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STEM में टॉप, फिर भी अमेरिका से निकाले जा रहे भारतीय छात्र, आखिर क्यों?

2023 के अंत से अब तक कम से कम 160 भारतीय छात्रों के वीजा रद्द किए गए या उन्हें अचानक डिपोर्टेशन की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ा। कुल मिलाकर 16 देशों के 327 अंतराष्ट्रीय छात्र इस नीति की चपेट में आए हैं, जिनमें भारतीय सबसे बड़ी संख्या में हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर / Pexels

पिछले कुछ महीनों में, अमेरिका भर के कॉलेज-कैंपसों और समुदायों में एक चिंताजनक ट्रेंड देखने को मिला है। भारतीय समेत अंतरराष्ट्रीय छात्रों के वीजा अचानक रद्द किए जा रहे हैं। उन्हें ICE की हिरासत में लिया जा रहा है या वापस भेज दिया जा रहा है। अक्सर वजह बस कुछ एडमिनिस्ट्रेटिव, मामूली या अस्पष्ट होती है। हालांकि यह खबर बड़े अखबारों में जगह नहीं बना रही हैं, लेकिन इसका असर कॉलेज कैंपसों से लेकर छोटे-मोटे शहरों तक गहराई से महसूस किया जा रहा है।

American Immigration Lawyers Association और भारतीय वाणिज्य दूतावास के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2023 के अंत से अब तक कम से कम 160 भारतीय छात्रों के वीजा रद्द किए गए या उन्हें अचानक डिपोर्टेशन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। कुल मिलाकर 16 देशों के 327 अंतरराष्ट्रीय छात्र इस नीति की चपेट में आए हैं। इनमें भारतीय सबसे बड़ी संख्या में हैं।

इनमें से अधिकतर स्टूडेंट्स STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथमेटिक्स) फील्ड में एडवांस्ड डिग्री कर रहे थे। ये लैब्स, रिसर्च ग्रुप्स और टीचिंग में योगदान दे रहे थे। ज्यादातर ने फुल ट्यूशन फीस भी भरी, नियमों का पूरा-पूरा पालन किया और अमेरिका में करियर बनाने या घर वापसी के बाद अपनी स्किल्स का इस्तेमाल करने के सपने संजोए थे। लेकिन ये अमेरिकी डिग्री के जो सपने थे, वो बहुत से छात्रों के लिए बिखरते जा रहे हैं।

मुसीबत में फंसे छात्र 

21 साल के कृष्ण लाल इसरदासानी यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन–मैडिसन में पढ़ते थे। एक मामूली कैंपस झगड़े के आरोप में गिरफ्तार तो हुए, लेकिन किसी भी अदालत ने उन पर कोई चार्ज नहीं लगाए। फिर भी ICE ने उनका वीजा रद्द कर दिया और डिपोर्टेशन की तैयारी शुरू कर दी। हालांकि एक संघीय जज ने अस्‍थायी तौर पर रोक लगा दी और इसे ‘कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन’ बताया। लेकिन खासकर भारतीय छात्रों के मन में भय बैठ गया कि एक छोटा-सा मामला भी उनकी पूरी जिंदगी उलट कर रख सकता है।

इसी तरह, मिशिगन के भारतीय ग्रेजुएट स्टूडेंट चिन्मय देओरे ने डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी के खिलाफ फेडरल कोर्ट में केस किया। उनका कहना है कि बिना किसी नोटिस के उनका F-1 वीजा कैंसिल कर दिया गया। ऐसे कई छात्र हैं, जिन्हें अचानक और बिना वजह बताया गया कि वे अब 'आउट ऑफ स्टेटस' हो गए हैं।

इनमें से कई छात्रों का कोई पुराना वॉयलेशन नहीं था। कुछ को तो सिर्फ ऐसे ऑटोमैटिक सिस्टम्स द्वारा निशाना बनाया गया, जो 'रिस्क फैक्टर्स' खोजने के लिए एल्गोरिदम पर चलते हैं। यह सिस्टम काफी अपारदर्शी और चिंता का विषय है।

चिंता की बात क्यों है

कई सालों से भारतीय छात्र अमेरिकी एजुकेशन सिस्टम की रीढ़ रहे हैं, खासकर STEM फील्ड्स में। 2023 में 2.68 लाख से ज्यादा भारतीय छात्र अमेरिकी यूनिवर्सिटीज में पढ़ रहे थे, जो किसी भी देश से सबसे ज्यादा हैं। ये छात्र ट्यूशन, हाउसिंग और खर्च के जरिए अमेरिकी इकोनॉमी में करीब 10 बिलियन डॉलर का योगदान देते हैं।

