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भारतवंशी वैज्ञानिक ने एआई से खोजा बैटरी बनाने का नया पदार्थ

भारतीय मूल के वैज्ञानिक विजय मुरुगेसन और उनकी टीम का मानना ​​है कि इस नए पदार्थ से बैटरियों में लिथियम के उपयोग को 70 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।

रिचार्जेबल लिथियम आयन बैटरी का मुख्य आधार होता है। / साभार सोशल मीडिया

भारतीय मूल के वैज्ञानिक विजय मुरुगेसन की अगुआई वाली एक टीम ने बैटरी में इस्तेमाल होने वाले एक नए पदार्थ की खोज की है। गौर करने वाली बात ये है कि उन्होंने ये खोज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और सुपरकंप्यूटिंग की ताकत का इस्तेमाल करते हुए की है। उनकी इस खोज से बैटरी में लिथियम पर निर्भरता को काफी कम किया जा सकता है।

मुरुगेसन की टीम ने 3.2 करोड़ से ज्यादा संभावित अकार्बनिक सामग्रियों को जांचने के लिए माइक्रोसॉफ्ट के एज़्योर क्वांटम एलिमेंट्स का लाभ उठाया। एआई-संचालित इस प्रक्रिया ने केवल 80 घंटों में ही बैटरी बनाने में उपयोग होने वाले 18 प्रभावी पदार्थों को छांटकर अलग कर दिया। 

यह खोज माइक्रोसॉफ्ट और अमेरिका स्थित पैसिफ़िक नॉर्थ-वेस्ट नेशनल लेबोरेटरी (पीएनएनएल) के बीच एक सहयोग के तहत की गई है। माइक्रोसॉफ्ट क्वांटम टीम ने लगभग 5 लाख स्थिर पदार्थों की तेजी से पहचान करने के लिए एआई का उपयोग किया। मुरुगेसन और उनकी टीम का मानना ​​है कि इस नए पदार्थ से लिथियम के उपयोग को 70 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।

इससे पहले इसे लाइटबल्ब को बिजली देने के लिए सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा चुका है। एआई से खोजी गया पदार्थ ठोस अवस्था में इलेक्ट्रोलाइट का काम करता है जो न्यूनतम प्रतिरोध के साथ कैथोड और एनोड के बीच आयनों की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करता है।

शुरू में वैज्ञानिकों का मानना ​​था कि सोडियम आयन और लिथियम आयन अपने समान चार्ज लेकिन अलग-अलग आकार के कारण ठोस-अवस्था वाले इलेक्ट्रोलाइट सिस्टम में एक साथ नहीं रह सकते। ऐसे में इस तरह के पदार्थों का संरचनात्मक ढांचा दो अलग-अलग आयनों की गति को सपोर्ट नहीं कर सकता। हालांकि कठोर परीक्षणों के बाद देखा गया सोडियम और लिथियम आयन एक दूसरे की मदद भी करते हैं।

आजकल के दौर में रिचार्जेबल लिथियम आयन बैटरी का मुख्य आधार बन चुका है जो फोन से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों और उपग्रहों तक के उपकरणों को ऊर्जा प्रदान करता है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग का आकलन है कि 2030 तक लिथियम की मांग में पांच से दस गुना तक वृद्धि हो सकती है। ऐसे में इसकी कमी और उच्च लागत को लेकर भी चिंताएं बढ़ रही हैं।

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