हाल ही में दो वैश्विक संगठनों की जो रिपोर्ट्स आई हैं वे बताती हैं कि भारतवंशी और भारत समृद्धि की राह पर सरपट दौड़ रहे हैं। एक रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की प्रवासन एजेंसी इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (IOM) की है जो बताती है कि वर्ष 2022 में दुनियाभर से भारत में 111 अरब डॉलर की राशि प्राप्त हुई। यह सर्वाधिक है। इसी के साथ भारत 100 अरब डॉलर के आंकड़े को पार करने वाला पहला देश भी बन गया है। विश्व प्रवासन रिपोर्ट, 2024 के मुताबिक यह धन प्रवासियों ने भारत में मित्रों और परिजनों को भेजा है।
दूसरी रिपोर्ट या रैंकिंग हेनले एंड पार्टनर्स की है। यह रैंकिंग भी भारत की आर्थिक प्रगति और शहरी विकास को रेखांकित करती है और बताती है कि वॉशिंगटन डीसी को पीछे छोड़कर दिल्ली और मुंबई दुनिया के शीर्ष 50 धनी शहरों में शामिल हो गए हैं। रैंकिंग के अनुसार नयूयॉर्क सबसे धनी शहर है। शहरी समृद्धि की पैमाइश करने वाली इस रैंकिंग में भारत की राजधानी दिल्ली ने अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी के साथ ही रूस की राजधानी मॉस्को और जर्मनी की राजधानी बर्लिन को भी पीछे छोड़ दिया है।
IOM की रिपोर्ट और हेनले एंड पार्टनर्स की रैंकिंग के अलावा एक और व्यावहारिक पहलू है जो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से भारत की समृद्धि को ही बयां करता है। वह पहलू है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत और भारतवंशियों का दबदबा। यह दबदबा सियासत से लेकर कारोबार और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी देखा और महसूस किया जा सकता है। यह सही है कि भारतवंशी दुनिया के प्रवासियों की सबसे बड़ी आबादी हैं लेकिन इधर करीब एक से डेढ़ दशक के दौरान धन-संपदा और अन्य क्षेत्रों में भारत की उन्नति जानी और मानी गई है।
जहां तक वैश्विक अर्थव्यवस्था का परिदृश्य है तो उसमें भी भारत ने बड़ी छलांग लगाते हुए पांचवां स्थान हासिल कर लिया है। यह स्थान हासिल करने के बाद भारत ने कुछ ही सालों में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की हुंकार भी भरी है। इसका आधार यह है कि इस समय भारत दुनिया की सबसे तेजी से आगे बढ़ती अक्थव्यवस्थाओं में अग्रणी बना हुआ है। विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्र कोष जैसे संगठनों का रुख भारत की गति और प्रगति को लेकर सकारात्मक है। ग्लोबल क्रेडिट आउटलुक, 2024 में भी भारत के 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की बात कही गई है। ठीक 10 साल पहले भारत की अर्थव्यवस्था 10वें स्थान पर थी और आज पांचवें पर। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगले छह-सात वर्षों में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर 'बड़ा काम' करने का आशावाद व्यक्त कर चुके हैं।
लेकिन समृद्धि की इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है जो बेहद चिंताजनक है। दूसरा पहलू भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता है जिसे समृद्धि की चकाचौंध में शायद नजरअंदाज किया जा रहा है। वर्ल्ड इनीक्वैलिटी डेटाबेस में बताया गया है कि 1922 में भारत के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की कुल आय में हिस्सेदारी 13% थी, जो 1940 में बढ़कर 20% हो गई। 2022-23 आते-आते शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों के पास भारत की कुल आय का 22.6 प्रतिशत हिस्सा और कुल संपत्ति का 40.01 प्रतिशत हिस्सा था। यानी मोटे तौर पर जिन 10 सालों मे भारत की अर्थव्यवस्था 10वें से 5वें स्थान पर आई उसी दरम्यान आर्थिक असमानता भी तेजी से बढ़ी। ऐसे में सम्पन्नता की रोशनी को विपन्नता तक पहुंचाना वास्तविक चुनौती है। हर समय चुनावी मोड में रहने वाला भारत का सत्ता प्रतिष्ठान इस चुनौती पर कब, कितना और कैसे ध्यान देगा इसका उत्तर पाना और भी चुनौतीपूर्ण है।
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