लेकिन इनका योगदान सिर्फ पैसों तक सीमित नहीं है। ये टैलेंट, मेहनत और इनोवेशन लेकर आते हैं। ये लैब्स में काम करते हैं, स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशंस चलाते हैं और दो देशों के बीच पुल बनते हैं। कई तो यहीं रुककर अमेरिका की बड़ी कंपनियों में अहम रोल निभाते हैं—जैसे सत्‍या नडेला (Microsoft), सुंदर पिचाई (Google) या डॉ. केशव पारखी (University of Minnesota)।

ये सब गवाह हैं कि भारतीय छात्र सिर्फ पढ़ने नहीं आते। वे अमेरिका की ग्रोथ में अहम साझेदार बन जाते हैं। इसलिए जब हम उन्हें निशाने पर लेते हैं—चाहे अनजाने में—तो हम न सिर्फ उनके सपनों को तोड़ते हैं, बल्कि अमेरिका के MAGA प्लान और लंबी अवधि की इंटेलेक्चुअल व इकोनॉमिक ग्रोथ को भी कमजोर करते हैं।

कार्रवाई, सतर्कता और समर्थन का समय
एक भारतीय अमेरिकी के तौर पर एजुकेशन के क्षेत्र में पूरी तरह जुड़ा हुआ हूं। मैं छात्रों, परिवारों और समुदाय से अपील करता हूं:

छात्रों के लिए:
• हमेशा अपडेटेड रहें: अपने I‑20, SEVIS स्टेटस, OPT/CPT डॉक्यूमेंट्स, वीजा रिन्यूअल—सब कुछ समय से चेक करें। इंटरनेशनल ऑफिस से आने वाले किसी भी ई‑मेल को इग्नोर न करें।
• कानूनी झंझट टालें: ट्रैफिक चालान, सिविल मामले या मकान मालिक से झमेला—ये भी आपके स्टेटस पर असर डाल सकते हैं।
• सबूत जमा रखें: यूनिवर्सिटी लेटर, मार्कशीट, पता प्रमाण, कोर्ट की किसी भी कॉरेस्पोंडेंस की कॉपी सेव करें।
• अकेले नहीं लड़ें: अपने DSO (Designated School Official) से कनेक्ट रहें। जरूरत पड़े तो इम्मिग्रेशन अटॉर्नी से सलाह लेने में झिझकें नहीं।
• गलत सूचनाओं से बचें: YouTube, WhatsApp ग्रुप या अनौपचारिक फोरम को कानूनी या संस्थागत सलाह का विकल्प न समझें।

भारतीय-अमेरिकी समुदाय और नेताओं के लिए:
• इस मुद्दे को कल्चरल ऑर्गनाइजेशंस, प्रोफेशनल नेटवर्क्स और लोकल पॉलिटिशियन तक पहुंचाएं।
• यूनिवर्सिटीज से कहें कि वे इंटरनेशनल छात्रों के लिए बेहतर लीगल रिसोर्सेज मुहैया कराएं।
• ऐसी इम्मिग्रेशन पॉलिसी की मांग उठाएं जो छात्रों को सिर्फ वीजा स्टेटस के बजाय मानवीय दृष्टि से देखे।
• जरूरत पड़ने पर छात्रों को होस्ट करें, उन्हें गाइड करें और इस अनिश्चित दौर में सपोर्ट करें।

भविष्य हम खुद बनाएंगे

अगर हम चुप रहे, तो और भी प्रतिभाशाली युवा डर के मारे वापस चले जाएंगे, उनके सपने अधूरे रह जाएंगे। लेकिन अगर हम जोर से और समझदारी से अपनी बात रखेंगे, तो इस नाररेटिव को बदल सकते हैं। हम यह फिर से तय कर सकते हैं कि भारतीय छात्र न तो अवैध हैं, न समस्या—वो हमारे साझेदार हैं, जो अमेरिका को और महान बनाएंगे।

आइए, हम मिलकर ये यकीन दिलाएं कि भारतीय छात्र अकेले नहीं हैं।

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक विजेंद्र अग्रवाल के अपने हैं, और New India Abroad की आधिकारिक पॉलिसी को अनिवार्य रूप से नहीं दर्शाते)

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