हेमलता गुणसेकरन
वर्ष 2023 के अंतिम पड़ाव में भारत खुद को महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के बीच एक जटिल वैश्विक परिदृश्य पर कदमताल करते हुए पाता है। ऐसी कदमताल जिसकी आहट सीमाओं के पार है और जिसने अपनी विदेश नीति को सूक्ष्म तरीकों से आकार दिया। क्षेत्रीय संघर्षों से लेकर भू-राजनीतिक बदलावों तक कई प्रमुख घटनाक्रमों ने भारत के ध्यान और रणनीतिक पुनर्गणना की मांग की जिसके परिणामस्वरूप राजनयिक रुख और प्राथमिकताएं बदल गईं।
क्षेत्रीय मोर्चे पर अफगान संकट ने भारत की विदेश नीति के लिए एक बड़ी परीक्षा प्रस्तुत की। तालिबान की सत्ता में वापसी ने क्षेत्रीय स्थिरता के बारे में चिंताएं बढ़ा दीं और भारत को नए नेतृत्व के साथ अपने संबंधों को समझदारी से निभाना पड़ा। भारत ने अफगान लोगों के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों और अपने क्षेत्रीय हितों की रक्षा करने की आवश्यकता को देखते हुए एक समावेशी सरकार और निरंतर मानवीय सहायता के महत्व पर जोर देते हुए सतर्क रुख अपनाया। भारत सरकार ने 2023-24 के बजट में अफगानिस्तान को सहायता प्रदान करने के लिए 200 करोड़ रुपये आवंटित किए।
भारत की विदेश नीति की दृष्टि से चीन एक प्रमुख खिलाड़ी बना रहा। पूर्वी लद्दाख में 2020 के सीमा गतिरोध का असर भारत के रणनीतिक रुख पर पड़ता रहा। भारत-चीन संबंधों को प्रबंधित करने के लिए चतुर कूटनीतिक चाल की आवश्यकता थी लिहाजा राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए बातचीत में शामिल होने के प्रयास किए गए। चीन के साथ आर्थिक प्रतिस्पर्धा और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों में भारत के दृष्टिकोण को आकार दिया है और भारत आने वाले वर्षों में भी ऐसा करना जारी रखेगा।
भू-राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव के कारण हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारत की विदेश नीति के केंद्र बिंदु के रूप में उभरा है। भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया वाले क्वाड ने क्षेत्रीय सहयोग के लिए एक मंच के रूप में गति प्राप्त की है। स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुनिश्चित करने पर मंच का फोकस समुद्री सुरक्षा की रक्षा करने और क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अपनी लंबे समय से चली आ रही गुटनिरपेक्ष नीति और रणनीतिक साझेदारियों के बीच संतुलन बनाते हुए भारत ने इस महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक क्षेत्र में अपने प्रभाव का दावा करने की कोशिश की है।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से रूस-यूक्रेन संघर्ष का भारत की विदेश नीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। संकट के प्रति भारतीय प्रतिक्रिया मुख्य रूप से घरेलू चिंताओं और रणनीतिक प्राथमिकताओं से प्रभावित थी। तटस्थता का विकल्प चुनने से ऐतिहासिक रक्षा सहयोगी मास्को के साथ उसके संबंधों और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद मिली। वैश्विक संकेतों के अनुरूप युद्ध ने मुद्रास्फीति संकट और भारत की आर्थिक वृद्धि की चाल में मंदी भी पैदा कर दी। इन हालात ने भारत के सामने दोहरी पहेली पेश की। खासकर ऐसे समय में जब वह धीरे-धीरे महामारी के दबाव से ऊपर उठना चाह रहा था। हालांकि IMF और विश्व बैंक दोनों ने भारत को एक 'उज्ज्वल ठिकाना' करार दिया था क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था ने रेपो दरों में बढ़ोतरी, निर्यात में गिरावट, मुद्रा अवमूल्यन और शेयर बाजार की अस्थिरता के बावजूद काफी लचीलापन दिखाया था। इस संकट ने तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य की जटिलताओं से निपटने में एक लचीली विदेश नीति दृष्टिकोण के महत्व को रेखांकित किया।
इजराइल-हमास संघर्ष ने भारत की विदेश नीति के लिए लगातार चुनौती पेश की। जैसे ही मध्य पूर्व में तनाव बढ़ा भारत इजराइल के साथ अपने संबंधों को प्रबंधित करने के साथ-साथ फिलिस्तीनी मुद्दे के लिए अपने दृढ़ समर्थन को बनाए रखने की नाजुक स्थिति में था। संघर्ष ने भारत को शांतिपूर्ण समाधान के लिए अपना आह्वान दोहराने और दो राज्य समाधान की वकालत करने के लिए प्रेरित किया। यह नवंबर 2023 में फिलिस्तीन में इजरायली बस्तियों की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के पक्ष में भारत के वोट में परिलक्षित हुआ। इस भू-राजनीतिक दुविधा की जटिलताओं को देखते हुए भारत ने अपनी रणनीतिक साझेदारी की रक्षा करते हुए क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण बनाए रखा।
विश्व स्तर पर G20 शिखर सम्मेलन ने भारत के आर्थिक और राजनयिक एजेंडे को आकार देने में अहम भूमिका निभाई है। भारत की G20 अध्यक्षता ने आम चुनौतियों से निपटने के लिए समावेशी विकास और सहकारी रणनीतियों की वकालत करते हुए अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट करने का अवसर प्रदान किया। G20 में भारत की भागीदारी न केवल महामारी से उबरने के बारे में थी बल्कि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को आकार देने में अपनी भूमिका पर जोर देने के लिए एक मंच के रूप में भी थी। शिखर सम्मेलन में चर्चा ने आर्थिक पुनरुद्धार, व्यापार साझेदारी और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए भारत की रणनीतियों को प्रभावित किया। राष्ट्र ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने के लिए गठबंधन और सहयोग बनाने में सक्रिय रूप से भाग लिया।
वर्ष 2023 में भारत को अनेक अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से जूझना पड़ा। इस 'मुठभेड़' ने इसके विदेश नीति परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी। महामारी, क्षेत्रीय संकट, आर्थिक चुनौतियों और भू-राजनीतिक बदलावों के प्रभावों ने अनुकूलनशीलता और रणनीतिक दूरदर्शिता की मांग की। भारत की कूटनीतिक व्यस्तताओं ने अपनी वैश्विक उपस्थिति का दावा करने और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के बीच एक स्थिर संतुलन को दर्शाया है। यह तेजी से जटिल होते वैश्विक हालात को साधने की कठिनाइयों को प्रदर्शित करता है। ये तमाम हालात, अनुभव और सबक निस्संदेह आने वाले वर्षों में भारत की विदेश नीति की राह तैयार करने में अहम रहेंगे।
(लेखिका महिला क्रिश्चियन कॉलेज, चेन्नई के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विभाग में सेवारत हैं)
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