वर्जीनिया के पूर्वी जिले की अदालत ने 25 जून को एक भारतीय मूल के सिख जोड़े को अपने चचेरे भाई को अपने गैस स्टेशन और किराने की दुकान पर तीन साल तक जबरन काम कराने के आरोप में दोषी ठहराया है। इस जोड़े ने तब से तलाक ले लिया है। हरमनप्रीत सिंह (31) को 135 महीने की जेल की सजा सुनाई गई है। कुलबीर कौर (43) को 87 महीने के लिए सलाखों के पीछे भेजा गया है। साथ ही अदालत ने दोनों को 225,210.76 डॉलर का मुआवजा पीड़ित को देने का आदेश दिया है।
न्याय विभाग के नागरिक अधिकार प्रभाग की सहायक अटॉर्नी जनरल क्रिस्टन क्लार्क ने कहा कि दोषियों ने पीड़ित के साथ अपने रिश्ते का फायदा उठाया। उसे स्कूल में दाखिला दिलाने के झूठे वादे के साथ अमेरिका ले आए। क्लार्क ने आगे कहा कि इस जोड़े ने पीड़ित के इमिग्रेशन दस्तावेज जब्त कर लिए थे। उसे कम वेतन पर लंबे घंटे काम करने के लिए मजबूर करने के लिए धमकियों, बल प्रयोग और मानसिक शोषण किया था। क्लार्क के अनुसार, यह सजा यह साफ संदेश देती है कि जबरन श्रम अस्वीकार्य है। उन्होंने जोर देकर कहा कि न्याय विभाग पीड़ितों की रक्षा करने और कमजोर व्यक्तियों का शोषण करने वाले तस्करों को जवाबदेह ठहराने के लिए मानव तस्करी कानूनों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।
वर्जीनिया के पूर्वी जिले के लिए अमेरिकी अटॉर्नी जेसिका डी एबर ने कहा कि इन दोषियों द्वारा किए गए अपराध केवल कानून का उल्लंघन नहीं हैं, ये मानवता का अपमान है। इन दोषियों ने पीड़ित की शिक्षा प्राप्त करने और अपना जीवन बेहतर बनाने की ईमानदार इच्छा का फायदा उठाया। दाेषियों ने पीड़ित को सबसे बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं से वंचित किया और उसकी स्वतंत्रता छीन ली। हम मानव तस्करी के पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध हैं। एफबीआई के आपराधिक जांच प्रभाग के सहायक निदेशक माइकल नॉर्डवॉल ने आश्वस्त किया कि एफबीआई सभी समुदायों में जबरन श्रम तस्करी और उसके साथ आने वाली मनोवैज्ञानिक और शारीरिक हिंसा को रोकने के लिए काम करना जारी रखेगा।
2018 से शुरू हुई यह घटना शोषण और जबरदस्ती परेशान करने वाले विवरणों को उजागर करता है। ट्रायल में साक्ष्य सामने आए जिससे पता चला कि सिंह और कौर ने सिंह के नाबालिग चचेरे भाई को अमेरिका में पढ़ाने का झांसा देकर भारत से बुलाया था। पीड़ित के आने के बाद दोषियों ने उसके इमिग्रेशन दस्तावेज जब्त कर लिए और। उसे मार्च 2018 से मई 2021 तक सिंह की दुकान पर बिना भुगतान के काम करने के लिए मजबूर किया।
अदालत में पेश की गई गवाहियों के अनुसार, पीड़ित को कठिन काम करने की परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। उसे रोजाना 12 से 17 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया गया। इनमें सफाई, खाना बनाना, स्टॉक का रखरखाव और कैश रजिस्टर संभालना शामिल था। यह सब धमकी और जबरदस्ती के तहत किया गया था। इस जोड़े ने शारीरिक शोषण, हिंसा की धमकी सहित तमाम हिंसक रणनीतियां अपनाईं, जिसमें पीड़ित को पर्याप्त भोजन और चिकित्सा देखभाल से वंचित करना शामिल था।
इसके अलावा, सबूतों से पता चलता है कि पीड़ित को कई दिनों तक एक पीछे के कार्यालय में बंद रखा गया था। उसकी निगरानी की जाती थी। इस तरह से शिक्षा तक पहुंच या अपनी मातृभूमि लौटने जैसे बुनियादी अधिकारों से वंचित किया गया था। इसके अलावा दोषियों ने पीड़ित को कौर से शादी करने के लिए मजबूर किया। यह उसे पूरी तरह से कंट्रोंल में रखने का एक तरीका था। इस तरह से अगर वह भागने की कोशिश करता है तो उसके परिवार के खिलाफ झूठे कानूनी आरोप लगाने या संपत्ति जब्त करने की धमकी दी जाती थी।
ट्रायल के दौरान सामने आए विवरणों से पता चला कि सिंह ने पीड़ित पर कई बार शारीरिक हिंसा की। इसमें बाल खींचना, थप्पड़ मारना, लात मारना और उसे छुट्टी लेने या मदद लेने से रोकने के लिए कई बार बंदूक दिखाना शामिल था। इस फैसले से मानव तस्करी और जबरन श्रम की गंभीरता को रेखांकित किया गया है, जो कमजोर समुदायों के भीतर शोषण के खिलाफ मजबूत कानूनी प्रवर्तन और सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर देता है।
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