकी डालर से अधिक जुटाने के बाद, क्विंट्रांस के पास काफी फंड है। पूरी दुनिया में इसे लेकर हलचल है। स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में यूरोपीय हाइपरलूप वीक 2023 में, सभी भारतीय परियोजनाओं का प्रतिनिधित्व किया गया और टीम आविष्कार जैसी कुछ परियोजनाओं को टॉप 3 में आंका गया। EHW 2024 इस साल जुलाई में होगा और इसमें फिर से भारतीय भागीदारी देखने की उम्मीद है।

अब जब अमेरिका में मूल हाइपरलूप को छोड़ दिया गया है, तो क्या यह भारतीय प्रयासों को मिटा देगा या वे हाइपरलूप वन की राख से फीनिक्स की तरह उठेंगे? यह कहना अभी जल्दबाजी होगा। लेकिन सरकार के सहयोग के बिना, यह कठिन कार्य प्रतीत होता है। एक समय तो सरकार द्वारा संचालित रेलवे ने रुचि दिखाई थी। लेकिन भारत सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके सारस्वत के हवाले से दो महीने पहले खबर सामने आई थी कि अल्ट्रा-हाई-स्पीड ट्रेन विकल्प के रूप में इस नई तकनीक में निकट अवधि के हित को खारिज कर दिया था।

कोई अन्य बड़ा कॉरपोरेट या सरकारी रुचि दिखाई नहीं दे रहा है। हालांकि महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसी राज्य सरकारें अभी भी अपनी मूल योजनाओं को खुला रख सकती हैं। लेकिन वास्तविक रूप से, भारतीय प्रयास अभी भी व्यावहारिक धरातल के करीब नहीं हैं। हाइपरलूप परिवहन प्रणाली आज एक सपने की तरह दिखता है। लेकिन 10 साल बाद क्या होगा ? कौन जानता है।

 

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