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SBI ने जारी की रिपोर्ट, भारत में 5 फीसदी से ऊपर बनी रहेगी खुदरा महंगाई

रिपोर्ट में कहा गया है कि नवंबर में सब्जियों और प्रोटीन की कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद, ग्रामीण इलाकों में खाने की खपत बनी रहने से महंगाई का दबाव बना हुआ है। हालांकि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है, फिर भी यह शहरी मांग में आई कमी की पूरी भरपाई नहीं कर पाई है।

रिपोर्ट में ग्रामीण खपत को बनाए रखने में सरकारी सहयोग की भूमिका को भी उजागर किया गया है। / @NehaAgarwal_97

भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2024 के बाकी बचे समय के दौरान भारत में रिटेल महंगाई (कंस्यूमर प्राइस इंडेक्स, CPI) 5% से ऊपर ही रहने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नवंबर में सब्जियों और प्रोटीन की कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद, ग्रामीण इलाकों में खाने की खपत बनी रहने से महंगाई का दबाव बना हुआ है। बता दें कि इससे पहले उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति अक्टूबर में बढ़कर 6.21% हो गई, जो इससे पिछले महीने यानी सितंबर में 5.49% थी।  

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्थाएं, जहां खपत का एक बड़ा हिस्सा है, मजबूत बनी हुई हैं, जिससे खाने से जुड़ी महंगाई लंबे समय तक बनी रह सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है, नवंबर में सब्जियों/प्रोटीन की कीमतों में भारी कमी आने के बावजूद, 2024 के बाकी महीनों में CPI 5.0% से ऊपर रहने की उम्मीद है। 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में देश की खुदरा महंगाई दर 6.21% रही, जो भारतीय रिजर्व बैंक के 6% के ऊपरी स्तर से भी ज्यादा है। महंगाई दर 14 महीने के उच्चतम स्तर 6.21% पर पहुंच गई। इसमें सबसे ज्यादा योगदान खाने की चीजों की बढ़ी हुई कीमतों का था, जो पिछले तीन महीनों में 261 आधार अंक बढ़ी हैं। अक्टूबर में कोर CPI (जिसमें खाने और ऊर्जा की कीमतें शामिल नहीं हैं) भी थोड़ी बढ़कर 3.76% हो गई, जो सितंबर में 3.54% थी। 

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की CPI का लगभग 40% हिस्सा आयातित मुद्रास्फीति से प्रभावित होता है। इस निर्भरता को देखते हुए, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) मुद्रा विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के पूरे प्रभाव को महंगाई में बढ़ोतरी रोकने के लिए आने नहीं देगा। 

रिपोर्ट में ग्रामीण खपत को बनाए रखने में सरकारी सहयोग की भूमिका को भी उजागर किया गया है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) से होने वाली आय में वृद्धि ने ग्रामीण परिवारों की क्रय शक्ति को बढ़ाया है, जिससे आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की खपत में वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, खर्च के मामले में सबसे निचले 40% DBT लाभार्थियों की हिस्सेदारी में 1.85 गुना की वृद्धि हुई है। 

हालांकि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है, फिर भी यह शहरी मांग में आई कमी की पूरी भरपाई नहीं कर पाई है। रिपोर्ट ने इसे महामारी के दौरान जमा हुए अतिरिक्त बचत के कम होने से जोड़ा है, जिसने पहले शहरी खपत को बढ़ावा दिया था। कुल मिलाकर, रिपोर्ट ने एक मिला-जुला आर्थिक परिदृश्य दिखाया है, जिसमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती ने महंगाई के प्रभाव को कुछ कम किया है, जबकि शहरी मांग कमजोर हो रही है।

 

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