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बुलंद भारत के वास्तुकार मनमोहन सिंह को भारतीय दूतावास वॉशिंगटन में देगा अनोखी श्रद्धांजलि

भारतीय दूतावास कार्यालय में 30-31 दिसंबर को एक शोक पुस्तिका भी रखी जाएगी, जिसमें लोग अपनी श्रद्धांजलि दर्ज कर सकेंगे।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर को निधन हो गया है। / X @_ManmohanSingh

भारत में आर्थिक सुधारों के जनक और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की स्मृति में वॉशिंगटन डीसी स्थित भारतीय दूतावास की तरफ से श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाएगा। इस बीच कई लोगों ने मनमोहन सिंह के निधन पर शोक संदेश दिया है।

एंबेसी के 2107 मैसाचुसेट्स एवेन्यू वॉशिंगटन डीसी कार्यालय में 30-31 दिसंबर को सुबह 10:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक एक शोक पुस्तिका भी रखी जाएगी, जिसमें लोग अपनी श्रद्धांजलि दर्ज कर सकेंगे।

इस बीच 92 वर्षीय मनमोहन सिंह के 26 दिसंबर को निधन के बाद श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों का तांता लगा हुआ है। पॉल हेस्टिंग्स में पार्टनर और भारतीय-अमेरिकी प्रैक्टिशनर रौनक डी. देसाई ने कहा कि डॉ. सिंह का निधन भारतीय इतिहास के एक असाधारण अध्याय का अंत है।

देसाई ने कहा कि 1991 में भारत आर्थिक पतन के कगार पर था, जिसे मनमोहन सिंह ने अपनी बुद्धिमत्ता और धैर्य के बलबूले पर न सिर्फ बाहर निकाला बल्कि सुधारों की नई शुरुआत करके भारत की अंतर्मुखी अर्थव्यवस्था को वैश्विक ताकत में बदल दिया। उनका योगदान सिर्फ आर्थिक नहीं था। उन्होंने भारत को देखने का नजरिया ही बदल दिया।

उन्होंने कहा कि ऐसा कम ही होता है कि किसी एक व्यक्ति ने राष्ट्र की दशा-दिशा को बदल दिया हो। 1991 के आर्थिक सुधारों से लेकर 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु करार पर देसाई ने कहा कि मनमोहन सिंह ने ऐसे समय साहस के साथ निर्णायक फैसले किए, जब भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ था। उनके निधन ने भारतीय राजनीति में एक खालीपन पैदा कर दिया है।

ग्रेटर बोस्टन में यूएसए-इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स (यूएसएआईसी) के अध्यक्ष करुण ऋषि ने अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि मनमोहन सिंह बायोफार्मा में वैश्विक भागीदारी और नवाचार के प्रबल समर्थक थे। 18 साल पहले बोस्टन में यूएसएआईसी की पहली बायोफार्मा समिट में उनका प्रोत्साहन संदेश हमें आज तक प्रेरित करता है।

ऋषि ने कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह एक महान इंसान, दूरदर्शी नेता और एक उत्कृष्ट राजनेता थे। उन्होंने अमेरिका-भारत संबंधों को अगले स्तर तक ले जाने की मजबूत नींव रखी थी। वह दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी के सबसे महान चैंपियनों में से एक थे। उनका निधन से बनी शून्यता को अरसे तक महसूस किया जाता रहेगा, लेकिन उनकी विरासत कायम रहेगी।
 

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